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सुधीश पचौरी: यों ये दिन 'बाईस' के हैं, लेकिन नजर 'चौबीस' पर है। हर खबर चौबीस के लिए दौड़ती है, इसीलिए इन दिनों कई नेता 'भारत जोड़ो' से पहले 'विपक्ष जोड़ो' और उससे भी पहले 'अपने को जनता से जोड़ो' के लिए निकलते दिखते हैं! इस मामले में सबसे बड़ी पहल राहुल गांधी करते हैं: वे पहले रामलीला मैदान में भाजपा पर बरसते हैं कि भाजपा नफरत पैदा करती है, देश को बांटती है, नफरत का फायदा अमीरों को मिलता है, जिन्होंने मीडिया की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है, क्योंकि मीडिया भी उन दो उद्योगपतियों के हाथ में है, वह अपना काम नहीं करता। जनता जानती है कि टीवी किसका है, किसके लिए काम करता है। अखबार दो उद्योगपतियों के हैं, वे उद्योगपतियों का काम करते हैं, उद्योगपति मोदी का काम करते हैं… मंहगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी बढ़ रही है।
सच कहें, रामलीला मैदान में राहुल भैया किसी 'कामरेड' की तरह बोले! एकदम 'रेडिकल लाइन' ली! कांग्रेसी कार्यकर्ता जोश में दिखे! फिर दो दिन बाद राहुल ने कार्यकर्ताओं के साथ कन्याकुमारी से सामूहिक पदयात्रा शुरू कर बड़ी खबर बनाई। कांग्रेसी प्रवक्ता बताते रहे कि हमें 'आइडिया आफ इंडिया' बचाना है, भारत बचाना है, संविधान बचाना है, संस्थान बचाने हैं, जनतंत्र बचाना है, सेक्युलरिज्म बचाना है, देश को टुकड़े-टुकड़े होने से बचाना है, नफरत से बचाना है, महंगाई से बचाना है, बेरोजगारी से बचाना है, जनता को जोड़ना है।
इस 'बचाना बचाना' पर तुरंत भाजपा ने तंज मारा कि बचाना बचाना का मतलब है 'परिवार को बचाना'! और फिर जल्द ही 'लाइन क्लीअर' की गई: एक बड़े कांग्रेसी नेता कहिन कि राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना है। दूसरे बोलिन कि राहुल को पीएम बनाना है। तीसरे ट्वीटिन कि राहुल भावी पीएम हैं।
बहरहाल, पदयात्रा के तीसरे दिन वाली प्रेस कान्फ्रेंस में राहुल बड़े ही 'रिलैक्स्ड मूड' में दिखे। वे हंसते हुए भी दिखे! यह 'पदयात्री राहुल' उस राहुल से अधिक 'सहज' नजर आता है, जो हर समय गुस्से में नजर आता था!
हम तो कहेंगे कि सर जी! सावधान! कांग्रेस 'हंसने' लगी है। आप भी कुछ हंसना सीखिए! 'हंसी' आज की राजनीति का नया आयाम है! ध्यान रहे: पदयात्रा 'डेली बाइट' की तरह होती है। वह रोज खबर बनाएगी। रोज चैनलों में आएगी और अक्सर ही बहस में छाएगी। जितनी बहस में छाएगी उतनी ही लोकप्रिय होगी। यही इस पदयात्रा की राजनीति है!
इससे पहले तीन दिन की दिल्ली यात्रा में नीतीश जी ने पहले विपक्ष को जोड़ने की मुहिम चलाई। विपक्ष जुड़ेगा तो 'बड़ी बात होगी'। प्रेसवाले पूछते रहे कि क्या यह सब पीएम बनने की कवायद है, तो जवाब दिए कि हम पीएम बनने के इच्छुक नहीं! इसे कहते हैं राजनीति का 'निष्काम कर्मयोगी'!
कहीं हम दूसरे 'जेपी' को तो नहीं देख रहे? वे राहुल से मिलते हैं, सीताराम येचुरी से मिलते हैं, ए. राजा से मिलते हैं।
इस क्रम में नीतीश से केसीआर की मुलाकात कुछ 'कामिक' नजर आती है: नीतीश कुर्सी से बार-बार उठते हैं, लेकिन केसीआर उनका हाथ पकड़ कर बार-बार बिठाते रहते हैं, जिसे देख लोग हंसते दिखते हैं! यानी मान न मान मैं भी पीएम! बहरहाल, यात्रा के अंत में एक नेताजी दो टूक कह देते हैं, ताकि कोई गलतफहमी में न रहे कि चौबीस में नीतीश पीएम होंगे और तेजस्वी सीएम!
फिर एक दिन मुंबई के एक कब्रिस्तान से कुख्यात आतंकवादी याकूब मेमन की 'कब्र' के 'मजार' में बदलने की खबर ब्रेक होती है और प्राइमटाइम में एक एंकर दहाड़ता दिखता है कि भारत भूमि पर किसी आतंकवादी को समारोहित करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? लेकिन भैये! जय हो अपने जनतंत्र की कि याकूब मेमन के पक्ष में भी बोलने वाले जम के बोलते नजर आए!
फिर एक दिन रणवीर कपूर-आलिया भट्ट की नई फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' पर उज्जैन के बजरंग दल वालों ने अपने वाला 'बायकाटवादी ब्रह्मास्त्र' चला दिया कि जो बीफ खाता है वह महाकालेश्वर में पूजा का हकदार नहीं! लाठी चली, गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन हीरो-हीरोइन महाकालेश्वर का अशीर्वाद न ले सके! भैये! ऐसा भी है अपना जनतंत्र!
और अंत में एक शाम पीएम मोदी ने राजपथ को कर्तव्यपथ घोषित कर और 'सेंट्रल विस्टा' पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति का अनावरण कर कह दिया कि गुलामी की निशानी 'राजपथ' अब 'इतिहास' हुआ… इस पर तुरंत कुछ पुरानी-सी बहसें उठ खड़ी हुईं कि महंगाई, बेरोजगारी प्राथमिक हैं या कि ये तमाशे। चलते चलते: अंत में भाजपा वालों को राहुल की टीशर्ट पकड़ में आ गई और करने लगे तंज कि एक ओर भारत जोड़ो, दूसरी ओर इकतालीस हजार की टीशर्ट!