- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बेलगाम महंगाई
कोरोना संकट से उबरते देश पर रूस-यूक्रेन संकट के चलते बाधित खाद्य शृंखला की मार असर दिखा रही है। बढ़ते आयात खर्च और कमजोर होते रुपये ने केंद्रीय बैंक की चिताएं बढ़ाई हैं। तभी आरबीआई ने लगभग एक माह के अंतराल में दूसरी बार रेपो दरों में कटौती की है। सवाल यह है कि क्या मौद्रिक उपायों से रिकॉर्ड तोड़ती महंगाई पर कुछ असर पड़ेगा। यह भी कि क्या छह का आंकड़ा पार कर चुकी खुदरा महंगाई दर में गिरावट आएगी? मौजूदा स्थिति देश की विकास दर को भी प्रभावित करेगी। लेकिन रेपो रेट बढ़ाए जाने का पहला असर यह होगा कि बैंक भी लिये कर्ज की ब्याज दरें बढ़ाएंगे और जिसके चलते आवास व वाहन आदि के कर्जधारकों की किस्तों में इजाफा होगा। उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति पर इसका असर नजर आयेगा। मांग बढ़ाने को कोरोना संकट के दौर में ब्याज दरें कम करने का जो कदम उठाया गया था, वह अब बीते दिनों की बात हो गया है। मौजूदा महंगाई की चुनौती से केंद्र सरकार की चिंताएं भी बढ़ी हैं, महंगाई का राजनीतिक समीकरण भी, जिसका उपयोग विगत में भाजपा भी करती आई है। मगर महंगाई पर काबू पाने के उपायों का असर होता नहीं दीख रहा है। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। दुनिया के तमाम मुल्क इस संकट से दो-चार हैं। दरअसल, महंगाई की एक वजह यह भी है कि कोरोना संकट के चलते सूक्ष्म,छोटे व मझोले उद्योग-धंधे चौपट हो गये जिसके चलते बाजार में बड़ी कंपनियों की मनमानी है। हाल के दिनों में बड़ी कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने के लिये दामों में वृद्धि कर रही हैं । यही वजह है कि आने वाले दिनों में मंहगाई कम होती नजर नहीं आ रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध भी थमता नहीं दीख रहा है।