सम्पादकीय

चीन के दो चेहरे: एक ओर बातचीत, दूसरी ओर उकसावे की कार्रवाई

Neha Dani
1 Aug 2022 1:42 AM GMT
चीन के दो चेहरे: एक ओर बातचीत, दूसरी ओर उकसावे की कार्रवाई
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उद्देश्य संतुलन बनाने के साथ-साथ चीन से टकराना तथा उसे दोटूक संदेश देना भी है।

मई, 2020 से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर धमकाने वाले अंदाज में बैठे हुए चीन की हरकतें विचित्र हैं। स्थिति यह है कि दोनों तरफ के सैन्य कमांडरों के बीच 16 दौर की बातचीत के बावजूद न तो चीन वहां से हटने का कोई प्रयास कर रहा है और न ही तनाव कम होने का कोई संकेत मिल रहा है। इसके उलट नवीनतम रिपोर्टों से यह संकेत मिलता है कि पूर्वी क्षेत्र में, 'चीनी लड़ाकू जेट एलएसी पर समझौतों का बार-बार उल्लंघन कर रहे हैं और भारतीय वायुसेना को उलझने के लिए मजबूर कर रहे हैं।' जबकि विश्वास बहाली के उपायों पर बनी सहमति के अनुसार, एलएसी के दस किलोमीटर के दायरे में सैन्य विमानों का संचालन नहीं होना चाहिए, यह शत्रुतापूर्ण कार्रवाई है।




इसके साथ ही, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) एलएसी के पास बड़े पैमाने पर सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही है। एक नया राजमार्ग बनाया जा रहा है, जो अक्साई चिन के विवादित हिस्सों से होकर गुजरेगा। जैसा कि हमें मालूम है, चीन ने पैंगोंग झील के ऊपर दो पुल बनाए हैं। लगता है, जैसे चीनी शासन ने अक्तूबर, 2021 में अपने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में युद्ध छेड़ने की जो अशुभ धमकियां दी थीं, उन्हें सच करके दिखाने पर वह आमादा है। इनमें से अधिकांश विरोधाभासों को चीनी विश्वास निर्माण की उसकी प्रवृत्ति में विश्लेषित किया जा सकता है। चीन की इच्छा वैश्विक महाशक्ति बनने की है। अपने कम्युनिस्ट अवतार में उसने कन्फ्यूशियस के सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है और विस्तारवादी लोकाचार में यथार्थवादी सिद्धांतों को लागू किया है।


यथार्थवादी स्कूल के अमेरिकी राजनीति विज्ञानी जॉन मियरशाइमर की थ्योरी ऑफ ऑफेन्सिव रियलिज्म ऐंड द राइज ऑफ चाइना इस घटना को स्पष्ट करती है। ट्रेजिडी ऑफ ग्रेट पावर पॉलिटिक्स (2010) में मियरशाइमर ने चीन के उदय के संबंध में अपने सिद्धांतों के निहितार्थ के बारे में विस्तार से लिखा है। वर्ष 2010 में उन्होंने तर्क दिया था कि चीन के वर्तमान या भविष्य के इरादों का सटीक अनुमान लगाने का कोई तरीका नहीं है, चीन की रक्षात्मक और आक्रामक सैन्य क्षमताओं के बीच अंतर करना मुश्किल है और चीन के अतीत का शांतिपूर्ण व्यवहार भविष्य के व्यवहार का एक अविश्वसनीय संकेतक है। मियरशाइमर के अनुसार, चीन दूसरे देशों पर अपनी राष्ट्रीय शक्ति को तवज्जो देने की इकलौती नीति पर चल रहा है। अब शी जिनपिंग अपनी घरेलू और विश्व कूटनीति में 'साझा नियति के समुदाय' की धारणा को तेजी से बढ़ावा दे रहे हैं। इतिहास की तरफ देखें, तो चीन का यह रवैया हमें अतीत के हान शासन की याद दिलाता है, जिसने कोरिया, मंगोलिया, वियतनाम और जापान जैसे कई पड़ोसी देशों को प्रभावित करते हुए अपनी भूमि और संस्कृति का उद्देश्यपूर्ण विस्तार किया था। सैन्य अभियानों की शृंखलाओं के जरिये उसने आधुनिक चीन और उत्तरी वियतनाम का निर्माण किया था। मेरा मानना है कि इस दर्शन को चीन के आधुनिकीकरण कार्यक्रमों में गहराई से पोषित किया गया था।

