सम्पादकीय

दो नावों की सवारी

Gulabi Jagat
4 April 2022 6:53 AM GMT
दो नावों की सवारी
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अमेरिकी अधिकारी दलीप सिंह के कहने का अंदाज भले आपत्तिजनक रहा हो, लेकिन
By NI Editorial
जब टकराव बेहद तीखा हो गया हो, उस समय क्या दो नावों की सवारी लंबे समय तक की जा सकती है? अमेरिकी अधिकारी दलीप सिंह के कहने का अंदाज भले आपत्तिजनक रहा हो, लेकिन ये बात सच है कि रूस आज की परिस्थितियों में चीन विरोधी कोई रुख नहीं ले सकता है। russia ukraine war india
भारत यात्रा पर आए वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी दलीप सिंह ने चेतावनी दी कि रूस पर अमेरिकी तरफ से लगाए प्रतिबंधों को नाकाम करने वाले उपाय अगर भारत ने अपनाए, तो इसके खराब नतीजे हो सकते हैँ। लेकिन दलीप सिंह की यात्रा के एक दिन ही बाद नई दिल्ली आए रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारतीय नेताओं से अपनी बातचीत के बाद सार्वजनिक रूप से कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों से बचते हुए अपना कारोबार जारी रखने के लिए भारत और रूस जो भी संभव तरीके हों, उन्हें अपनाएंगे। भारत सरकार ने ना तो दलीप सिंह के बयान पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया दी, ना ही लावरोव के एलान पर। दरअसल, कूटनीति के जानकार इन दिनों यह देख कर हैरत में हैं कि भारत आए विदेशी नेताओं और अधिकारियों को भारत सरकार यहां खुल कर सार्वजनिक बयान देने के अवसर दे रही है। नई दिल्ली में रहते हुए किसी तीसरे देश के खिलाफ भी बयान दे रहे हैँ। जबकि अतीत मे चलन यह था कि भारत अपनी मंच का किसी दूसरे देश को इस तरह इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देता था।
बहरहाल, लावरोप के बयान के साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ये टिप्पणी भी छपी कि अगर कहीं से सस्ता तेल खरीदने से भारतीय जनता को राहत मिलती है, तो हमारी सरकार ऐसा क्यों नहीं करेगी? एक टीवी इंटरव्यू के दौरान की गई इस टिप्पणी को लावरोव के बयान की पुष्टि के रूप में देखा जा सकता है। तो कुल मिला कर भारत उन देशों में शामिल दिख रहा है, जो पश्चिमी वित्तीय प्रतिबंधों को अनदेखी करते हुए रूस के साथ सामान्य कारोबार जारी रखने के प्रयास में जुटे हुए हैँ। मगर इसके साथ ही भारत अमेरिका और अन्य देशों के गुड बुक में भी रहना चाहता है। अगर इनसे भारत के हित सधते हों, तो इन दोनों ही बातों में कोई बुराई नहीं है। लेकिन प्रश्न है कि जब टकराव बेहद तीखा हो गया हो, उस समय क्या दो नावों की सवारी लंबे समय तक की जा सकती है? दलीप सिंह के कहने का अंदाज भले आपत्तिजनक रहा हो, लेकिन ये बात सच है कि रूस आज की परिस्थितियों में चीन विरोधी कोई रुख नहीं ले सकता है। ऐसे में अगर भारत नए बन रहे समीकरण में चीन के साथ रिश्ते मजबूत करे, तब तो बात दीगर है। वरना, आधी-अधूरी रणनीति आगे चल कर नुकसान का सौदा साबित हो सकती है।
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