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सम्पादकीय
कोशिश करें अपने सारे काम करते हुए भी ईश्वर की अनुभूति का स्तर अवश्य स्पर्श किया जाए
Gulabi Jagat
12 April 2022 8:49 AM GMT

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संसार में व्यापार तो कई लोग करते हैं, पर कमाना कुछ को ही आता है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
संसार में व्यापार तो कई लोग करते हैं, पर कमाना कुछ को ही आता है। नौकरी भी बहुत सारे करते हैं, लेकिन उसमें आगे बढ़ना कम ही लोग जानते हैं। ऐसे ही भक्ति की दुनिया में भी परमात्मा से जुड़ तो बहुत लोग जाते हैं, लेकिन उसे अनुभूत करने वालों की संख्या कम ही होती है। ईश्वर की अनुभूति का दृश्य अलग ही होता है। रामचरित मानस का सातवां सोपान है उत्तर कांड।
उत्तर के दो अर्थ होते हैं- एक अंतिम और दूसरा जवाब। यह रामचरित मानस का अंतिम कांड तो है ही, जीवन के सारे प्रश्नों के उत्तर भी इसमें मिल जाते हैं। राम के अयोध्या लौटने में एक दिन शेष था, अवध के लोग उनके इंतजार में बहुत आतुर थे। तभी शुभ शगुन होने लगे और तुलसीदासजी ने लिखा- 'सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर। प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुं फेर।'
अच्छे शगुन के साथ सबके मन प्रसन्न हो गए, नगर चारों ओर से रमणिक हो गया। मानो ये सब संकेत प्रभु के शुभ आगमन की सूचना दे रहे हैं। बस, ऐसा ही दृश्य हमारे जीवन में आता है। जब हम योग-ध्यान के माध्यम से अपनी आत्मा पर जाते हैं और परमात्मा की अनुभूति होने लगती है तो आसपास का वातावरण शुद्ध, आनंदमय हो जाता है। तो कोशिश करें अपने सारे काम करते हुए भी ईश्वर की अनुभूति का स्तर अवश्य स्पर्श किया जाए।
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