दिसंबर 1978 में देंग श्याओ पिंग ने औपचारिक रूप से सुधार प्रारंभ करते हुए चार आधुनिकीकरण की आधिकारिक शुरुआत की घोषणा की थी, जिनमें कृषि, उद्योग, राष्ट्रीय रक्षा और विज्ञान व प्रौद्योगिकी शामिल थे। सबसे अंत में सैन्य आधुनिकीकरण किया गया। इस पृष्ठभूमि में भारत के प्रति चीनी रवैये को समझना और शायद भविष्य को देखना आसान है। भारत को घेरने के लिए शत्रुओं के हाथ मिलाने का इतिहास जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में
पाकिस्तान एवं चीन के बीच खेला जाने वाला एक बड़ा खेल था। यह सब वर्ष 1959 में तब शुरू हुआ था, जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए कथित तौर पर बीजिंग को प्रस्ताव दिया। कहते हैं कि अयूब खान की चिंता तब बढ़ गई, जब चीनी नक्शे में पाकिस्तान को चीन में दिखाया गया। चीनी शासन ने शुरू में आशंकित पाकिस्तान के प्रति उत्साह नहीं दिखाया, पर जनवरी, 1962 में उसने चुपचाप नक्शा वापस ले लिया, जब पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रवेश का समर्थन किया। फिर उन्होंने मार्च, 1962 में सीमा वार्ता के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया। यह वार्ता 13 अक्तूबर, 1962 में शुरू हुई और दो मार्च, 1963 को चीन-पाक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। जब इस चर्चा का खुलासा हो रहा था, उसी दौरान चीन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में 20 अक्तूबर से 21 नवंबर, 1962 के दौरान भारत के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था।

इसी दौरान पाकिस्तान ने करीब 5,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को सौंप दिया और बदले में उसे चीन से करीब 1,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मिला। पाकिस्तान ने चीन को शक्सगाम घाटी के आसपास का क्षेत्र दिया, जिसे ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट कहा जाता है और जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्रों पर नियंत्रण पाया। चीन और पाकिस्तान में से किसी का भी इन क्षेत्रों में स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं था। वे खुलेआम उन जमीनों का आदान-प्रदान कर रहे थे, जो भारत की थीं! भारत को नाराज करने के लिए चीन ने काशगर से ग्वादर खाड़ी तक सड़क मार्ग को बढ़ावा दिया, जो सीपीईसी से जुड़ा हुआ है और जो भारतीय दावे के क्षेत्र से होकर गुजरता है। यही मुख्य वजह है कि भारत ने चीन की वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) पहल में हिस्सा नहीं लिया।

ओबीओआर से भारत के दूर रहने को चीन की पड़ोस नीति के बेहद नकारात्मक प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। इसने उसकी घरेलू गतिशीलता को भी प्रभावित किया है, इसीलिए क्षुब्ध चीन ने लद्दाख में दुस्साहस किया। बेशक भारत शंघाई सहयोग परिषद और ब्रिक्स का सक्रिय सदस्य है, लेकिन इसने स्पष्ट कर दिया है कि वह एक नियम आधारित विश्व व्यवस्था चाहता है, जिसमें सभी देश संयुक्त राष्ट्र द्वारा पोषित ढांचे में कार्य और बातचीत करें। और इसी गहरी विचारधारा के साथ ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ वह क्वाड में शामिल हुआ है। दक्षिण चीन सागर और ताइवान में चीनी दुस्साहस और संचार के समुद्री मार्ग में व्यापक हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में क्वाड का उद्देश्य संतुलन बनाने के साथ-साथ चीन से टकराना तथा उसे दोटूक संदेश देना भी है।

सोर्स: अमर उजाला

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