सम्पादकीय

भीड़तंत्र से दो चार समाज

Subhi
31 Oct 2022 5:59 AM GMT
भीड़तंत्र से दो चार समाज
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लोकतंत्र में सबसे बड़ी कमजोरी नागरिकों की तेजस्विता का अभाव और अनमनापन होता है। हमारे लोकतंत्र में लोगों में याचनाभाव का अतिशय विस्तार हुआ, जिसके कारण भीड़तंत्र और भेड़ चाल का उदय हुआ।

अनिल त्रिवेदी: लोकतंत्र में सबसे बड़ी कमजोरी नागरिकों की तेजस्विता का अभाव और अनमनापन होता है। हमारे लोकतंत्र में लोगों में याचनाभाव का अतिशय विस्तार हुआ, जिसके कारण भीड़तंत्र और भेड़ चाल का उदय हुआ। लोकतांत्रिक देश या समाज में नागरिक चौबीस घंटे बारहमास चौकस रहकर ही जीवंत लोकतंत्र बना सकते हैं। पूर्ण स्वराज का संकल्प लेने वाला समाज आज भीड़तंत्र और भेड़चाल से ग्रस्त हो गया है।

भारतीय समाज और लोकतंत्र में गैर संवैधानिक शक्तियों की हर जगह प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। कार्यपालिका, विधायिका और नागरिकों के असंवैधानिक कार्यकलापों को तो न्यायपालिका के समक्ष ले जाकर न्याय पाया जा सकता है, पर शक्तिशाली तबके के गैर संवैधानिक हस्तक्षेप से निपटने के लिए भारत के आम नागरिकों को अपने मानस में गहराई से जड़ जमा रहे अराजकतावादी भीड़तंत्र और भेड़चाल को सोच-समझ कर त्यागना चाहिए। नागरिकों के तेजस्वितापूर्ण चिंतन और कृतित्व के कारण ही भारत का संविधान नागरिकों के साथ खड़ा हो जाता है। भीड़तंत्र की भेड़चाल मूलत: गैर संवैधानिक हस्तक्षेप का अंतहीन सिलसिला है, जो संवैधानिक लोकतांत्रिक राज और समाज को भीरु और श्रीहीन बना कर असहाय और लाचारी भरा जीवन जीने की दिशा में निरंतर धकेलता है।

राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, धर्म, पुलिस प्रशासन और निर्वाचन प्रक्रिया को गैर संवैधानिक शक्तियों के सामने भारतीय नागरिक आत्मसमर्पण करते निरंतर देखता है तो वह सक्रिय नागरिक की भूमिका त्याग देता है। इससे गैर संवैधानिक हस्तक्षेप की अनैतिक ताकत के सामने नतमस्तक होने वाले लोग अपने लोभ लालचवश अपनी गिरावट को निरापद या व्यावहारिक रास्ता मानने लगे हैं। नागरिकों द्वारा अपनी नागरिक तेजस्विता के बड़े पैमाने पर विसर्जन से उपजी परिस्थितियों के चलते लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गैर संवैधानिक शक्तियों का वर्चस्व बढ़ा है।

भारतीय समाज विविध विचारों वाला समाज प्राचीन काल से रहा है। व्यक्ति और समाज ने विवेकशीलता को अपना सहज स्वाभाविक विचार माना। इसलिए हमारे आजादी के आंदोलन में सभी धाराओं को मानने वाले लोग लगातार भागीदारी सुनिश्चित कर लोगों को जागरूक करते रहे। पर आजादी पाने के बाद से हम सभी लोगों का व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण लोकतंत्र की मजबूती के बजाय भीड़ तंत्र को मजबूत करने वाली धारा में बिना सोचे-समझे बहने लगा।

यह समझने की निरंतर कोशिश करना चाहिए कि गैर संवैधानिक शक्तियों को भारतीय समाज और लोकतंत्र से विदा करने के तरीके क्यों नहीं विकसित हो रहे हैं! लोकतांत्रिक व्यवस्था और समाज दोनों को ही निर्भय और निष्पक्ष होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था केवल अकेले चुनाव संपन्न होने तक ही सीमित नहीं है। लोकतांत्रिक समाज व्यवस्था का अर्थ है सबको इज्जत और सबको काम। भारतीय समाज में सब बराबर के भागीदार हैं। सब मिलजुल कर ही भारतीय समाज और लोकतंत्र की रखवाली कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय समाज और लोकतंत्र सभी का है, किसी एक व्यक्ति, विचार या गैर संवैधानिक शक्तियों की मनमानी गतिविधियों की क्रीड़ा स्थली नहीं।

भारतीय समाज और लोकतंत्र दोनों में केवल कमियां ही नहीं हैं। इसमें तमाम मतभिन्नताओं के बाद भी भारतीय समाज की वैचारिक जड़ें बहुत मजबूत होकर व्यापक दृष्टिकोण लिए हुए है। फिर भी आज के भारत में नागरिकों की तेजस्विता में कमी आना और भीड़तंत्र की गतिविधियों में तेजी आना वक्त की एक बड़ी चुनौती है। आज आभासी भारत और सूचना प्रौद्योगिकी ने ऐसा वातावरण खड़ा किया है, जिससे भारतीय समाज में ऐसे मुद्दे खड़े हो गए हैं, जो मानो भारत में अविवेकी समाज की रचना कर रहे हैं।

आज के भारत और दुनिया में प्रत्यक्ष लोक संपर्क लुप्तप्राय हो गया है। आभासी गतिविधियों को ही जीवन समाज और लोकतंत्र का पर्याय मानने की दिशा में हम सब निरंतर आंखें बंद कर बढ़ते जा रहे हैं। यही वह बुनियादी सवाल है जो आज हम सब से उत्तर मांग रहा है। गैर संवैधानिक शक्तियों और भीड़ तंत्र से तेजस्वी नागरिकों वाला देश ही मनमानी राज और समाज व्यवस्था पर अंकुश लगाने की संवैधानिक क्षमता रखता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था का मतलब ही लोगों की ताकत से चलने वाली राज और समाज की व्यवस्था है।

सर्वप्रभुतासंपन्न भारतीय समाज और नागरिक अपने आप में विपन्न, लाचार और बेरोजगार नहीं है। गैर संवैधानिक शक्तियों ने भारत की राजनीति और समाज को भीड़तंत्र में बदलने वाला जो रास्ता चुना है, वह उनकी भारत के बारे में नासमझी ही मानी जाएगी। इसीलिए गैर संवैधानिक शक्तियां भारत की विशाल लोकशक्ति को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से तेजस्वी यशस्वी बनाने के बजाय खुद को शक्तिशाली और नागरिकों को शक्तिहीन बनाने के अप्राकृतिक रास्ते पर चल रही हैं।

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