सम्पादकीय

Ukraine Crisis: क्यों लंबा खिंच सकता है यूक्रेन संकट?

Neha Dani
3 Oct 2022 5:39 AM GMT
Ukraine Crisis: क्यों लंबा खिंच सकता है यूक्रेन संकट?
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अमेरिका ने शीतयुद्ध की रणनीति को ही अपनाया है।

रूस के राष्ट्रपति पुतिन-'स्केलेटिंग टू डि-स्केलेट' की रणनीति (तनाव बढ़ाकर उसे घटाने की रणनीति) के पुराने खिलाड़ी है। इसका अर्थ है कि वह परमाणु हमले की धमकी देकर युद्ध को लंबे समय तक खींचना चाहते हैं, ताकि उनकी रणनीतिक मंशा पूरी हो सके। इस युद्ध को लंबा खींचने के पीछे तीन प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला- यूक्रेनी प्रतिरोध को कम करना, ताकि वह तेजी से दोनेत्सक, लुहांस्क, मारियुपोल और खेरोसन के सीमावर्ती इलाकों को जनमत संग्रह के साथ अपने कब्जे में कर सकें। ये क्षेत्र रूस की सीमाओं की तरफ नाटो-यूरोपीय संघ के विस्तार के खिलाफ बफर जोन प्रदान करते हैं। दूसरा-यह युद्ध अमेरिका और नाटो की कायरता को दर्शाता है, चाहे कितने ही प्रतिबंध क्यों न लगाए हों। वास्तव में हाल के महीनों में रूस के औद्योगिक उत्पादन ने पश्चिमी विश्लेषकों को गलत साबित किया है। तीसरा-जब तक यह युद्ध जारी रहेगा, रूस अपने गैस भंडारों को बेचना जारी रख सकता है और भारी मुनाफा कमा सकता है, जिस पर यूरोपीय संघ ने अब तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। हालांकि अमेरिका भी रणनीतिक कारणों से इस संघर्ष को समाप्त करने की जल्दी में नहीं है।

