सम्पादकीय

बेलगाम महंगाई

Neha Dani
11 Jun 2022 8:41 AM GMT
बेलगाम महंगाई
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ऐसे में प्रौद्योगिकी के विकास से हासिल आत्मनिर्भरता हमें महंगाई से लड़ने की ताकत दे सकती है।

कोरोना संकट से उबरते देश पर रूस-यूक्रेन संकट के चलते बाधित खाद्य शृंखला की मार असर दिखा रही है। बढ़ते आयात खर्च और कमजोर होते रुपये ने केंद्रीय बैंक की चिताएं बढ़ाई हैं। तभी आरबीआई ने लगभग एक माह के अंतराल में दूसरी बार रेपो दरों में कटौती की है। सवाल यह है कि क्या मौद्रिक उपायों से रिकॉर्ड तोड़ती महंगाई पर कुछ असर पड़ेगा। यह भी कि क्या छह का आंकड़ा पार कर चुकी खुदरा महंगाई दर में गिरावट आएगी? मौजूदा स्थिति देश की विकास दर को भी प्रभावित करेगी। लेकिन रेपो रेट बढ़ाए जाने का पहला असर यह होगा कि बैंक भी लिये कर्ज की ब्याज दरें बढ़ाएंगे और जिसके चलते आवास व वाहन आदि के कर्जधारकों की किस्तों में इजाफा होगा। उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति पर इसका असर नजर आयेगा। मांग बढ़ाने को कोरोना संकट के दौर में ब्याज दरें कम करने का जो कदम उठाया गया था, वह अब बीते दिनों की बात हो गया है। मौजूदा महंगाई की चुनौती से केंद्र सरकार की चिंताएं भी बढ़ी हैं, महंगाई का राजनीतिक समीकरण भी, जिसका उपयोग विगत में भाजपा भी करती आई है। मगर महंगाई पर काबू पाने के उपायों का असर होता नहीं दीख रहा है। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। दुनिया के तमाम मुल्क इस संकट से दो-चार हैं। दरअसल, महंगाई की एक वजह यह भी है कि कोरोना संकट के चलते सूक्ष्म,छोटे व मझोले उद्योग-धंधे चौपट हो गये जिसके चलते बाजार में बड़ी कंपनियों की मनमानी है। हाल के दिनों में बड़ी कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने के लिये दामों में वृद्धि कर रही हैं । यही वजह है कि आने वाले दिनों में मंहगाई कम होती नजर नहीं आ रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध भी थमता नहीं दीख रहा है।

निस्संदेह, महंगाई का देश की आर्थिक विकास दर पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। तभी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी भारत की विकास दर को कम आंका है। लेकिन चिंता की बात यह है कि बढ़ती महंगाई व घटती क्रय शक्ति के चलते देश के विभिन्न उद्योगों पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। अब चाहे यह वाहन उद्योग हो या विनिर्माण का क्षेत्र। देश में लघु,मझोले व सूक्ष्म उद्योग पहले ही कोरोना संकट से उपजे हालात से उबर नहीं पाये हैं। बेरोजगारी में तेजी जारी है। नये रोजगार बन नहीं रहे हैं। अर्थव्यवस्था ठहराव की स्थिति में प्रतीत होती है जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में अर्थव्यवस्था में ठहराव व महंगाई में वृद्धि के चलते स्टैगफ्लेशन की स्थिति बताया जा रहा है। इससे अर्थव्यवस्था के रुझान को लेकर आम आदमी में संशय की स्थिति है जिसके चलते मांग में भी कमी आ रही है। दरअसल, महंगाई की वजह के मुख्य कारणों में जहां युद्ध है, वहीं अमेरिका समेत कई देशों में अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिये जो ब्याज दरों में वृद्धि की गई है, उसके चलते भारतीय बाजार के विदेशी निवेशक अपना पैसा वापस खींच रहे हैं। फलस्वरूप रुपये की कीमत में गिरावट देखी जा रही है। कहीं न कहीं केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि विदेशी निवेशकों की भगदड़ रोकने की कवायद भी है। दरअसल, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी सरकार की चिंता बढ़ाने वाली है। ऐसे में सरकार से उम्मीद है कि नये मौद्रिक उपाय से वह महंगाई पर काबू करने के लिये परोक्ष करों में कटौती करे। खासकर पेट्रो उत्पादों में कमी के हालिया प्रयासों में फिर वृद्धि करे। वहीं सरकार दूसरी ओर हालिया संकट में मोटा मुनाफा कमाने वाले उद्योग जगत पर प्रत्यक्ष कर बढ़ाकर अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकती है। वहीं चिंता इस बात की बनी हुई है कि यदि रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया में शीत युद्ध की नई परिस्थितियां पैदा करता है तो निश्चित तौर पर महंगाई को थामना और मुश्किल हो सकता है। ऐसे में प्रौद्योगिकी के विकास से हासिल आत्मनिर्भरता हमें महंगाई से लड़ने की ताकत दे सकती है।
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