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- पाकिस्तान में
आदित्य नारायण चोपड़ा: पाकिस्तान में जो राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है और सियासत के नाम पर जिस तरह का सत्ता पक्ष और विपक्ष में तांडव हो रहा है उसे देख कर इस मुल्क की जम्हूरियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक पूरा लोकतांत्रिक देश नहीं है बल्कि इसकी सत्ता के दो प्रमुख अंग हैं जिनमें सेना का प्रभाव सर्वाधिक माना जाता है। हकीकत तो यह है कि पाकिस्तान में लोग जो सरकार अपने वोट के द्वारा चुनते हैं वह केवल नाम की सरकार होती है और सत्ता की असली प्रतिष्ठान पाकिस्तानी फौज को माना जाता है। पिछले चुनाव में जो 2018 में हुए थे उसमें पाकिस्तान की वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के नेता इमरान खान को पूर्ण बहुमत मिला था और इस तरह मिला था कि दुनिया के कई इस्लामी मुल्क चौक गए थे क्योंकि इमरान खान ने अपने चुनाव में भारत विरोधी एजेंडा चुनावी एजेंडा बना दिया था और यह नारा तब पाकिस्तान के शहरों में बहुत गुंजा था कि बल्ला घुमाओ भारत हराओं। भारत के साथ दुश्मनी की बुनियाद पर इमरान खान ने यह चुनाव जीते थे और उनके साथ पाकिस्तान के मजहबी कट्टरपंथी मौलिवयों का पूरा समूह था।पाकिस्तान में जिस तरह मुल्ला ब्रिगेड काम करती है उसने वहां के लोगों की नियत को जिहादी बना कर रखा हुआ है और इसके चलते पाकिस्तान में हिंदुस्तान के विरोध में जो भी अनर्गल प्रचार किया जाता है वह सब जायज माना जाता है लेकिन लगता है इमरान खान खुद अपने ही बुने हुए जाल में फंस गए हैं और इस तरह फंसे हैं कि पाकिस्तान की कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टी उनके खिलाफ है। देखने वाली बात यह है कि इमरान खान इस मुसीबत से किस तरह बाहर निकलते हैं क्योंकि नेशनल असेंबली में उनकी पार्टी का पूर्ण बहुमत होने के बावजूद जिस तरह से उनकी हुकूमत के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के कुछ सांसद बगावत कर रहे हैं उससे उनकी हुकूमत डगमगाती नजर आ रही है। यह पूरी दुनिया से छुपा नहीं है कि पाकिस्तान में महंगाई सातवें आसमान पर है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस मुल्क में चीनी का भाव 200 रुपए के आसपास हो उसकी तमाम माली हालत और वित्त व्यवस्था जिस तरह उधड़ी पड़ी है और समूचे मुल्क की अर्थव्यवस्था कर्ज में दबी हुई है उससे निजात पाना फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल के लिए संभव दिखाई नहीं पड़ता है बल्कि पाकिस्तान के राजनीतिक हलकों की अगर मानें तो वहां के राजनीतिक क्षेत्रों में यह आम चर्चा है की महान खान की मौजूदा खस्ता सरकार को तब तक चलने दिया जाए जब तक कि चुनाव करीब ना आ जाए।जाहिर है यह चुनाव 2023 में होंगे और तब तक इमरान खान अगर डगमगाई अर्थव्यवस्था और आसमान छूती मुद्रास्फीति की दर के साथ इस्लामाबाद में शासन की कमान संभाले रहते हैं तो पाकिस्तान की जनता उनकी पार्टी का पत्ता पूरी तरह साफ कर सकती है। अधिकतर विपक्षी दलों के नेताओं की ऐसी ही राय मानी जाती है मगर पाकिस्तान के साथ दिक्कत यह है कि वह अपनी हर राजनैतिक कमजोरी और नाकामी को भारत के खिलाफ कोई ना कोई मुद्दा उठाकर छुपाना चाहता है। इसी वजह से पाकिस्तान की खबर है इस्लामाबाद में 22 और 23 मार्च को मुस्लिम देशों के संगठन अर्थात ओआईसी का सम्मेलन हो रहा है जिसमें वह कश्मीर का मुद्दा भी उठाना चाहता है। हालांकि पाकिस्तान ऐसा नाजायज और नामुराद मुल्क है जिसके पास 54 के लगभग मुस्लिम देशों के सम्मेलन के लिए पर्याप्त सभा स्थल तक नहीं है। इस सम्मेलन की आड़ में इमरान खान एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। एक तरफ वह भारत विरोधी मुद्दे को मुस्लिम संगठन के देशों के बीच केंद्र में रखना चाहते हैं और दूसरी तरफ अपने ही देश के विपक्ष से अपना पल्ला झाड़ने के लिए अपनी राष्ट्रीय असेंबली में यह सम्मेलन आयोजित करना चाहते जिससे राष्ट्रीय असेंबली का सत्र आगे चल सके।संपादकीय :द कश्मीर फाइल्स : कड़वी सच्चाईकांग्रेस का संकट और समाधानपड़ोस पहले ; भारत की नीतिचीनी विदेश मन्त्री की यात्रा पहलवन रैंक वन पैंशन का मुद्दाद कश्मीर फाइल्स : नग्न सत्यहाल ही में इस्लामाबाद में जिस तरह उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सिंध हाउस पर हमला किया और वहां हिंसक प्रदर्शन तक किया उससे स्पष्ट है कि इमरान खान की मंशा किसी ना किसी तरह अपने खिलाफ विपक्ष द्वारा प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव को टालने की है मगर मुस्लिम लीग के नेता शहबाज शरीफ का यह कहना मायने रखता है कि राजनीतिक क्षेत्र में जो हो रहा है उसमें सेना का निरपेक्ष भाव बना हुआ है और वह किसी भी पार्टी के हक में खड़े हुए देखना नहीं चाहती। निश्चित रूप से पाकिस्तान का यह ऐसा अंदरूनी मामला है जिस पर टिप्पणी करना भारत जैसे महान लोकतंत्र के वारिस देश को शोभा नहीं देता।अतः इमरान खान को ही अपने किए गए पापों का प्रायश्चित करना होगा और जिस तरीके से उन्होंने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का बेड़ागर्क किया है उससे उभरने का तोड़ ढूंढना होगा मगर असलियत तो यह है कि पाकिस्तान कभी अमेरिका की गोद में जा बैठता है और कभी चीन के कंधे पर बैठ कर बंदर की तरह भारत पर खो-खो करने लगता है। पाकिस्तान की यह समस्या वहां के लोगों के लिए इस मुल्क के तामीर में आने के बाद से ही बनी हुई है क्योंकि पाकिस्तान ना तो कभी लोकतंत्र बन सका और ना कभी अपने ही देश में अपने ही नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा कर सकें और इस्लाम के नाम पर यह दहशतदर्गों की सैरगाह बन गया जिन्होंने दुनिया भर में आतंकवाद फैलाने में नए-नए कारनामे किए।