सम्पादकीय

बेलगाम अपराधी

Subhi
16 Sep 2022 4:44 AM GMT
बेलगाम अपराधी
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उत्तर प्रदेश से महिलाओं के खिलाफ लगातार जिस तरह के अपराधों की खबरें आ रही हैं, उससे साफ है कि राज्य में कानून-व्यवस्था हाशिये पर चली गई है और आपराधिक तत्त्वों के भीतर कोई खौफ नहीं रह गया है।

Written by जनसत्ता; उत्तर प्रदेश से महिलाओं के खिलाफ लगातार जिस तरह के अपराधों की खबरें आ रही हैं, उससे साफ है कि राज्य में कानून-व्यवस्था हाशिये पर चली गई है और आपराधिक तत्त्वों के भीतर कोई खौफ नहीं रह गया है। ताजा वाकया लखीमपुर खीरी जिले में सामने आया है, जहां दलित समुदाय से आने वाली दो नाबालिग और सगी बहनों के शव एक पेड़ पर फंदे से लटके मिले। खबरों के मुताबिक दोनों लड़कियों को उनके घर के सामने से पहले अगवा किया गया था और बाद में उनके शव बरामद हुए।

हालांकि पुलिस ने गुरुवार को यह भी बताया कि उन्हें फंदे पर लटकाने से पहले उनसे बलात्कार किया गया और उनका गला घोंटा गया था। इस मामले में पुलिस की सक्रियता बस इसी स्तर पर दिखती है कि हत्या और बलात्कार के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। अब इस घटना को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। मगर सवाल है कि आखिर वे कौन-सी परिस्थितियां हैं जिसमें आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों की हिम्मत इस कदर बढ़ गई है कि वे राज्य में जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचक रहे!

यह बेवजह नहीं है कि राज्य में भाजपा सरकार की कार्यशैली और घोषित दावों के उलट कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर प्रत्यक्ष दिखती नाकामी पर विपक्षी पार्टियां तल्ख सवाल उठा रही हैं। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद पुलिस ने यह दावा किया कि दोनों बहनों की दो आरोपियों से दोस्ती थी और जब शादी का दबाव पड़ा तो दोनों की हत्या कर दी गई। क्या इस तर्क से आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगा पाने में अपनी नाकामी पर पर्दा डाला जा सकता है?

हालांकि मृत बहनों के परिवार ने पुलिस के दावे को गलत बताया है, लेकिन अगर पुलिस की दलील में कोई दम है भी तो सिर्फ शादी के दबाव की वजह से आरोपियों के भीतर अपनी ही दोस्त की हत्या कर देने की हिम्मत कहां से आई? अगर आपराधिक मानस वाले लोगों को कानून का डर हो तो क्या वे इतनी आसानी से ऐसे अपराधों को अंजाम दे सकते हैं? वहीं भाजपा और उससे जुड़े संगठन राज्य में अपराधों पर लगाम लगाने को लेकर बढ़-चढ़ कर दावा करते हैं, लेकिन इस घटना में क्या अपहरण और हत्या को भी सरकार की नाकामी के बजाय किसी प्रचार के मुद्दे के संजाल में उलझ कर खत्म होने दिया जाएगा?

दरअसल, राज्य में कानून-व्यवस्था के मामले में अधिकतम सख्ती के तमाम दावों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि आपराधिक और असामाजिक तत्त्वों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े में भी उत्तर प्रदेश में अपराधों का ग्राफ चिंतनीय स्तर तक बढ़ चुका है। अगर राज्य सरकार और भाजपा की ओर से आए दिन उत्तर प्रदेश में आपराधिक तत्त्वों के खिलाफ हर स्तर की सख्ती बरतने के दावे किए जाते हैं तो उसका मकसद क्या होता है? हाल ही में पीलीभीत में भी एक दलित नाबालिग के घर में घुस कर उससे सामूहिक बलात्कार के बाद उसे जिंदा जला देने की दहला देने वाली घटना सामने आई थी। लखीमपुर खीरी की घटना ऐसे अपराधों की अगली कड़ी भर लगती है।

अपराधों पर लगाम लगाने को लेकर सरकार अगर इतनी संवेदनशील है तो उसकी घोषित सख्ती अपराधों को अंजाम देने वालों के भीतर खौफ क्यों नहीं पैदा कर पा रही? खासतौर पर सामाजिक रूप से कमजोर तबकों और महिलाओं के खिलाफ अपराधों का जैसा सिलसिला देखने में आ रहा है, उससे तो लगता है कि राज्य में अपराध को खत्म कर देने के दावों में इन तबकों को न्यूनतम सुरक्षा मुहैया करा पाना शामिल नहीं है!

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