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भारत के पक्ष और विपक्ष के नेता भारत की यूक्रेन-नीति के बारे में एक-दूसरे से सहमत दिखाई पड़े
By वेद प्रताप वैदिक।
विदेश मंत्रालय की सलाहकार समिति में भारत के पक्ष और विपक्ष के नेता भारत की यूक्रेन-नीति के बारे में एक-दूसरे से सहमत दिखाई पड़े। ये बात दूसरी है कि भारतीय छात्रों को यूक्रेन से बाहर निकाल लाने के सवाल पर कुछ विरोधी नेता अब भी सरकार की खिंचाई कर रहे हैं। असलियत तो यह है कि चाहे शुरु में भारत सरकार ने थोड़ी लापरवाही दिखाई लेकिन अब हमारे चार-चार केंद्रीय मंत्री और दूतावासों के सारे कर्मचारी अपने छात्रों को सुरक्षित लौटाने में जुटे हुए हैं। यह संतोष का विषय है कि हमारे बहुत ज्यादा नौजवान हताहत नहीं हुए हैं। एक नौजवान की जो मृत्यु हुई, वह भी बहुत दुखद रही लेकिन हमारे कई नौजवान कुछ यूक्रेनी शहरों में अभी भी फंसे हुए हैं। कुछ परिचितों ने मुझे यह भी बताया कि यूक्रेन के पड़ौसी देशों में हमारे दूतावास के फोन तक नहीं उठते। लेकिन बहुत-से नौजवानों और उनके माता-पिता ने उनके सुरक्षित लौट आने पर बेहद प्रसन्नता प्रकट की है। भारत सरकार ने अपने छात्रों की वापसी पर तो काफी ध्यान दिया है।
यदि वह ध्यान नहीं देती तो भारत में उसे काफी बदनामी मोल लेनी पड़ती। उसने अपने प्रयत्नों का प्रचार भी जमकर किया है ताकि चुनाव के मौसम में उसका फायदा भी मिल सके। लेकिन जहां तक विदेश नीति का सवाल है, दुनिया के कई छोटे-मोटे देशों के मुकाबले भारत पिछड़ गया है। जब से यूक्रेन पर रूस का हमला हुआ है, फ्रांस और जर्मनी दोनों पक्षों से लगातार बात कर रहे हैं। तुर्की और इस्राइल जैसे छोटे-मोटे देश भी मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं। इस्राइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट तो खुद मास्को पहुंच गए हैं। उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता की कोशिश भी की है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर झेलेंस्की यहूदी हैं।
लेकिन सारा संसार जानता है कि इस्राइल तो अमेरिका का घनिष्टतम मित्र है और तुर्की नाटो का सदस्य है जबकि भारत न तो रूस से बंधा हुआ है और न ही अमेरिका से। दोनों से उसके रिश्ते बराबरी के हैं। वह दोनों से हथियार खरीदता है तो उसका मूल्य भी चुकाता है। वह किसी के भी दबाव में नहीं है। उसने अभी तक किसी का भी पक्ष नहीं लिया है। मान लिया कि हमारे प्रधानमंत्री अभी तक उत्तर प्रदेश आदि के चुनाव में व्यस्त और चिंतित थे लेकिन अब भी मौका है, जबकि वे सक्रियता दिखाएं तो यूक्रेन-संकट पर विराम लग सकता है। वरना इसका सबसे ज्यादा फायदा चीन उठाकर दुनिया की अत्यंत प्रभावशाली महाशक्ति बनकर उभरेगा, जो कि भारत का बड़ा सिरदर्द बन सकता है।
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