सम्पादकीय

ट्यूनीशिया: अरब वसंत और लोकतंत्र की मुश्किल राह

Neha Dani
12 Oct 2021 1:50 AM GMT
ट्यूनीशिया: अरब वसंत और लोकतंत्र की मुश्किल राह
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मुझे नहीं लगता कि पश्चिमी शैली का उदार लोकतंत्र वहां थोपा जा सकता है या थोपा जाना चाहिए।

जनवरी, 2011 में ट्यूनीशियाई लोगों द्वारा भारी प्रदर्शनों के जरिये अपने तानाशाह को सत्ता से बेदखल करने के करीब तीन महीने बाद अली बूसेलमी ने खुशी महसूस की थी। इस घटनाक्रम ने अरब दुनिया में हलचल मचा दी थी। बाद के दशक में ट्यूनीशिया के लोगों ने नए संविधान को अंगीकार किया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल की और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव में वोट डाला। बूसेलमी को भी उनके हिस्से का पारितोष मिला।

वह समलैंगिकों के अधिकार से संबंधित एक समूह के संस्थापक बन गए, 2011 से पहले जो कि असंभव ही था। लेकिन जैसे ही क्रांति की उम्मीदें राजनीतिक अराजकता और आर्थिक विफलता में बदल गईं, कई ट्यूनीशियाई लोगों की तरह, बूसेलमी को भी हैरत हुई कि क्या उनके देश को एक अकेले शासक के अधीन रहना अच्छा होगा, जिसके पास कामों को संपन्न करवाने की पर्याप्त शक्ति होगी।
मावजुद्दीन के 32 वर्षीय कार्यकारी निदेशक बूसेलमी ने कहा, मैंने खुद से पूछा कि हमने लोकतंत्र के साथ ये क्या कर दिया? हमने संसद सदस्यों को भ्रष्ट कर दिया, और यदि आप सड़क पर जाएं, तो वहां देख सकते हैं कि लोग एक सैंडविच तक नहीं खरीद सकते। और फिर अचानक एक जादुई छड़ी आई और कहा कि चीजें बदल रही हैं। इस जादुई छड़ी को ट्यूनीशिया के लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित राष्ट्रपति कैस सैयद ने थाम रखा था, जिन्होंने 25 जुलाई को संसद को निलंबित कर प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया, साथ ही भ्रष्टाचार से लड़ने और लोगों को सत्ता लौटाने का वादा किया।
यह सत्ता पर कब्जा करने जैसा था, जिसका भारी संख्या में ट्यूनीशिया के लोगों ने स्वागत किया और राहत महसूस की। मगर 25 जुलाई की घटना ने अरब वसंत से जुड़ी उम्मीदों को कठिन बना दिया है। पश्चिमी समर्थकों और अरब समर्थकों ने प्रमाणित किया था कि पश्चिम एशिया में भी लोकतंत्र फल-फूल सकता है, लेकिन अब अनेक लोगों को ट्यूनीशिया इस बात का अंतिम प्रमाण जैसा लग रहा है कि क्रांति अपने वादों पर नाकाम साबित हुई। अरब विद्रोह की जन्मस्थली में अब एक व्यक्ति के आदेश पर शासन चल रहा है।
इस क्रांति के बाद हुए युद्धों ने सीरिया, लीबिया और यमन को तबाह कर दिया। निरंकुश शासकों ने खाड़ी में प्रदर्शन का गला घोंट दिया। मिस्र के लोगों ने सैन्य तानाशाही को अपनाने से पहले एक राष्ट्रपति का निर्वाचन किया। फिर भी, क्रांति ने साबित कर दिया कि परंपरागत रूप से ऊपर से नीचे की ओर नियंत्रण करने वाली सत्ता सड़क पर प्रदर्शन करके भी हासिल की जा सकती है। यह ऐसा सबक था, ट्यूनीशियाई लोगों ने संसद और सैयद के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर जिसकी पुष्टि की। हालांकि इस बार लोग एक निरंकुश शासक पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर बरस रहे थे।
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स के नॉर्थ अफ्रीका के विशेषज्ञ तारेक मेहरिसी कहते हैं, अरब वसंत जारी रहेगा। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप उसे कितना दबाने की कोशिश करते हैं या आसपास का पर्यावरण उसे कितना बदलता है, बेताब लोग अपने अधिकारों को हासिल करने का प्रयास करते रहेंगे। सैयद की लोकप्रियता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, दमन और रोजमर्रा की जरूरतें पूरा न कर सकने की लाचारी से जुड़ी उन्हीं शिकायतों से उपजी थीं, जिनके कारण एक दशक पहले ट्यूनीशियाई, बहरीन, मिस्र, यमनियों, सीरियाई और लीबियाई लोग विरोध करने के लिए प्रेरित हुए थे। दस साल बाद ट्यूनीशिया के लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छोड़कर हर मामले में फिर वैसा ही अनुभव कर रहे हैं।
राजधानी ट्यूनिस से सटे जबाल अहमर के कामकाजी क्षेत्र की रहने वाली 48 वर्षीय होयेम बौकचिना कहती हैं, क्रांति से हमें कुछ नहीं मिला। हम अब भी नहीं जानते कि योजना क्या है, लेकिन हम उम्मीद के सहारे जी रहे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अरेबिक एंड इस्लामिक स्टडीज की स्कॉलर एलिसबेथ केंडल कहती हैं, मुझे नहीं लगता कि पश्चिमी शैली का उदार लोकतंत्र वहां थोपा जा सकता है या थोपा जाना चाहिए।

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