बीच में यह उम्मीद बन रही थी कि रूस अब शांति की गुहार लगाएगा, जब यूक्रेन ने रूस पर जवाबी हमला किया था और खारकीव के आसपास उसे सफलता मिली थी। कुछ लोगों ने बताया था कि रूस ने अपनी सेना को पीछे हटने की अनुमति क्यों दी और क्या यह लौटना मॉस्को की किसी बड़ी युद्ध योजना का हिस्सा है? इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि रूसियों ने किसी अन्य युद्ध के लिए अपनी सेना को पुनर्गठित करने के लिए पीछे लौटाया है। यही कारण है कि पुतिन ने युद्ध के बाद करीब तीन लाख सेना को लामबंदी का आदेश दिया है। यूक्रेन पर हमले के शुरुआती दिनों से ही उनके रवैये में घमंड की बू आ रही थी, क्योंकि यूक्रेन को हराने की क्षमता पर उन्हें पूरा भरोसा था। लेकिन यूक्रेन ने अपनी सुरक्षा को नागरिकों एवं सैनिकों की लामबंदी से मजबूत किया, जिनकी संख्या यूक्रेन में मौजूद रूसी सेना से अधिक थी।
इसके अलावा एक लाख से अधिक अमेरिकी और नाटो सैनिक यूक्रेन में एवं रूसी सीमा पर विभिन्न रूप में तैनात किए गए। लेकिन नाटो के ठिकानों पर सौ परमाणु ग्रैविटी बमों की तैनाती की सूचना है, जिस पर रूस की नजर है और इसीलिए इस बात का खतरा है कि पुतिन जब अगले महीने यूरोप में भीषण सर्दियों की शुरुआत से पहले अपनी रणनीति को नवीनीकृत करेंगे, तब परमाणु हथियार का भी वह इस्तेमाल कर सकते हैं। यहां परमाणु रणनीति की अनिवार्यता को समझना जरूरी है। सबसे पहली बात है कि परमाणु खतरे का इतिहास परमाणु हथियारों के गैर-उपयोग पर आधारित है। मात्र एक ही बार अगस्त, 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर बिना किसी चेतावनी के परमाणु हमले हुए थे, जो विनाशकारी साबित हुए। इसने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान को समर्पण करने के लिए मजबूर किया और जापान पर कब्जा करने की सोवियत योजनाओं की पुष्टि की। मास्को उसे भूला नहीं है।
दूसरा, परमाणु हथियारों का उपयोग किसी भी परमाणु संपन्न देश के लिए पहला विकल्प नहीं हो सकता। यह अंतिम विकल्प होता है, जब उनका अस्तित्व एक राष्ट्र-राज्य के रूप में दांव पर होता है। और परमाणु हमला जबावी कार्रवाई भी आमंत्रित करता है, जिसमें दोनों पक्षों को विनाश झेलना पड़ता है। इसी कारण कोई भी तानाशाह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से बचता है। फिर भी यह आशंका बनी रहती है कि युद्ध में एक बड़े उलटफेर को रोकने के लिए छोटे परमाणु बमों का इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन अमेरिका की धमकी भी रूस को रोकने में नाकाम है, क्योंकि अतीत में अमेरिका ने चेतावनियों के उल्लंघन के बाद भी अपनी धमकी पर अमल नहीं किया। इसलिए रूस के इतनी आसानी से झुकने की संभावना नहीं है। अपने संसाधनों के बूते रूस एक महाशक्ति है, तेल और गैस का सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते वह अमेरिका की तुलना में इस युद्ध को लंबे समय तक जारी रख सकता है। याद रहे, अमेरिका अफगानिस्तान में दो दशकों तक फंसा हुआ था।
अमेरिकी प्रतिबंधों को रूस के केंद्रीय बैंक ने तत्काल पूंजी नियंत्रण उपायों और ब्याज दरों में बढ़ोतरी करके कम किया। रूस कई बड़े उद्यमों का मालिक है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का 60 फीसदी और एम-एसएमई उत्पादन का 25 फीसदी से अधिक है। यह असंतुलन विकास को बाधित करता है, लेकिन संकट में अर्थव्यवस्था को बचाता भी है। और रूसी अतीत में भी वित्तीय संकटों का सामना करते रहे हैं, पश्चिम के अनुमान से ज्यादा दिनों तक वे इस संकट को झेल सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुतिन के हाथों में अब भी यूरोप को गैस आपूर्ति की चाबी है, और यूरोपीय संघ के इस दावे के बावजूद कि वे दिसंबर की शुरुआत तक गैस आपूर्ति संकट के लिए तैयार हो जाएंगे, रूस उन्हें कड़ाके की ठंड में मजा चखा सकता है। यूरोपीय देश जहां से भी गैस खरीद सकते हैं, खरीद रहे हैं। यहां तक कि चीन से भी, क्योंकि चीन अमेरिकी प्रतिबंध के दायरे में नहीं आता है। इसलिए बीजिंग रूस से गैस खरीदता है और उसे यूरोपीय देशों को बेचकर मुनाफा कमाता है, क्योंकि चीनी अर्थव्यवस्था में भारी मंदी चल रही है और चीन के पास अतिरिक्त गैस है। जानकारों के मुताबिक, जबसे प्रतिबंध लागू हुए हैं, रूस ने तेल और गैस की बिक्री से 175 अरब डॉलर की कमाई की है।
अमेरिका यूक्रेन संकट को क्यों जारी रखना चाहता है? इसका पहला कारण यह है कि वह रूस की सैन्य क्षमता को कमजोर करना चाहता है, जिससे यूरोप के लिए खतरा कम हो जाएगा, क्योंकि अफगानिस्तान में अपमान के बाद यूरोप के नेतृत्व ने अमेरिका को भू-राजनीति में एक नया मकसद दिया है। दूसरा यह कि यूक्रेन संकट (जो वे छद्म रूप से लड़ रहे हैं) अमेरिकियों को एकजुट करता है और सैन्य जवानों के नुकसान से बचाता है, जैसा कि उन्होंने पिछले दो दशकों में एशिया में देखा है। इसके अलावा यह युद्ध अमेरिका को यूक्रेन और यूरोप में हथियारों का एक नया बाजार उपलब्ध करता है। कुल मिलाकर, अमेरिका ने शीतयुद्ध की रणनीति को ही अपनाया है।

सोर्स: अमर उजाला

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