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- ट्विटर बनाम सरकार
आदित्य चोपड़ा: इंटरनेट का प्रचलन बढ़ने के साथ-साथ सोशल मीडिया का प्रचलन भी काफी बढ़ चुका है। समय बदलने के साथ-साथ देश और भी डिजिटल हो रहा है। सच पूछिये तो सोशल मीडिया ने हमारे जीवन को काफी सहज बना दिया है। किसी को कुछ भी खरीदना या बेचना हो आजकल सभी काम आनलाइन हो रहे हैं। इसका इस्तेमाल व्यापार बढ़ाने के लिए भी हो रहा है। यह एक ऐसा साधन है जिससे आप घर बैठे लाखों लोगों से जुड़ सकते हैं और अपनी भावनाओं, विचारों को दूसरे लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। 20वीं शताब्दी में दुनिया में बहुत से परिवर्तन आने लगे। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में बहुत विकास हुआ। भारत में 1984 के बाद कम्प्यूटर का प्रचलन तेज हुआ और धीरे-धीरे सोशल मीडिया की मांग बढ़ती गई। लेकिन अब सोशल मीडिया के गुण और दोष सामने आ चुके हैं और इस पर बहस जारी है। पहले के समय में अपनी आवाज को सरकारों तक पहुंचाने के लिए लोगों को अनशन, धरना, प्रदर्शन या कोई दूसरे कदम उठाने पड़ते थे, लेकिन जब से सोशल मीडिया का आगमन हमारे जीवन में हुआ है तब से हम अपनी बात सोशल मीडिया के माध्यम से सरकारों तक पहुंचा देते हैं। इसके साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक बहस जारी है। यह सही है कि संविधान में हमें स्वतंत्रता दी है लेकिन मूल प्रश्न यह खड़ा हुआ है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कुछ सीमाएं हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और सरकार के बीच टकराव काफी चर्चा का विषय रहा है। सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर के बीच तनातनी की शुरूआत पिछले वर्ष ही हो गई थी। उस वक्त सरकार ने ट्विटर को आपत्तिजनक कटेंट भ्रामक सूचनाएं फैलाने वाले अकाउंट्स के खिलाफ एक्शन लेने को कहा था। फेसबुक के साथ कई बार कार्रवाई करने को कहा गया लेकिन सोशल मीडिया साइट्स की तरफ से किसी तरह का कोई जवाब नहीं आया। जनवरी 2012 से लेकर जून 2021 तक सरकार की तरफ से ट्विटर को 17 हजार से ज्यादा बार कार्रवाई का आग्रह भेजा गया लेकिन इन पर सिर्फ 12.2 फीसदी पर ही कार्रवाई की गई। अभी तक 1600 अकाउंट्स और 3800 ट्विट्स पर ही कार्रवाई की गई। सरकार की तरफ से तमाम अनुरोध आईटी सैक्शन 69-ए के तहत की गई। इस एक्ट के तहत केन्द्र सरकार या कोई आधिकारिक अधिकारी भारत की अखंडता, सम्प्रभुत्ता की रक्षा, राज्य की सुरक्षा, विदेशी सरकारों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ पहुंचाने का काम करता है तो उस सूचना को रोकने के लिए सरकार मांग कर सकती है? काफी बहस के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने खुद की गाइडलाइन्स बनाई और आपत्तिजनक कंटेंट वाले कुछ अकाउंट्स को ब्लॉक भी किया। अब एक बार फिर सरकार और ट्विटर में तनातनी शुरू हो गई है। जहां एक ओर सरकार ट्विटर पर शेयर किए गए कंटेंट पर आपत्ति दर्ज करते हुए उसे हटाना चाह रही है। लेकिन ट्विटर मानने को राजी नहीं। हो यह रहा है कि ट्विटर अपनी बात पर अड़ा हुआ है और सरकार भी आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर सोशल नेटवर्किंग साइट पर दबाव बना रही है। अब इस जंग में कानूनी दांवपेच की एंट्री भी हो गई है। ट्विटर सरकार के फैसलों के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गई। किसान आंदोलन के दौरान शेयर की गई झूठी जानकारियां, खालिस्तान समर्थकोें और कश्मीर के आतंकवादियों से जुड़े कंटेंट पर सरकार काे आपत्ति है। कोरोना में जुड़े कुछ भ्रमित करने वाले कंटेंट पर भी सरकार को आपत्ति है। सरकार ने पिछले महीने ही ट्विटर को चेतावनी दी थी कि वह 6 और 9 जून के कुछ कंटेट को हटाने का निर्देश दिया था। ट्विटर की दलील है कि कुछ रियूवल आर्डर भारत के आईटी एक्ट के प्रावधानों पर खरे नहीं उतरते। साथ ही उसकी दलील यह है कि कुछ आर्ड्स में कंटेंट के लेखक को नोटिस नहीं है और कई पोस्ट राजनीतिक दलों के हैं। ऐसे में इन सभी अकाउंट्स को ब्लॉक करना अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। हैरानी की बात यह है कि सोशल मीडिया कम्पनियां भारत में काम करती हैं लेकिन यहां के कायदे कानूनों को मानने को तैयार नहीं। अब केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्नव ने सोशल मीडिया को लेकर चेतावनी दे दी है कि सोशल मीडिया अपने कंटेंट के लिए खुद जिम्मेदार होगा। वैश्विक रूप से सोशल मीडिया की जवाबदेही एक बड़ा सवाल बन गया है। जवाबदेही के लिए सबसे पहले सेल्फ रेगुलेशन जरूरी है। फिर उसके बाद इंडस्ट्री रेगुलेशन जरूरी है। देखना होगा कि सरकार बनाम ट्विटर की जंग क्या मोड़ लेती है।