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Written by जनसत्ता; हरियाणा के नूंह जिले में मंगलवार को एक पुलिस उप अधीक्षक को मार कर खनन माफिया ने फिर यह दर्शाया है कि उसे किसी से खौफ नहीं है। हालांकि पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए इस घटना को अंजाम देने वाले एक आरोपी को पकड़ लिया। अब देखने की बात यह है कि क्या पुलिस इस कारोबार के सरगना तक पहुंच पाती है! इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि आखिर हमारी सरकारें खनन माफिया के खिलाफ अभियान चलाने में इतनी बेबस क्यों बनी हुई हैं?
देश के कई राज्यों में सक्रिय बेखौफ पत्थर और रेत माफिया का गैरकानूनी कारोबार जिस तेजी से बढ़ता जा रहा है, वह बेहद गंभीर बात है। गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, झारखंड आदि सभी उत्तरी राज्यों में खनन माफिया सक्रिय हैं। दक्षिण के राज्य भी इससे अछूते नहीं हैं। बुधवार को भी गुजरात के आणंद जिले और झारखंड में रांची के पास जांच के लिए वाहन रोकने पर दो पुलिसकर्मियों को कुचल दिया गया। खनन माफिया पर कार्रवाई का जिम्मा स्थानीय पुलिस और प्रशासन का मामला है। ऐसे में अगर राज्यों में खनन माफिया बेलगाम है तो इसका मतलब है कि राज्य सरकारें इन पर शिकंजा कस पाने में लाचार हो चुकी हैं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में अवैध खनन पर रोक लगा रखी है। नूंह जिले के जिस इलाके में यह घटना हुई, वहां अवैध खनन का काम कोई आज से नहीं चल रहा, बल्कि फरीदाबाद, गुरुग्राम, मेवात, महेंद्रगढ़ में भी अवैध खनन बदस्तूर जारी है। ऐसा भी नहीं कि पुलिस माफिया से जुड़े लोगों पर कार्रवाई नहीं करती। जब भी पुलिस को सूचना मिलती है, वह अपना दल-बल लेकर कार्रवाई करने पहुंचती तो है। पर माफिया का सूचना तंत्र इतना मजबूत है कि वह पुलिस के आने से पहले बच निकलता है।
माल ढोने वाले डंपरों के ड्राइवर अपने को बचाने के लिए पुलिस से लेकर रास्ते में आने वाले लोगों तक को डंपर से कुचलने में नहीं हिचकिचाते। डीएसपी सुरेंद्र सिंह के साथ यही हुआ। नूंह जिले में पिछले चार साल के दौरान अवैध खनन के पौने दो सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं। तीन साल पहले भी इसी जिले में अवध खनन रोकने गए एक एसडीएम और पुलिस दल पर जानलेवा हमला किया गया था। पिछले साल दिसंबर में एक पुलिस अधीक्षक की कार डंपर चढ़ाने की कोशिश की गई थी। इससे पता चलता है कि यह काम करने वालों के हौसले कितने बेलगाम हैं।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी यही हाल हैं। पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश के मुरैना जिले से ऐसी कई दहला देने वाली घटनाएं सामने आर्इं। राजस्थान में भी बजरी माफिया कम कहर नहीं ढहा रहा। साउथ एशिया नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2019 से नवंबर 2020 के बीच अवैध खनन रोकने के मामलों में एक सौ तिरानबे लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और इनमें पनचानबे लोगों की मौत उत्तर भारत में हुई।
इससे तो लगता है कि सरकारों ने खनन माफिया के आगे घुटने टेक दिए हैं। राज्य सरकारों के पुलिस बल की कोई कमी नहीं होती। सशस्त्र बल भी उनके पास होता है। जरूरत पड़ने पर वे केंद्रीय बलों की मदद भी मदद ले सकती हैं। इतना सब होने पर भी अगर अवैध खनन से जुड़े बड़े लोग कानून की पहुंच से बाहर बने रहते हैं, तो यह संदेह पैदा करता है। ऐसे में यदि खनन माफिया को राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगते रहे हैं तो गलत क्या है?