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बेलगाम नकारात्मक राजनीति
आखिरकार संसद में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी हो गई। भले ही किसान संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से इन कानूनों की वापसी को लोकतंत्र की जीत बताया जा रहा हो, लेकिन इसे उसकी पराजय के रूप में ही देखा जाना चाहिए। इन कानूनों की वापसी किसानों के हितों पर कुठाराघात भी है, क्योंकि उनकी अनदेखी के साथ उनके शोषण का रास्ता फिर से खुल गया। अफसोस यह है कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी आंदोलन जारी रखने पर अड़े किसान संगठन देश के 86 प्रतिशत किसानों के हितों की बलि लेने वाले इस फैसले पर खुशी जता रहे हैं। विपक्ष ने अपनी संकीर्ण राजनीति के फेर में किसानों की बेहतरी के लिए की गई एक कोशिश को जिस तरह नाकाम किया, उससे यही पता चलता है कि जब नकारात्मक राजनीति बेलगाम हो जाती है, तब वह किस तरह राष्ट्रीय हितों पर आघात करती है।
तीनों कृषि कानूनों की वापसी से यदि किसी को लाभ होने जा रहा है तो बिचौलियों और आढ़तियों के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य की मलाई चट करने वाले बड़े किसानों को। विपक्षी दल किस तरह कुतर्क के साथ नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं, यह कृषि कानूनों की वापसी के विधेयक पर बहस करने की उनकी जिद से प्रकट हुआ। इन कानूनों को लेकर कांग्रेस ने अगंभीरता का परिचय देते हुए कैसी सस्ती राजनीति की, इसकी पोल उसकी ओर से संसद परिसर में एक ऐसे बैनर के साथ प्रदर्शन करने से खुली, जिसमें लिखा था कि हम काले कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हैं। क्या यह हास्यास्पद नहीं कि यह प्रदर्शन लगभग उसी समय किया जा रहा था, जब संसद में इन कानूनों को वापस लेने संबंधी विधेयक पेश हो रहा था? बहस के नाम पर हंगामा करने की प्रवृत्ति इतना खतरनाक रूप ले चुकी है कि अब विपक्ष की ओर से अभद्रता को भी जायज ठहराने की कोशिश होने लगी है। वास्तव में इसी कोशिश के तहत पिछले सत्र में राज्यसभा में अभद्र आचरण करने वाले सांसदों के निलंबन का विरोध किया जा रहा है।
यह विरोध यही बताता है कि विपक्षी दल अभद्रता करने की खुली छूट चाहते हैं। क्या विपक्ष यह मांग कर रहा है कि उसके सांसदों को संसदीय जिम्मेदारी के निर्वहन के नाम पर सभापति के आसन के सामने मेजों पर चढ़कर नारेबाजी करने और संसद के कर्मचारियों से धक्कामुक्की करने की भी सुविधा मिले? यदि नहीं तो फिर 12 सांसदों के निलंबन के विरोध का क्या मतलब? बेहतर हो कि यह समझा जाए कि बहस के बहाने हंगामा करने की आदत संसद के साथ लोकतंत्र को भी नीचा दिखाने वाली है।
दैनिक जागरण
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