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- इतिहास में दफन...
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाए जाने के साथ ही इस वर्ष उनके सम्मान में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का सिलसिला चल निकला है। इस अवसर पर केंद्र सरकार की ओर से कई भव्य कार्यक्रम प्रस्तावित हैं। इसे लेकर एक 85 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है, जिसमें नेताजी के कुछ पारिवारिक सदस्यों के साथ दो पूर्व प्रधानमंत्री, कई केंद्रीय मंत्रियों, ममता बनर्जी समेत सात राज्यों के मुख्यमंत्री, विभिन्न पार्टियों के सांसद-विधायक, इतिहासकार और अन्य प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं। इस समिति को सर्वदलीय रूप देकर प्रधानमंत्री ने स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का पालन किया है, परंतु इस समिति में एक नाम ऐसा भी है, जो कई प्रश्नों को जन्म देता है और वह नाम है-बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य बुद्धदेव भट्टाचार्य का। मार्क्सवादी बुद्धदेव का जन्म उस कालखंड में हुआ था, जब वामपंथी अंग्रेजों के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी कर रहे थे। इस दौरान वे गांधीजी, नेताजी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को अपशब्दों और अपमानजनक संज्ञाओं से कलंकित कर रहे थे। 1940 के दशक में वामपंथियों द्वारा प्रकाशित पुस्तिका अनमास्क्ड पार्टीज एंड पॉलिटिक्स में गांधीजी के साथ नेताजी को अंधा मसीहा कहा गया। नेताजी के प्रति वाम शब्दावली बेहद अपमानजनक हो गई थी। उन्हेंं काला गिरोह, गद्दार बोस और हिटलर का अगुआ दस्ता आदि कहा जाने लगा। वामपंथियों ने नेताजी की आजाद हिंद फौज को भारतीय भूमि पर लूट, डाका, विध्वंस मचाने वाला घोषित कर दिया। वामपंथी पत्रिकाओं में प्रकाशित कार्टूनों के माध्यम से नेताजी को तोजो का पालतू बौना तक बताया गया।