सम्पादकीय

विचाराधीन लेकिन कैदी

Subhi
1 Aug 2022 3:59 AM GMT
विचाराधीन लेकिन कैदी
x
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को ऑल इंडिया डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज के सम्मेलन को संबोधित करते हुए विचाराधीन कैदियों के मसले को गंभीरता से उठाया।

नवभारत टाइम्स; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को ऑल इंडिया डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज के सम्मेलन को संबोधित करते हुए विचाराधीन कैदियों के मसले को गंभीरता से उठाया। उन्होंने ईज ऑफ लिविंग यानी जीने की सहूलियत और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (व्यापार करने की सहूलियत) की ही तरह ईज ऑफ जस्टिस की जरूरत बताते हुए कहा कि देश भर की जेलों में बंद लाखों विचाराधीन कैदियों की न्याय तक पहुंच जल्द से जल्द सुनिश्चित की जानी चाहिए। चूंकि हर जिले में ऐसे मामलों को देखने के लिए जिला जज की अध्यक्षता वाली एक समिति होती है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज के सम्मेलन में प्रधानमंत्री का इस मसले को उठाना खास तौर पर महत्वपूर्ण है। लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले को उठाया है। इससे पहले अप्रैल महीने में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में भी उन्होंने यह विषय उठाया था। सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर इस मसले को उठाता रहा है। बावजूद इन सबके पता नहीं क्यों, इस मामले में जमीन पर कोई ठोस प्रगति होती नहीं दिखती।

नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे जिनमें से 76 फीसदी यानी 3,71,848 विचाराधीन कैदी थे। यानी इन कैदियों के मामले अभी अदालत में चल ही रहे हैं और यह पता नहीं है कि ये सचमुच दोषी हैं या नहीं। इनमें कइयों को तो जेल में फैसले का इंतजार करते दस-दस पंद्रह-पंद्रह साल हो चुके हैं। इनका बहुत बड़ा हिस्सा (73 फीसदी) दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदायों से आता है। इनमें से कई कैदी आर्थिक रूप से इतने कमजोर होते हैं जो वकील की फीस तो दूर जमानत राशि भी नहीं जुटा सकते। इसे देश की न्यायिक प्रक्रिया की ही कमी कहा जाएगा कि दोषी साबित होने से पहले ही इनमें से बहुतों को लंबा समय जेल में गुजारना पड़ा है। आलम यह है कि इनकी जमानत पर भी समय से सुनवाई नहीं हो पा रही। उत्तर प्रदेश से जुड़े ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट मई महीने में आदेश दे चुका है कि राज्य के ऐसे तमाम विचाराधीन कैदियों को जमानत पर छोड़ दिया जाए जिनके खिलाफ इकलौता मामला हो और जिन्हें जेल में दस साल से ज्यादा हो चुका हो। फिर भी जब ऐसी कोई पहल नहीं हुई तो पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट के रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर आप लोग ऐसा नहीं कर सकते तो हम खुद ऐसा आदेश जारी कर देंगे। देखना होगा कि यह मामला आगे क्या नतीजा लाता है, लेकिन समझना जरूरी है कि बात सिर्फ यूपी या किसी भी एक राज्य की नहीं है। पूरे देश के ऐसे तमाम मामलों को संवेदनशील ढंग से देखे जाने और इन पर जल्द से जल्द सहानुभूतिपूर्ण फैसला करने की जरूरत है।


Next Story