सम्पादकीय

उदयपुर चिंतन शिविर: गांधी परिवार के पास रहेगी पार्टी की कमान, अकेले करेगी बीजेपी से दो-दो हाथ

Rani Sahu
16 May 2022 4:29 PM GMT
उदयपुर चिंतन शिविर: गांधी परिवार के पास रहेगी पार्टी की कमान, अकेले करेगी बीजेपी से दो-दो हाथ
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उदयपुर (Udaipur) में कांग्रेस (Congress) के तीन दिवसीय विचार-मंथन सत्र से पांच बातें प्रमुख तौर पर निकलकर आई हैं

राकेश दीक्षित |

उदयपुर (Udaipur) में कांग्रेस (Congress) के तीन दिवसीय विचार-मंथन सत्र से पांच बातें प्रमुख तौर पर निकलकर आई हैं. एक, गांधी परिवार पार्टी के नेताओं के तमाम सुझावों पर अमल करने के लिए सहमत है सिवाय इसके कि वो संगठन पर अपनी पकड़ ढीली नहीं करेगा. दूसरा ये कि आने वाली चुनावों में कांग्रेस कहीं भी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन नहीं करेगी, खासतौर पर वहां जहां उसका सामना सीधा बीजेपी से है. तीसरा, सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के नेतृत्व में पार्टी बीजेपी से धर्मनिरपेक्षता बनाम हिंदुत्व पर मुकाबला करने से परहेज करेगी.
चौथा, राहुल गांधी का फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय है. पांचवां ये कि कांग्रेस ने विकास के जो भी वादे अपने घोषणापत्र में किए हैं, उनको वह समयबद्ध तरीके से लागू करने की दिशा में पहले की तुलना में अधिक उत्सुक है. ये सबक उसने अतीत में किए गए अपने प्रयोगों से सीखा है, फिर भले ही उसका फल उसे बड़े स्तर पर न मिल रहा हो. उदयपुर अधिवेशन से पहले, असंतुष्ट नेताओं को उम्मीद थी कि सोनिया गांधी कांग्रेस संसद बोर्ड को पुनर्जीवित करने की ओर कुछ कदम उठाएंगी और कांग्रेस कार्य समिति में चुनाव की सुविधा भी प्रदान करेंगी.
सोनिया गांधी ने CWC को सुझाव देने के लिए एक सलाहकार समिति बनाने का लिया फैसला
इसके बजाए सोनिया गांधी ने सीडब्ल्यूसी को सुझाव देने के लिए एक सलाहकार समिति बनाने का फैसला किया है, लेकिन इसके सुझाव भी बाध्यकारी नहीं रखे गए हैं. संभावना यही है कि सलाहकार समिति के सदस्यों को गांधी परिवार के चुने हुए समर्थकों द्वारा ही चुना जाएगा. ये सभी निर्णय लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करना जारी रखेंगे. पार्टी के असंतुष्ट सदस्यों को शीर्ष समिति में रहने के लिए गांधी परिवार की ओर ताकना पड़ता है. जहां तक क्षेत्रीय दलों से गठबंधन की बात है तो सोनिया गांधी के उद्घाटन भाषण में इसका कोई जिक्र नहीं था, लेकिन राहुल गांधी के समापन भाषण में इस बात के पुख्ता संकेत मिले हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अकेले ही मैदान में उतरेगी.
राहुल गांधी ने क्षेत्रीय दलों की कोई विचारधारा न रखने पर की आलोचना
उन्होंने कांग्रेस से उलट क्षेत्रीय दलों की कोई विचारधारा न रखने के लिए भी आलोचना की. उन्होंने ये मुद्दा भी उठाया कि जहां क्षेत्रीय दल जाति आधारित राजनीति करते हैं, वहीं कांग्रेस कई विषयों पर एक साथ बात करती है. इससे पहले ममता बनर्जी, शरद पवार और के चंद्रशेखर राव जैसे कुछ क्षेत्रीय दलों के नेता कांग्रेस के बिना विपक्ष बनाने के मुद्दे पर विचार कर चुके हैं, लेकिन दूसरे दलों की उत्साहहीनता देखकर उन्होंने एक हद के प्रयासों के बाद इस विचार को त्याग दिया. कांग्रेस ने भी उन निरस्त कदमों में दिलचस्पी नहीं दिखाई. अब राहुल गांधी ने विपक्षी एकता के विचार की निरर्थकता पर कांग्रेस की मुहर भी लगा दी है. उदयपुर घोषणापत्र से ये भी पता चलता है कि कांग्रेस अपने धर्मनिरपेक्षतावादी रुख पर छाए भ्रम को दूर करके बीजेपी के साथ एक वैचारिक लड़ाई के लिए कमर कस रही है.
