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Written by जनसत्ता: उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन अपनी मनमानी कार्रवाइयों को लेकर खबरों में बनी रहती है। अपराध मिटाने के नाम पर वह सारे नियम-कायदों को ताक पर रखने से भी गुरेज नहीं करती। अब उस पर उत्तराखंड पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है। यह भी विचित्र है कि एक राज्य की पुलिस पर दूसरे राज्य की पुलिस आपराधिक मुकदमा दर्ज करे।
हालांकि दोनों राज्यों में एक ही राजनीतिक दल की सरकार है। मगर मामला कुछ ऐसा संगीन है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत पड़ी। दरअसल, पिछले दिनों मुरादाबाद में खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई करते हुए पुलिस के साथ माफिया की हिंसक झड़प हो गई थी। उसी मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने आरोपियों की धर-पकड़ शुरू की।
उसे सूचना मिली थी कि उनमें से एक इनामी बदमाश उत्तराखंड के काशीपुर में छिपा हुआ है। फिर उत्तर प्रदेश की एक टीम सूचना वाले ठिकाने पर पहुंची और घर में घुस गई। मकान मालिक के रोकने के बावजूद सीधा गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें घर की मालकिन को गोली लगी और उसने दम तोड़ दिया। तब तक भीड़ जुट गई और उसने चार पुलिस कर्मियों को पकड़ लिया। मकान मालिक भी रसूखदार व्यक्ति है। उसने उत्तराखंड पुलिस में इस घटना की शिकायत दर्ज कराई, उसी आधार पर उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है।
कायदे से जब कोई पुलिस टीम किसी दूसरे राज्य में अपराधियों की धर-पकड़ के लिए जाती है, तो उसे वहां की पुलिस को पहले सूचित करना पड़ता है। मगर उत्तर प्रदेश पुलिस ने ऐसा नहीं किया। उसे आनन-फानन कार्रवाई करना इतना जरूरी लगा और उसे अपनी कार्यशैली पर इतना भरोसा था कि घर में घुस कर पुलिस ने गोली चलानी शुरू कर दी।
शायद उसे इस बात का इल्म नहीं कि किसी रिहाइशी मकान में घुस कर बिना किसी चेतावनी और घर को खाली कराए बगैर, जब तक बेहद जरूरी न हो, हथियार का इस्तेमाल नहीं किया जाता। वे ऐसे किसी खूंखार अपराधी या आतंकवादी को पकड़ने नहीं गए थे और न उन पर कोई हमला हुआ था, जिसके जवाब में उन्हें गोली चलानी पड़े।
फिर उन्होंने सामान्य तरीके से तलाशी लेना क्यों उचित नहीं समझा। हालांकि यह पहली घटना नहीं है, जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस ने गोली दाग कर अपराधी को पकड़ने का प्रयास किया। लखनऊ में कार में बैठे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के कर्मचारी को भी बिना किसी चेतावनी के इसी तरह गोली मार दी गई थी। गोरखपुर के एक होटल में रुके व्यवसायी को अपराधी होने के शक में पीट-पीट कर मार डाला गया था। ऐसी अनेक घटनाएं हैं।
पुलिस को तभी गोली चलाने का अधिकार है, जब उस पर कातिलाना हमला हो। गोली चलानी भी पड़े तो कमर के नीचे निशाना लगाना होता है, न कि शरीर के ऐसे हिस्से में जिससे मौत निश्चित हो। क्या उत्तर प्रदेश पुलिस को ऐसा बुनियादी प्रशिक्षण भी नहीं है? फिर उसमें और पेशेवर अपराधी में क्या अंतर है?
योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने का संकल्प लिया था और पुलिस को कई मामलों में आजादी दे दी थी। मगर इसका अर्थ शायद पुलिस ने यह लगा लिया है कि गोली चलाना ही उसका सबसे पहला काम है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उसकी इन मनमानियों पर अंकुश लगाने की कोशिश नहीं की। शायद उत्तराखंड पुलिस की कार्रवाई से उसे कुछ सबक मिले।