सम्पादकीय

बेकाबू रफ्तार और बढ़ते हादसे

Subhi
5 Aug 2022 5:03 AM GMT
बेकाबू रफ्तार और बढ़ते हादसे
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जब तक प्रौद्योगिकी के उपयोग, जागरूकता, कानून के सख्त कार्यान्वयन और आपातकालीन सुरक्षा उपायों जैसे कदमों को मजबूत नहीं किया जाता, तब तक इस संबंध में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आ सकते।

रवि शंकर: जब तक प्रौद्योगिकी के उपयोग, जागरूकता, कानून के सख्त कार्यान्वयन और आपातकालीन सुरक्षा उपायों जैसे कदमों को मजबूत नहीं किया जाता, तब तक इस संबंध में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आ सकते। सुरक्षित यात्रा तभी संभव होगी जब सरकारों और नागरिक समाज के समन्वित प्रयासों से सड़क सुरक्षा एक सामाजिक जिम्मेदारी में बदल जाए।

देश में निरंतर सड़कों का जाल फैल रहा है। सरकार की कोशिश है कि जल्द से जल्द भारतीय सड़कें अमेरिका जैसी बना दी जाएं। मगर इस बीच सड़कों पर होने वाले हादसे के आंकड़ों ने सुरक्षा संबंधी चिंता बढ़ा दी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में सड़क दुर्घटना की वजह से एक लाख इकतीस हजार सात सौ चौदह लोगों की मौत हो गई।

इनमें से 69.3 फीसद यानी इक्यानबे हजार दो सौ उनतीस मौतें तेज रफ्तार, 30.1 फीसद यानी उनतालीस हजार सात सौ अट्ठानबे मौतें हेलमेट न पहनने और 11.5 फीसद यानी छब्बीस हजार आठ सौ छियानबे मौतें कार चलाते समय सीट बेल्ट न लगाने से हुर्इं। सड़क हादसों की संख्या तब और भयावह लगती है जब यह तथ्य सामने आता है कि इनमें मरने वालों में बासठ फीसद की आयु 18-35 वर्ष है। यानी हादसे का सबसे ज्यादा शिकार युवा हो रहे हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में दुनिया का एक फीसद वाहन हैं, पर वाहन दुर्घटनाओं के चलते विश्वभर में होने वाली मौतों में ग्यारह फीसद भारत में होती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सालाना करीब साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है। देश में हर घंटे तिरपन सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं और हर चार मिनट में एक मौत होती है। भारत में पिछले दस सालों में सड़क हादसों में करीब तेरह लाख लोगों की मौत हुई और पचास लाख से अधिक लोग घायल हुए हैं। यह दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में विभिन्न कारणों से होने वाली मौतों में सड़क दुर्घटनाएं आठवां प्रमुख कारण हैं। इसी तरह कम आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों की तुलना में दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु दर तीन गुना अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह रिपोर्ट बताती है कि विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में सड़क हादसों में मरने वालों की तादाद काफी ज्यादा है।

आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में भारत अन्य देशों के मुकाबले शीर्ष पर है। ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट आन रोड सेफ्टी (जीएसआरआरएस) ने सड़क सुरक्षा से संबंधित पांच कारकों की पहचान की है, जिनमें तेज रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, दुपहिया वाहनों पर हेलमेट का प्रयोग नहीं करना, सीट बेल्ट न बांधना और सुरक्षा उपायों के बिना बच्चों के साथ यात्रा करना आदि शामिल है। बहुत कम ऐसे देश हैं जहां उपर्युक्त सभी सुरक्षा नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है। भारत भी दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां न केवल कानून का उल्लंघन किया जाता, बल्कि इसका पालन करवाने में भी उदासीनता बरती जाती है।

सड़क सुरक्षा संबंधी समस्याओं से पार पाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बहुपक्षीय रवैया निर्धारित किया है, जिसमें '4 ई' पर मुख्य जोर है- एजुकेशन (शिक्षा), एनफोर्समेंट (प्रवर्तन), इंजीनियरिंग और इमरजेंसी। ये सड़क सुरक्षा के नियमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, बेहतर नियामक सुनिश्चित करने और यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करने, सड़क बुनियादी ढांचे में सुधार और प्लेटिनम/ गोल्डन आवर (30/60 मिनट) में सड़क दुर्घटना के पीड़ित को मदद मुहैया कराने से संबंधित हैं।

