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बेलगाम महंगाईसामान्य स्थितियों में जरूरी चीजों की कीमतों में उतार-चढ़ाव का आम लोगों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है।
बेलगाम महंगाईसामान्य स्थितियों में जरूरी चीजों की कीमतों में उतार-चढ़ाव का आम लोगों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है। लेकिन जब आय के साधनों की अनिश्चितता छाई हो तो ऐसे में जरूरी उपभोग की चीजों की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी भी नया तनाव दे जाती है। पिछले कुछ समय से पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के मूल्यों में लगातार बढ़ोतरी की वजह से यह चिंता गहरी होती जा रही है कि अगर महंगाई इसी तरह बेलगाम रही तो कुछ समय बाद आम लोगों के सामने गुजारा करने के कितने विकल्प बचेंगे!
गौरतलब है कि देश के कई शहरों में पेट्रोल के दाम जहां लगभग सौ रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं, वहीं डीजल भी अस्सी रुपए प्रति लीटर से ज्यादा के भाव पर बिक रहा है। इसके अलावा, बीते महज दो महीने के भीतर रसोई गैस के एक सिलेंडर की कीमत में दो सौ रुपए का उछाल आ चुका है। हर कुछ रोज बाद इनके भाव में जैसी तेजी आ रही है, उसे देखते हुए फिलहाल इसमें स्थिरता की उम्मीद नहीं बन रही है।
सवाल है कि जिस दौर में लोग पहले ही गिरती आमदनी के बरक्स बढ़ती महंगाई से परेशान हैं, उसमें क्या सरकार के हाथ से सब छूटता जा रहा है और वह महंगाई पर रोक लगाने में सक्षम नहीं है! जब सवाल उठते हैं तब सरकार की दलील होती है कि तेल की कीमतों पर लगाम लगाना उसके हाथ में नहीं है और ये अंतरराष्ट्रीय भाव के मुताबिक घटती-बढ़ती हैं।
मगर जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें मध्यम स्तर पर बनी हुई हैं, तब भी देश में पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के भाव आसमान क्यों छू रहे हैं? फिर जब कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में काफी उतार देखा गया था, तब भी क्या उससे राहत देश के आम लोगों को मिल सकी? यह किसी से छिपा नहीं है कि डीजल के मूल्यों में बढ़ोतरी का सीधा असर बाजार में मौजूद लगभग सभी वस्तुओं पर पड़ता है। दरअसल, वस्तुओं की आपूर्ति आमतौर पर डीजल-चालित वाहनों पर निर्भर होती है और डीजल के दाम में बढ़ोतरी के साथ माल ढुलाई भी बढ़ती है, जिसके असर में खुदरा वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
पिछले करीब साल भर से महामारी की मार के चलते बाजार से लेकर रोजगार के तमाम क्षेत्रों की हालत किसी से छिपी नहीं है। हालत यह है कि लोगों की आमदनी तो घट या फिर ठहर गई है, लेकिन अमूमन हर वस्तु के मूल्य में बढ़ोतरी के साथ उनके खर्चे भी बढ़ गए हैं। महामारी के संक्रमण की रोकथाम के लिए लगाई गई पूर्णबंदी के दौरान करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई और सब कुछ बंद रहने की वजह से आय का भी कोई जरिया नहीं रहा था। उसके बाद क्रमश: ढिलाई के साथ हालात सामान्य होने की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन अब भी यह नहीं कहा जा सकता है कि सब कुछ पहले जैसा हो गया है।
सच यह है कि भारत में साधारण परिवारों में छोटे स्तर पर की जाने वाली घरेलू बचतों की प्रवृत्ति के चलते लोग कुछ समय तक अभाव का सामना कर लेते हैं। लेकिन अगर इस स्थिति में निरंतरता बनी रहे तो बहुत दिनों तक लोग खुद को नहीं संभाल सकते। सरकार को जहां महंगाई में कमी लाने के लिए तत्काल ठोस पहल करनी चाहिए, वहीं रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी के जरिए लोगों की क्रयशक्ति में इजाफा करने का भी इंतजाम करना चाहिए। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि महंगाई का सबसे मारक असर उसी निम्न मध्यम और कमजोर तबकों पर पड़ता है, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं।
Subhi
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