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- दो देशों की अटूट...
1971 में दुनिया के मानचित्र पर बना नया देश बंगलादेश इस तथ्य का प्रमाण था कि 1947 में मुहम्मद अली जिन्ना ने मजहब के आधार पर भारत को जिस तरह दो टुकड़ों में बांटा था वह सिर्फ कुछ मुस्लिम लीगी नेताओं की निजी स्वार्थ पूर्ति थी। दरअसल बंगलादेश का उदय ऐसी हकीकत है जिसने एशिया महाद्वीप में साधारण लोगों की मानव चेतना व नागरिक स्वतन्त्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार को प्रतिष्ठापित किया।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जिन्ना ने जो जहर 1947 में उगला था उसे 1971 के आते-आते केवल 24 वर्षों के भीतर ही स्वयं पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने अपने रक्त से इस प्रकार धोया कि 'जय बंगाल' के विस्फोट से पाकिस्तान स्वयं ही दो खंडों में विभक्त हो गया। इसने अप्रैल 1946 में भारत के महान स्वतन्त्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद की कही गई उस बात को भी सही साबित कर दिया कि ''प. पाकिस्तान किसी भी सूरत में पूर्वी पाकिस्तान की हुक्मबरदारी के तहत नहीं रह सकता।
पाकिस्तान के यो दो हिस्से कभी भी एक साथ नहीं रह सकते जब इन दोनों की संस्कृति और विश्वास अलग-अलग हैं तो कौन सी दूसरी चीज बांधे रख सकती है? केवल दोनों इलाकों के लोगों के मुस्लिम होने से बन्धन के स्थायी होने की गारंटी नहीं दी जा सकती।'' मौलाना साहब ने यह विचार तब व्यक्त किया था जब जिन्ना ने पाकिस्तान निर्माण की अपनी मांग के लिए भारत में खून की नदिया बहाने की योजना तैयार कर ली थी और अंग्रेजों ने भारत को एक रखने के अन्तिम प्रयास के तहत 'केबिनेट मिशन' काे लागू कर दिया था।
इतना ही नहीं मौलान साहब ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए यह भी भविष्यवाणी कर दी थी कि शायद जिन्ना को यह मालूम नहीं है कि ''बंगाली कभी भी किसी बाहरी ताकत को अपने ऊपर प्रभावी होने की इजाजत नहीं देते हैं। अतः पूर्वी बंगाल के लोग जरूर पाकिस्तान की व्यवस्था का देर-सबेर विरोध करेंगे।'' ठीक 25 साल बाद मौलाना साहब की भविष्यवाणी सही साबित हुई और अवामी लीग के नेता स्व. शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने आमार शोनार बांग्ला का उद्घोष करके पाकिस्तान को वजूद में लाने वाले सिद्धान्त को जिन्ना की कब्र में ही दफना दिया।