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सम्पादकीय
यूक्रेन युद्ध : महंगाई से कैसे निपटेगी सरकार, बढ़ती जा रहीं कच्चे तेल की कीमतें
Rounak Dey
25 March 2022 1:49 AM GMT

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कई राज्यों ने वैट में कमी की थी, वैसे ही कदम अब फिर जरूरी दिखाई दे रहे हैं।
इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने से वैश्विक जिंस बाजार के अस्त-व्यस्त होने से दुनिया के सभी देशों की तरह भारत में भी महंगाई बढ़ रही है। यद्यपि महंगाई की ऊंचाई अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की, पाकिस्तान आदि अधिकांश देशों में भारत की तुलना में कई गुना अधिक है, लेकिन फिर भी महंगाई से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था की मुश्किलें कम करने के लिए नए रणनीतिक प्रयासों की आवश्यकता है।
22 मार्च को सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने जहां पेट्रोल और डीजल के दाम में 80 पैसे प्रति लीटर और घरेलू रसोई गैस सिलिंडर के दाम में 50 रुपये का इजाफा किया, वहीं 23 मार्च को पेट्रोल-डीजल के दाम में फिर 80 पैसे की वृद्धि की है। इसके पहले 21 मार्च को तेल कंपनियों ने थोक खरीदारी के लिए डीजल के दाम में एकबारगी 25 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया था। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के कारण रिकॉर्ड 137 दिनों तक पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बदली गई थीं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम के कारण अगले कुछ दिनों में पेट्रोल-डीजल के दाम में किसी बड़ी बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता है। कुछ सप्ताह में चीन में कोरोना संक्रमण में लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए कई शहरों में लॉकडाउन लगा दिए जाने से भारत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, ऑटोमोबाइल और कच्चे माल की आपूर्ति में कमी आने से इन क्षेत्रों की वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगी हैं। पिछले कुछ समय से देश में खाने के तेल के दाम आसमान छू रहे हैं।
उर्वरक के दाम पहले से ही बढ़े हुए हैं। 14 मार्च को सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर फरवरी में बढ़कर 6.07 फीसदी रही, जो इससे पिछले महीने 6.01 फीसदी थी। इसमें बढ़ोतरी मुख्य रूप से खाद्य एवं पेय, परिधान एवं फुटवियर और ईंधन एवं बिजली समूहों में तेजी की वजह से हुई है। देश में खुदरा महंगाई फरवरी में बढ़कर आठ महीनों के सबसे ऊंचे स्तर पर रही है।
जब तेल और जिंस की कीमतें बढ़ती हैं, तो गरीब व मध्यम वर्ग के साथ आर्थिक वृद्धि प्रभावित होती है। सरकार और रिजर्व बैंक को नई रणनीति के साथ कदम उठाने की जरूरत है। कालाबाजारी पर नियंत्रण करना होगा। देश को प्रतिदिन करीब 50 लाख बैरल पेट्रोलियम पदार्थों की जरूरत होती है। भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी आयात करता है, इस आयात का करीब 60 फीसदी हिस्सा खाड़ी देशों इराक, सऊदी अरब और यूएई आदि से आता है।
कच्चे तेल के वैश्विक दाम में तेजी के बीच तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम में दिलचस्पी और बढ़ानी होगी। यद्यपि रूस से भारत का तेल आयात एक प्रतिशत से भी कम है, लेकिन अब रूस से तेल आयात में वृद्धि लाभप्रद हो सकती है। जिस तरह पिछले वर्ष पेट्रोल-डीजल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक होने पर केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर सीमा व उत्पाद शुल्क में और कई राज्यों ने वैट में कमी की थी, वैसे ही कदम अब फिर जरूरी दिखाई दे रहे हैं।
सोर्स: अमर उजाला
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