सम्पादकीय

खुद 'जूतम-पैजार' की बात करने वाले उद्धव ठाकरे, किस मुंह से नारायण राणे को सजा देंगे?

Gulabi
26 Aug 2021 6:20 AM GMT
खुद जूतम-पैजार की बात करने वाले उद्धव ठाकरे, किस मुंह से नारायण राणे को सजा देंगे?
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महाराष्ट्र थिएटर की दुनिया में काफी लोकप्रिय है

अजय झा।

महाराष्ट्र (Maharashtra) थिएटर की दुनिया में काफी लोकप्रिय है. लॉकडाउन (Lockdown) में थिएटर तो बंद हो गए पर नाटक नहीं. आये दिन वहां के राजनीतिक रंगमंच पर कोई ना कोई नाटक होता ही रहता है. अब इस श्रृंखला में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे (Narayan Rane) की गिरफ़्तारी का अध्याय जुड़ गया है. राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के बारे में क्या कहा वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उनकी ठाकरे के कान के नीचे एक चपत लगाने की बात पर उनकी गिरफ़्तारी. उल्लेखनीय है कि राणे ने चपत लगायी नहीं थी, सिर्फ इस बारे में बात की थी, पर 'माननीय' मुख्यमंत्री के खिलाफ पूर्व शिवसेना (Shiv Sena) के नेता, जो अब बीजेपी (BJP) के सदस्य हैं, के बोलने की जुर्रत की सजा तो उन्हें मिलनी ही थी, और मिली भी. पुलिस हिरासत में राणे को नौ घंटे गुजारना पड़ा. महाराष्ट्र में एक अलिखित कानून बन गया है कि जो भी ठाकरे के खिलफ आवाज़ उठाएगा उसे जेल की हवा खानी ही होगी, चाहे वह अर्नब गोस्वामी हों या नारायण राणे.

बीजेपी के विरोधी अब तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही असहिष्णुता का आरोप लगाते रहे हैं. मोदी ने गुजरात में लगातार तीन बार बहुमत ला कर सरकार बनाई और अब लगातार दो बार उन्हें केंद्र में देश की जनता का बहुमत मिला है. मोदी की तुलना में ठाकरे की शिवसेना को 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में 288 सीटों वाली विधानसभा में मात्र 56 सीटों पर ही विजय मिली थी और वह भी जब महाराष्ट्र की जनता ने मोदी के नाम पर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत दिया था. शिवसेना 124 पर चुनाव लड़ी थी.
पूरे महाराष्ट्र की बात करें तो 16.41 प्रतिशत मतदाताओं का ही शिवसेना को समर्थन मिला था. बीजेपी 164 पर चुनाव लड़ी और 105 सीटों पर उसके विधायक चुने गए थे. लेकिन उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने की जिद थी. बीजेपी नहीं मानी. क्योंकि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का नियम यही था कि जिसके ज्यादा विधायक होंगे उसी दल का मुख्यमंत्री बनेगा.
उद्धव ठाकरे ने उनका समर्थन लिया जिनके खिलाफ शिवसेना बनी थी
ठाकरे ने पिता बलासाहेब ठाकरे के उसूलों को दरकिनार करते हुए उन्हीं दलों का समर्थन लिया जिसके खिलाफ बालासाहेब ने शिवसेना का गठन किया था – कांग्रेस पार्टी और एनसीपी. अभी तक उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के किसी भी कोने से समर्थन नहीं मिला है. उनका मुख्यमंत्री पद भी तभी बचा जब वह मोदी के सामने आ कर गिड़गिड़ाए. कोरोना महामारी के बीच में सिर्फ ठाकरे की कुर्सी बचाने के लिए विधान परिषद् का चुनाव कराया गया. बीजेपी और मोदी की वजह से ही आज ठाकरे मुख्यमंत्री हैं, ना कि महाराष्ट्र की जनता के समर्थन के कारण.
क्या मोदी को भला-बुरा कहने वाले जेल गए?
शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता आए दिन खुलेआम मोदी को गाली देते नज़र आते हैं. कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित नेता और कार्यकर्ता चाहे वह नागरिकता कानून हो या कृषि कानून, खुलेआम मोदी को गाली देते हैं. मोदी का पुतला भी जलाया जाता है. पर कितने लोग मोदी को गाली देने या मोदी का पुतला जलाने के कारण अभी तक गिरफ़्तार हुए हैं? पर जिस व्यक्ति को जनता ने चुना ही नहीं, जिसकी पार्टी को महाराष्ट्र की 83.56 फीसदी जनता ने वोट ही नहीं दिया, वह व्यक्ति पिछले 21 महीनों से तानाशाह की तरह शासन कर रहा है.
माना कि राणे ने गलत भाषा का इस्तेमाल किया. पर किस सन्दर्भ में उन्होंने कान के नीचे खींच कर चपत लगाने की बात की थी, गलत नहीं था. भारत के एक प्रमुख राज्य के मुख्यमंत्री को यही नहीं पता था कि देश को स्वतंत्रता प्राप्ति के कितने साल हो गए. पता भी कैसे हो जब शिवसेना के लिए जय महाराष्ट्र जय हिन्द से बड़ा नारा हो.
उद्धव ठाकरे पर क्या कार्रवाई होगी?
नेताओं की जुबान अक्सर फिसलती ही रहती है. बहुत कम ही ऐसे नेता हैं जो सोच समझ कर मीडिया के सवालों का जवाब देते हैं. बीजेपी ने कल उद्धव ठाकरे का एक दो साल पुराना वीडियो जारी किया जिसमें वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जूते से मारने की बात कहते दिख रहे हैं. बीजेपी ने ठाकरे के खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी (FIR) दर्ज करायी है. राणे ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दर्ज की है और जब अगले महीने इस पर सुनवाई शुरू होगी तो फिर शायद कोर्ट ही फैसला करेगा कि कान के नीचे जोर का तमाचा मरना या जूते से एक अन्य राज्य के मुख्यमंत्री को मारना, इसमें से क्या ज्यादा बड़ा जुर्म है.
बेहतर यही होगा कि उद्धव ठाकरे अपने आप को शिवाजी महाराज के बाद सबसे बड़े मराठा नेता साबित करने की जल्दबाजी करने और एक तानाशाह की तरह व्यवहार करने की जगह जनता का प्यार जीतने की कोशिश करें. ठाकरे बड़े नेता तब ही बनेंगे जब उन्हें उनके काम के आधार पर जनता का समर्थन मिले. संविधान से ऊपर कोई नहीं हो सकता है, चाहे वह उद्धव ठाकरे ही क्यों ना हों. राणे को जेल भेज कर ठाकरे बड़े नेता नहीं बने हैं, बल्कि उन्होंने अपनी मुसीबत को आमंत्रण दिया है.
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