सम्पादकीय

यूजी कृष्णमूर्ति: एंटी गुरु, क्रोध से भरा संत या खतरनाक विचारक

Rani Sahu
27 April 2022 4:01 PM GMT
यूजी कृष्णमूर्ति: एंटी गुरु, क्रोध से भरा संत या खतरनाक विचारक
x
जे. कृष्णमूर्ति नहीं, यूजी. कृष्णमूर्ति. मैं यूजी. कृष्णमूर्ति के बारे में बात कर रहा हूं

डॉ॰ विजय अग्रवाल

जे. कृष्णमूर्ति नहीं, यूजी. कृष्णमूर्ति. मैं यूजी. कृष्णमूर्ति के बारे में बात कर रहा हूं, जिनके साथ मुझे अपनी जिन्दगी के कुछ बहुत ही बेशकीमती लम्हें गुजारने का सौभाग्य मिला. यदि वे आज जीवित होते, तो दो महिने बाद वे अपने जीवन का 104 वां वर्ष पूरा कर रहे होते, जिसके बारे में सोचना बेकार है. संतोष इस बात का जरूर है कि वे इस दुनिया में 89 वर्ष तक रहे, और सन् 2007 में इटली में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा.
चूंकि यूजी का ज्यादातर वक्त विदेशों में गुजरता था, इसलिए भारत में उनका नाम बहुत ज्ञात नहीं है. लेकिन फिल्मकार महेश भट्ट के जीवन में क्रांतिकारी रोल निभाने के बाद से ये बहुत अज्ञात भी नहीं रह गये थे. अज्ञात रहने का एक कारण यह भी था कि इन्होंने न तो अपने विचारों को लेकर सिलसिलेवार कोई पुस्तक लिखी, और न ही अपने विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए किसी संस्था का गठन किया.
इस मायने में ये सुकरात और प्लेटो की तरह थे कि जब भी कुछ लोग आ गये, बात शुरू हो गई. बस, यही उनका सब कुछ था. फिर भी उनके कुछ मुरीदों ने उनसे बातचीत करके उन्हें पुस्तकों के रूप में लाने का बड़ा काम किया है. महेश भट्ट के अलावा अब अन्य कोई लोगों ने इनके जीवन और विचारों पर पुस्तकें लिखी हैं. मैंने स्वयं इनके साक्षात्कारों पर आधारित एक अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद हिन्दी में 'दिमाग ही दुश्मन है', शीर्षक से किया है.
यू.जी. कृष्णमूर्ति को लोग यूजी ही कहते थे. पुस्तक के नाम से ही आप कुछ तो अनुमान लगा ही सकते हैं कि यूजी किस प्रकार के विचारक रहे होंगे. इन्हें 'एंटी गुरू', 'क्रोध से भरा संत' या फिर 'विध्वंसक विचारक' के रूप में जाना जाता था. फिर भी लोग थे कि इनके पास जाना, बैठना और उन्हें सुनना पसंद करते थे. उनसे बातचीत करने का मतलब था, 'स्वयं के लिए बेचैनी को आमंत्रित करना.'
इसका कारण यह था कि वे हम सबके भीतर जड़ जमाकर बैठे हुए सदियों से चले आ रहे उन सभी परम्परागत विचारों को अपने तर्क द्वारा नंगा करके आपकी वास्तविकता से परिचित करा देते थे. आपको लगने लगता था कि अब मैं तो कुछ भी नहीं रहा. अभी तक मैं जो था, वह तो मैं था ही नहीं. यानी कि साँस के चलते हुए भी मृत्यु का एहसास होना. फिल्मकार महेश भट्ट ने अपनी छोटी सी पुस्तक 'मैं कौन हूँ' में अपने इसी विलक्षण अनुभव को इन शब्दों में रूपायित किया है, यू.जी. कृष्णमूर्ति मेरे कथा नायक हैं. मेरा यू.जी. से मिलना मौत के अनुभव का मेरा अपना तरीका है.
आइये, यहाँ हम यूजी के अंगारों की तरह धधकते कुछ ऐसे विचारों के साथ कुछ वक्त बिताने का जोखिम मोल लें.
तुम अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कुछ उत्तरों का उपयोग करना चाहते हो, इसलिए वे समस्याएँ बनी रहती हैं. इन हजारों पंडित पुरोहितों, मनोवैज्ञानिकों और राजनेताओं द्वारा जो अनेक समाधान बताए जाते हैं, वे समाधान हैं ही नहीं, यह बिल्कुल स्पष्ट है. यदि इसका कोई सही उत्तर होता, तो कोई समस्या ही नहीं रहती. यह तुम्हें केवल अधिक काम करने में लगा देंगे, अधिक ध्यान में लगा देंगे, अधिक विनम्र बना देंगे, योगासन में लगा देंगे और इसी तरह के ढेर सारे कामों में उलझा देंगे. यही सब कुछ है, जो वे कर सकते हैं.
शिक्षक, गुरु या नेता, जो भी इन समस्याओं का समाधान बताते हैं, वे सब व्यर्थ हैं. वे कोई भी ईमानदारी का काम नहीं कर रहे हैं, सिवाय बाजार में अपनी सस्ती और बेकार की चीजें बेचने के. यदि तुम अपनी आशाओं, भय और भोलेपन को किनारे कर दो और इन सबसे एक व्यापारी की तरह व्यवहार करो, तो तुम देखोगे कि ये कोई अच्छा सामान नहीं देते और न ही कभी देंगे. लेकिन तुम हो कि इन्हें विशेषज्ञ समझकर इनके पास से फालतू की चीजें खरीदते चले जाते हो.
यदि तुम आत्महत्या कर लो, तो इससे समस्या सुलझाने में कोई भी सहायता नहीं मिलेगी. आत्महत्या के बाद तुरंत यह शरीर नष्ट होना शुरू हो जाता है और जीवन के दूसरे रूप में वापस लौटने लगता है. जब तुम मरते हो, तब तुम जीवन की निरंतरता में ही कुछ जोड़ते हो. तुम कुछ भी समाप्त नहीं करते.
जीवन का न तो प्रारंभ है और न ही अंत. मरा हुआ शरीर कब्र में भूखी चींटियों का पेट भरता है और वह सड़कर मिट्टी के रसायनों को समृद्ध करता है, अर्थात् वह जीवन के अन्य रूपों का पोषण करता है. तुम अपने जीवन का अंत नहीं कर सकते. यह असंभव है. यह शरीर अमर है.
जिस स्थिति को तुम संपूर्ण सजगता की स्थिति कहते हो, वह मन बहलाने की बात है. सजगता ! स्वयं को तथा दूसरों को मूर्ख बनाने के लिए कितना अच्छा गढ़ा गया शब्द है. तुम हर पग पर सजग नहीं रह सकते. यदि तुम ऐसा करते हो, तो बहुत अधिक सतर्क हो जाओगे तथा डगमगा कर चलने लगोगे. मैं ऐसे आदमी को जानता हूँ, जो एक बंदरगाह पर कप्तान था. वह 'तटस्थ सजगता' के बारे में पढ़ता था और उसे लागू करने की कोशिश करता था. जिस जहाज को वह चला रहा था, उसे वह नष्ट करते-करते बचा. चलना स्वाभाविक है और यदि तुमने हर कदम पर सजग रहने की कोशिश की, तो तुम पागल हो जाओगे. इसलिए ध्यान जैसी कोई चीज मत ढूँढ़ो. तुम किसी ध्यान योग के उपाय की खोज मत करो. चीजें अपने आप में ही बहुत बुरी हैं. फिर ध्यान योग तो इनसे भी बुरा है.


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story