प्रशांत किशोर की कांग्रेस को कथित सलाह को सोनिया गांधी ने किया नजरअंदाज
उदयपुर में अपने उद्घाटन भाषण में पार्टी के 430 प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए सोनिया गांधी स्पष्ट रूप से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस को कथित सलाह को नजरअंदाज करती नजर आईं कि पार्टी को बीजेपी के हिंदुत्व वाले मुद्दे से दूर रहना चाहिए. उनका ये भाषण मोदी सरकार पर विशेष रूप से कथित सांप्रदायिक एजेंडे पर जोरदार हमले के लिए उल्लेखनीय रहा. उन्होंने तीखे शब्दों में ध्रुवीकरण की स्थाई स्थिति, अल्पसंख्यकों पर क्रूर हमलों और राजनीतिक विरोधियों को धमकाने जैसी घटनाओं पर चुप्पी साधने के लिए प्रधानमंत्री पर वार किया. वहीं राहुल गांधी ने भी बीजेपी और आरएसएस के साथ वैचारिक लड़ाई को तेज करने के लिए संकल्प व्यक्त किया.
यकीनन, कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के पिछले आठ साल में सोनिया गांधी द्वारा मोदी सरकार पर उनकी राजनीतिक नीतियों आरोप लगाने और इतना तीखा प्रहार करने का ये पहला मौका था. हालांकि उन्होंने पार्टी नेताओं को इस बात का कोई अंदाजा नहीं दिया कि उन्हें इन मोर्चों पर बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए खुद को कैसे तैयार करना चाहिए. इसके कुछ सुराग घोषणापत्र में दिखे, जिसमें कांग्रेस की महत्वाकांक्षी भारत जोड़ो यात्रा प्रमुख एजेंडे पर नजर आई. कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रस्तावित इस एकता मार्च का समय भी महत्वपूर्ण है. ये 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के मौके से शुरू होगी. बहुत मुमकिन है कि इस समय तक कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव समाप्त हो चुका होगा और इस बात की पूरी संभावना है कि राहुल गांधी फिर से पार्टी अध्यक्ष चुने जाएंगे. वैसे भी पार्टी पहले ही संकेत दे चुकी है कि इस यात्रा की अगुआई वे ही करेंगे. इस सुधारवादी एजेंडे को लेकर कांग्रेस में उत्साह अभी से साफ नजर आ रहा है. लेकिन सवाल ये है कि आने वाले समय में क्या पार्टी उदयपुर के इस जोश को बरकरार रख पाएगी?
सोनिया गांधी ने इस बार अपने भाषण में सभी को किया आगाह
उदयपुर में हुए कांग्रेस के इस कॉन्क्लेव के परिणाम के बारे में संदेह इसलिए भी होता है, क्योंकि पार्टी की कथनी और करनी में अक्सर भारी अंतर का रिकॉर्ड रहा है. हालांकि, पार्टी के अस्तित्व के संकट की स्थिति में जिस तरह आत्मनिरीक्षण और संगठनात्मक बदलाव की अपील अंतरिम अध्यक्ष के भाषण में सुनाई दी है, उससे लगता है कि कांग्रेस पिछली गलतियों से सबक सीखते हुए थोड़ी समझदार हो गई है. सोनिया गांधी ने इस बार अपने भाषण में सभी को आगाह किया है कि अब मामला पहले की तरह नहीं चल सकता है. इससे पहले के कांग्रेस सम्मेलनों में इस तरह के सुझाव पार्टी के अन्य नेताओं से आते थे और सोनिया गांधी उनको धैर्यपूर्वक सुनती थीं, लेकिन उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद से लग रहा है कि इस बार वे खुद बदलाव की कमान संभाल रही हैं.


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