चिंता की बात है कि भारत में सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी सड़क दुर्घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। सड़क दुर्घटनाओं के लिए सरकार और खराब सड़कों को दोष देना तो आसान है, मगर लोग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से साफ बच निकलते हैं। सड़क हादसों में जहां लाखों परिवारों को अपनों को खोना पड़ता है, वहीं हादसे के पीड़ित और उसके परिवार पर आर्थिक बोझ भी पड़ता है।

गौरतलब है कि भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में है, जहां के श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम, महज सत्ताईस फीसद है, जहां अधिकांश महिलाएं सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों से बाहर हैं। इसका अर्थ यह है कि वे पुरुषों की तुलना में बाहर कम निकलती हैं, अपेक्षाकृत कम दूरी की यात्राएं करती और सड़क सुरक्षा से जुड़े खतरों का जोखिम भी कम उठाती हैं।

मगर जब कोई सड़क हादसा होता है, तो इसका प्रभाव महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग तरह से पड़ता है। अध्ययन बताते हैं कि समान गंभीरता वाले सड़क हादसों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के घायल होने और मारे जाने की संभावना कहीं ज्यादा होती है। चोटिल होने पर उनके उपचार और दुर्घटना संबंधी समुचित देखभाल मिलने की संभावना कम होती है, क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं होती। महिलाओं के पास स्थायी रूप से आर्थिक मजबूती के अन्य साधन भी कम होते हैं।

सड़क सुरक्षा के मामले में भारत जैसे देशों की स्थिति दयनीय है। जैसे-जैसे तेज रफ्तार गाड़ियां सड़कों पर आ रही हैं, दुर्घटनाओं में इजाफा हो रहा है। लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों को लेकर जितनी चिंता की जाती है, उतने ही सवाल भी हैं। सड़क सुरक्षा पर बार-बार सवाल उठते हैं, तो परिवहन नियमों में बदलाव की बात होने लगती है। सड़क हादसों में सिर्फ मौत नहीं होती, बल्कि बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी होता है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते 5.96 लाख करोड़ रुपए यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.14 फीसद के बराबर नुकसान होता है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर देश की सड़कें सुरक्षित हो जाएं और एक भी दुर्घटना न हो, तो भारत का जीडीपी दहाई के अंक को छू लेगा। इतना ही नहीं, विश्व बैंक के नेतृत्व में 'ग्लोबल रोड सेफ्टी फैसिलिटी' द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में यह सामने आया है कि सुरक्षित सड़कों के लाभकारी प्रभाव हो सकते हैं। अगर आने वाले चौबीस सालों में सड़क दुर्घटनाओं में मरने और घायल होने वालों की संख्या में पचास फीसद की कमी आती है तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में चौदह फीसद का इजाफा हो सकता है।

इसलिए हमें समझना होगा कि सड़क हादसे देश की अर्थव्यवस्था को ही विकलांग बना देते हैं। हालांकि केंद्रीय सड़क परिवहन विभाग ने दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या को 2024 तक आधा करने का लक्ष्य रखा है। इससे पहले भारत ने 2015 में ब्राजील में आयोजित सड़क सुरक्षा सम्मेलन में 2030 तक इन मौतों को आधा करने के लक्ष्य पर हस्ताक्षर किए थे।

बहरहाल, जो तथ्य सामने आए हैं उन्हें लेकर हमें चिंतित होने से ज्यादा जागरूक होना चाहिए और उसी दिशा में सुधार किया जाना चाहिए। स्पष्ट है, जब तक प्रौद्योगिकी के उपयोग, जागरूकता, कानून के सख्त कार्यान्वयन और आपातकालीन सुरक्षा उपायों जैसे कदमों को मजबूत नहीं किया जाता, तब तक इस संबंध में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आ सकते। सुरक्षित यात्रा तभी संभव होगी जब सरकारों और नागरिक समाज के समन्वित प्रयासों से सड़क सुरक्षा एक सामाजिक जिम्मेदारी में बदल जाए।

वास्तव में वाहनों की बढ़ती संख्या और सड़क सुरक्षा आज भारत के लिए एक बड़ी समस्या है। यह सच नहीं है कि दंड हल्के हैं और नियम लागू करने के मामले में ढिलाई है। 2019 में मोटर वीकल्स ऐक्ट में सुधार कर दंड कठोर बनाए गए थे, फिर भी सड़क हादसों की संख्या घटी नहीं है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार को इस पर गौर करना होगा और देश में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे, नहीं तो रोज सड़कों पर लोग मरते रहेंगे।


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