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- महापुरुषों का चुनावी...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह भारत का दुर्भाग्य है कि देश के सारे महापुरुष अब एक पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने का माध्यम बन गए हैं। भारत अब तक स्मृति दोष का शिकार देश था। यह 130 करोड़ कृतघ्न लोगों का देश था, जो अपने महापुरुषों को याद नहीं करता था, उनका सम्मान नहीं करता और उनके बताए रास्ते पर नहीं चलता था। लेकिन उसी तरह यह भी सही है कि चुनिंदा तरीके से उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं होता था। पिछले छह साल से जिस तरह के महापुरुषों का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हुआ है वह अभूतपूर्व है। हालांकि इसका एक फायदा यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उन महापुरुषों के बारे में जानने लगे हैं। पर चिंता इस बात की है कि उन महापुरुषों के बारे में इतनी झूठी बातों का प्रचार हो रहा है कि उनकी गलत छवि लोगों के मन में बन सकती है। मिसाल के तौर पर राजनीति की हर धूर्तता, तिकड़म और अनैतिकता को चाणक्य नीति का नाम दिया जा रहा है। इससे हो सकता है कि आने वाली पीढ़ियां महान चाणक्य को ठग मानने लगें!