सम्पादकीय

दो और टीके

Subhi
30 Dec 2021 3:24 AM GMT
दो और टीके
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देश में दो और कोरोनारोधी टीकों कोवोवैक्स और कोर्बेवैक्स को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है। इसके अलावा कोरोना की दवा मोलनुपिराविर को भी आपात इस्तेमाल के लिए हरी झंडी दे दी गई है।

देश में दो और कोरोनारोधी टीकों कोवोवैक्स और कोर्बेवैक्स को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है। इसके अलावा कोरोना की दवा मोलनुपिराविर को भी आपात इस्तेमाल के लिए हरी झंडी दे दी गई है। इसके पहले डीआक्सी-डी-ग्लूकोज नामक दवा को मंजूरी दी गई थी, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन तथा डा. रेड्डीज लैब ने मिल कर तैयार किया था। दो और टीकों के आ जाने से टीकों की उपलब्धता बढ़ेगी और टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। महामारी के खिलाफ अभियान और तेज करने के लिए जरूरी है कि देश में पर्याप्त टीके उपलब्ध हों।

टीकों की कमी टीकाकरण कार्यक्रम को बाधित करती है। यह संकट हम झेल चुके हैं। वैसे टीकों के विकास और उत्पादन की दिशा में भारत के प्रयास मामूली नहीं हैं। कोवोवैक्स अमेरिकी टीका निर्माता नोवावैक्स का भारतीय संस्करण है जिसे सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने तैयार किया है। जबकि कोर्बेवैक्स को हैदराबाद की बायोलोजिकल ई ने विकसित किया है। यह स्वदेशी टीका है और इसे प्रोटीन आधारित तकनीक से तैयार किया गया है। कोवोवैक्स और कोर्बेवैक्स फिलहाल वयस्कों को दिए जाएंगे। हालांकि कोवोवैक्स का परीक्षण बच्चों पर भी चल रहा है। अगर परीक्षण में यह खरा उतरता है तो इसे बच्चों के लिए भी उपयोग किया जा सकेगा।
भारत में टीकाकरण इस साल जनवरी के मध्य में शुरू हुआ था। उस वक्त देश में सिर्फ दो ही टीके थे। कोविशील्ड और कोवैक्सीन। कोविशील्ड आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने विकसित किया था और इसका उत्पादन भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ने शुरू किया था। दूसरा टीका कोवैक्सीन पूर्णरूप से स्वदेशी है जिसे हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने मिल कर बनाया। शुरू में इनका उत्पादन भी सीमित था। इसका बड़ी वजह टीका निर्माता कंपनियों के सामने टीके के लिए कच्चे माल और वित्तीय संसाधनों की कमी थी।
इसलिए टीकाकरण कार्यक्रम को भी चरणबद्ध तरीके से चलाना पड़ा। फिर, उस वक्त ये कंपनियां दूसरे देशों को भी टीकों का निर्यात कर रही थीं। इसलिए भी टीकों की कमी बनी रही। पर अब वैसी स्थिति नहीं है। भारतीय दवा कंपनी जायडस कैडिला का स्वदेशी टीका जायकोव-डी बाजार में है ही। सरकार रूस में बने स्पूतनिक टीके के अलावा अमेरिका में बने मार्डना और जानसन एंड जानसन के टीके को भी आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे ही चुकी है। स्विस दवा कंपनी राश के टीके तोसिलीजुमाब भी आपात प्रयोग में लिया जा रहा है। जाहिर है, समय के साथ-साथ जैसे-जैसे नए टीके परीक्षण में सफल हो रहे हैं, उन्हें आपात प्रयोग के लिए काम में लाया जा रहा है।
कोरोना की पहली और दूसरी लहर का सबक यही है कि हम जल्द से जल्द और ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका लगवा सकें, ताकि लोगों को महामारी के खतरे से बचाया जा सके। अगर आज जितने टीके पहले उपलब्ध होते और लोगों को लग गए होते तो दूसरी लहर की तबाही से बचा जा सकता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि टीका महामारी से बचाव का बड़ा हथियार साबित हुआ है। टीका लगवा चुके लोगों को अगर संक्रमण हो भी जा रहा है, तो वे गंभीर स्थिति में जाने से बच जा रहे हैं। लेकिन जिन लोगों ने टीका नहीं लगवाया है, उनके संक्रमित होने का जोखिम कहीं ज्यादा है। अब यह खतरा एक बार फिर बढ़ता जा रहा है। देश में कोरोना के साथ ओमीक्रान के मामलों में अचानक से तेजी देखने को मिल रही है। राज्यों को पहले की तरह सख्त कदम उठाने पड़ रहे हैं। ऐसे में फिलहाल सिर्फ टीके ही बचाव का बड़ा उपाय हैं।

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