सम्पादकीय

Ukraine War : रूस और यूक्रेन युद्ध पर पश्चिमी देशों की कहानी हर कोई हजम नहीं कर पा रहा है

Rani Sahu
7 May 2022 9:03 AM GMT
Ukraine War : रूस और यूक्रेन युद्ध पर पश्चिमी देशों की कहानी हर कोई हजम नहीं कर पा रहा है
x
यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के लिए ट्रान्साटलांटिक एलायंस और उसके यूरोपीय सहयोगियों का दृष्टिकोण भारी बहस का विषय रहा है

के वी रमेश

यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के लिए ट्रान्साटलांटिक एलायंस और उसके यूरोपीय सहयोगियों का दृष्टिकोण भारी बहस का विषय रहा है, लेकिन अब तक पश्चिमी देश रूस को संघर्ष के लिए दोषी ठहराने की बात पर जोर देने में सक्षम रहे हैं. पश्चिम की आलोचना का मुख्य कारण है- व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) द्वारा किए गए भयानक आक्रमण और उनका सत्तावादीव्यक्तित्व. लेकिन युद्ध के मूल कारण 1991 से हैं, जब सोवियत संघ खुद को विघटित कर रहा था और बेहद कमजोर हो चुके रूस के असहाय गुस्से के सामने नाटो (NATO) का पूर्व की ओर विस्तार हो रहा था. मॉस्को में पूर्व अमेरिकी राजदूतों सहित कई पश्चिमी विश्लेषकों द्वारा अक्सर यह बताया गया है कि शीत युद्ध (Cold War) की समाप्ति और 'फ्री वर्ल्ड' के लिए सोवियत संघ से होने वाले खतरे का अंत होने के साथ, नाटो के विस्तार का कोई औचित्य नहीं था.
वास्तव में, यूरोप के लिए एक समावेशी सुरक्षा ढांचा तैयार करना जिसमें भविष्य के किसी भी टकराव को खत्म करने के लिए मास्को की भागीदारी हो या रूस को नाटो में शामिल करने से पश्चिम के इनकार को विफलता के तौर पर देखा गया. जर्मनी में हिटलर के उदय के लिए जिम्मेदार घोर अन्यायपूर्ण वर्साय संधि (Versailles treaty) की तर्ज पर पश्चिम की विफलता ने विद्रोही रूस के उदय के बीज बोए. एक तरफ यूक्रेन में युद्ध की आग धधकती है और दुनिया भोजन सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के रूप में एक अर्थहीन युद्ध की कीमत चुकाती है, दूसरी तरफ इस बात पर असमंजस बरक़रार है कि मौजूदा संकट का कारण क्या है.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का तर्क
सोवियत संघ के पतन के समय अमेरिकी राष्ट्रपति रह चुके बिल क्लिंटन (Bill Clinton) ने 'द अटलांटिक' में हाल के एक लेख में तर्क दिया है कि रूस की सीमाओं के करीब नाटो के विस्तार ने रूस के लिए खतरा पैदा नहीं किया, बल्कि केवल पूर्वी यूरोपीय देशों की सुरक्षा आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित और उनके लायक बनाया. उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री मैडलिन अलब्राइट (Madeline Albright) और पूर्व स्वीडिश प्रधान मंत्री कार्ल बिल्ड्ट (Carl Bildt) का हवाला देते हुए कहा कि यह पूर्व की तरफ नाटो का विस्तार नहीं, बल्कि पूर्व वारसॉ संधि (Warsaw Pact) देशों का पश्चिम की ओर झुकाव था.
लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि नाटो के विस्तार के खिलाफ जोरदार चेतावनी दी गई थी. 'जिस समय मैंने नाटो विस्तार का प्रस्ताव रखा, उस समय दूसरी तरफ बहुत से लोग इसके पक्ष में थे. शीत युद्ध के दौरान नियंत्रण की नीति की वकालत करने के लिए प्रसिद्ध महान राजनयिक जॉर्ज केनन (George Kennan) ने तर्क दिया कि बर्लिन की दीवार गिरने (fall of the Berlin Wall) और वारसॉ पैक्ट (Warsaw Pact) समाप्त होने के साथ नाटो (NATO) ने अपनी उपयोगिता को समाप्त कर दिया.
न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार टॉम फ्रीडमैन (Tom Friedman) ने कहा कि जब रूस कम्युनिस्ट शासन के अंतिम वर्षों की आर्थिक कमजोरी से उबरेगा तब नाटो के विस्तार से अपमानित और घिरा हुआ महसूस करेगा और हम एक भयानक प्रतिक्रिया देखेंगे. रूस मामलों के जानकार माइक मंडेलबाम (Mike Mandelbaum) के यह तर्क देते देते हैं कि यह एक गलती थी और यह लोकतंत्र या पूंजीवाद को बढ़ावा नहीं देगा.'
कई लोग हैं रूस को अलग-थलग करने के खिलाफ
रूस को अलग-थलग करने के खिलाफ तर्क देने वालों में संयुक्त राज्य अमेरिका के फॉर्मर सेक्रेटरी और आक्रामक सैन्य कार्रवाई का प्रमुख हिमायती हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger), मास्को में पूर्व अमेरिकी राजदूत विलियम एफ बर्न्स (William F Burns) और जैक एफ मैटलॉक (Jack F Matlock) और राजदूत जोनाथन डीन (Jonathan Dean), 1979 से 1981 तक म्यूचुअल और बैलेंस्ड फोर्स रिडक्शन (Mutual and Balanced Force Reductions) वार्ता के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि रहे माइकल मंडेलबाउम (Michael Mandelbaum), जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में अमेरिकी विदेश नीति के प्रोफेसर एमेरिटस क्रिस्चियन ए हेर्टर (Christian A. Herter), जॉन मियरशाइमर (John Mearsheimer) और शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आर वेंडेल हैरिसन (R. Wendell Harrison) प्रमुख हैं.
