सम्पादकीय

आतंकवाद के दो साल शेष!

Rani Sahu
19 Nov 2021 6:57 PM GMT
आतंकवाद के दो साल शेष!
x
क्या आगामी दो साल में कश्मीर से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा

क्या आगामी दो साल में कश्मीर से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा? क्या दो साल बाद कश्मीर में आतंकवाद के अवशेष भी दिखाई नहीं देंगे? क्या घाटी के 100 फीसदी बाशिंदे भारत-समर्थक हो जाएंगे? अभी कश्मीर की ज्यादातर सियासी जमात 'हमारे, तुम्हारे की भाषा बोलती है। भारत अब भी 'तुम्हारा है और कश्मीर के लोग, पत्थरबाज, छिपे आतंकी गुरगे 'हमारे हैं। आतंकियों के स्लिपर सेल भी 'हमारे हैं।

मोदी की हुकूमत ने हमारे कश्मीर को बर्बाद कर दिया है। कश्मीर शेष हिंदुस्तान से अलग है। प्रधानमंत्री भी 'तुम्हारा है। यह कश्मीरी सियासी जमात का औसत निष्कर्ष है। कश्मीर में आज भी ज़हरीला जेहाद है, जिसे पाकिस्तान व्यापक स्तर पर 'हवा देता रहा है। क्या पाकिस्तान अपनी साजि़शाना बदनीयत और आतंकी रणनीति छोड़ देगा या कश्मीर में पाकपरस्तों का भी खात्मा कर दिया जाएगा? इन तमाम सवालों में संदेह और अंदेशे निहित हैं, क्योंकि कश्मीर ने 30 साल से ज्यादा वक़्त से आतंकवाद झेला है। वह कई तरह से छिला और छिन्न-भिन्न हुआ है। वहां सेना और सुरक्षा बलों के ऑपरेशन पर टिप्पणियां की जाती हैं कि सरकार ने कश्मीरियों को मारने के लिए जवानों को तैनात किया है। फर्जी मुठभेड़ों में मासूम कश्मीरी मारे जा रहे हैं। इसी सप्ताह की शुरुआत में घाटी के हैदरपोरा में तीन नागरिक, मुठभेड़ के दौरान, मारे गए। उनमें अल्ताफ भट्ट की बिल्डिंग में आतंकी छिपे थे, जिन्हें ढेर कर दिया गया। उसी परिसर में दंत चिकित्सक डॉ. मुदासिर गुल और उनका कर्मचारी आमिर मिलकर कॉल सेंटर चला रहे थे। सेना और पुलिस उन्हें आतंकियों के गुरगे मान रही हैं, जबकि मृतकों के परिजन उन्हें मासूम और बेगुनाह बता रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है।
मृतकों के पार्थिव शरीरों को लेकर घाटी में उग्र विद्रोह-प्रदर्शन हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री एवं मौजूदा लोकसभा सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने यहां तक बयान दे दिया कि कश्मीर को कब्रिस्तान नहीं बनने देंगे। पुलिस ने कुपवाड़ा के हंदवाड़ा में मृतकों का कफऩ-दफऩ अंतिम संस्कार कर दिया था, लेकिन तनाव और बवाल इतना उग्र होता गया कि लाशें कब्रों से सुरक्षित निकाल कर परिजनों को सौंपनी पड़ी। आतंकी बुरहान बानी की लाश भी दे दी गई थी। उसके बाद जो जनाजा निकाला गया, उसमें खूब तमाशा किया गया। बंद का आह्वान किया गया। कश्मीर को जेहाद की आग में झोंका गया। बदला लेने की हुंकारें भरी गईं। इस बार भी 'इनसानी हुकूक के तहत लाशेें देने की मांग खूब उग्र हुई। सियासी जमात से सवाल किया जाना चाहिए कि अ$फजल गुरु और मकबूल बट्ट की लाशें क्यों नहीं दी गईं? यूपीए की उस सरकार में फारूक अब्दुल्ला भी कैबिनेट मंत्री थे।
बहरहाल आतंकवाद और अतिवाद के दौर में यही कश्मीर की संस्कृति रही है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने ही दावा किया है कि दो साल में कश्मीर में आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा। लगभग इसी आशय का आश्वासन 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 खारिज करने के बाद भी दिया गया था, लेकिन आतंकवाद आज भी जि़ंदा और सक्रिय है। बेशक पहले की तरह व्यापक और तीखा नहीं है। इसी साल अभी तक 116 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 154 आतंकी ढेर किए जा चुके हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है, लेकिन हमारे 35 जांबाज जवान भी 'शहीद हुए हैं और 30 नागरिक भी मारे गए हैं। विकास और नए कश्मीर की ओर देखें, तो 456 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं और 23,152 करोड़ रुपए का निवेश आने की संभावनाएं ठोस हुई हैं। औद्योगिक विकास के लिए 28,000 करोड़ रुपए का फंड तैयार किया गया है। कश्मीरी पंडितों में 3841 की घर-वापसी हुई है, लेकिन वे फिलहाल आतंकवाद के जबड़ों में जीने को विवश हैं। कुल मिलाकर कश्मीर के हालात का सारांश यह है कि कुछ भी सामान्य नहीं कहा जा सकता। आम कश्मीरी बंदूक और गोली के निशाने पर है। फिर वह निशाना सैनिक जवान का हो अथवा आतंकी का! कश्मीर में शासक पक्ष और सक्रिय सियासी जमात के बीच नफरत के भाव हैं। सार्थक संवाद की अभी कोई गुंज़ाइश दिखाई नहीं देती। पता ही नहीं चल पा रहा है कि देश में सबसे ज्यादा संसाधन कश्मीर के हिस्से मुहैया कराए गए हैं, फिर भी वे विद्रोही और मुखालफ़त में क्यों हैं?

Divyahimachal

Next Story