दुविधाजनक बहस जारी है
विभिन्न यूनिवर्सिटी, थिंक टैंक, अमेरिकी सीनेट कमेटी और यूरोपीय शिखर सम्मेलनों के माध्यम से अपनी जगह बना चुकी तीन दशक पुरानी बहस एक बार फिर सामने आई है. ऐसा दुनिया के दो प्रभावशाली हस्तियों, पोप फ्रांसिस (Pope Francis) और ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति इनासियो लूला डा सिल्वा (Inacio Lula Da Silva), द्वारा दिए गए बयानों के कारण हुआ है. गौरतलब है कि ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लैटिन अमेरिका में सबसे बड़े और राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण देश के राष्ट्रपति पद के लिए जायर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) को चुनौती देने के लिए तैयार हैं.
रूस को उकसा रहा है नाटो : पोप
पूर्व में नाटो के विस्तार की तरफ इशारा करते हुए पोप ने इतालवी समाचार पत्र कोरिएरे डेला सेरा (Corriere Della Serra) को दिए इंटरव्यू में कहा कि शायद यह नाटो के द्वारा रूस को उकसाने जैसा था, जिसके कारण यूक्रेन संघर्ष हुआ. पोप ने पश्चिम द्वारा यूक्रेन को हथियार पहुंचाने की सलाह पर भी अपना संदेह व्यक्त किया. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि यूक्रेन के लड़ाकू विमानों को आपूर्ति करना सही है या नहीं… जो बात साफ़ दिखती है वह यह है कि उस देश में दोनों पक्ष नए हथियार आजमा रहे हैं. रूसियों को अभी पता चला है कि टैंक बेकार हैं और वे नए हथियार विकसित कर रहे होंगे. युद्ध अपने शस्त्रागार (arsenals) का परीक्षण करने के लिए भी लड़े जाते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) से पहले स्पेनिश गृहयुद्ध (Spanish Civil War) में यही हुआ था. हथियारों का उत्पादन करना और बेचना शर्मनाक है, लेकिन कुछ लोग ही इसके खिलाफ खड़े होने के लिए पर्याप्त साहस जुटा पाते हैं." पोप फ्रांसिस ने यह भी खुलासा किया कि हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ओर्बन (Viktor Orban) ने उनसे मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि पुतिन 9 मई को युद्ध समाप्त कर देंगे क्योंकि इस दिन को रूस में नाजी जर्मनी पर जीत के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है.
पोप के विचारों को दोहराते हुए ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लूला (Lula), जिन्हें इसी उपनाम से जाना जाता है, ने भी यूक्रेन संघर्ष पर वेस्टर्न नैरेटिव (Western narrative) पर अपना संदेह व्यक्त किया. लूला ने टाइम मैगजीन को दिए इंटरव्यू में कहा, 'यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) युद्ध के लिए उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन.'
यूक्रेन संकट पर ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लूला ने क्या कहा?
टाइम मैगजीन के कवर पेज पर छपे लूला ने कहा, 'हम राजनेता वही काटते हैं जो हम बोते हैं. अगर मैं भाईचारा, एकजुटता, सद्भाव बोता हूं, तो मैं अच्छी चीजें काटूंगा. अगर मैं कलह बोता हूं, तो मैं झगड़े काटूंगा. पुतिन को यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करना चाहिए था. लेकिन यह सिर्फ पुतिन नहीं हैं जो दोषी हैं. अमेरिका और यूरोपीय संघ भी इसमें पूरी तरह दोषी हैं. यूक्रेन पर आक्रमण का कारण क्या था? नाटो? तब अमेरिका और यूरोप को कहना चाहिए था: यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा. इससे समस्या का समाधान हो जाता'.
पश्चिमी नेताओं की आलोचना करते हुए लूला ने कहा कि वे यूक्रेन में हथियार भेजकर शांति के बजाय युद्ध कर रहे हैं. उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति की भी आलोचना की. उन्होंने कहा, 'मैं यूक्रेन के राष्ट्रपति को नहीं जानता. लेकिन उनका व्यवहार थोड़ा अजीब है. ऐसा लगता है कि वह तमाशे का हिस्सा हैं. वह सुबह, दोपहर और रात टेलीविजन पर होते हैं. वह यूके की संसद, जर्मन संसद, फ्रांसीसी संसद, इतालवी संसद में होते हैं, मानो वे एक राजनीतिक अभियान चला रहे हों. उन्हें बातचीत की मेज पर होना चाहिए.'
लूला का रुख भारत के करीब
पोप और पांच विकासशील देशों के गठबंधन ब्रिक्स (BRICS) में ब्राजील का नेतृत्व करने वाले लूला का रुख भारत की स्थिति के करीब है. दोनों तरफ हथियार की सप्लाई करने के बजाए, भारत का मानना है कि यूक्रेन समस्या के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति का रास्ता अख्तियार किया जाना चाहिए. लूला यह भी संकेत देते हैं कि आने वाले दिनों में यूक्रेन संघर्ष के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने के लिए पश्चिम अधिक दबाव में आ जाएगा. यदि लूला नवंबर में फिर से राष्ट्रपति चुने जाते हैं, तो वह अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी स्थिति भारत के करीब लाने का प्रयास करेंगे. उनके लिए भारत एक ऐसा देश है जिसके साथ ब्राजील ने घनिष्ठ संबंध बनाए और ब्रिक्स (BRICS) को जन्म दिया.
Next Story