सम्पादकीय

सुलह की कोशिश हो

Subhi
28 July 2022 3:47 AM GMT
सुलह की कोशिश हो
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संसद के मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों में शांति बनाए रखने की सत्ता पक्ष की इच्छा कुछ ज्यादा ही कठोर कार्रवाइयों के रूप में सामने आई है। अब तक राज्यसभा के 20 सदस्य इस सप्ताह के लिए और लोकसभा के 4 सदस्य पूरे सत्र के लिए निलंबित किए जा चुके हैं।

नवभारत टाइम्स; संसद के मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों में शांति बनाए रखने की सत्ता पक्ष की इच्छा कुछ ज्यादा ही कठोर कार्रवाइयों के रूप में सामने आई है। अब तक राज्यसभा के 20 सदस्य इस सप्ताह के लिए और लोकसभा के 4 सदस्य पूरे सत्र के लिए निलंबित किए जा चुके हैं। विपक्षी दल महंगाई और जीएसटी दरों में बढ़ोतरी के मुद्दों पर तत्काल बहस की मांग कर रहे थे। सत्ता पक्ष का कहना है कि ये सदस्य कुछ सुनने को तैयार नहीं थे और सदन की कार्यवाही में निरंतर बाधा डाल रहे थे। बावजूद इसके, इस तरह की कार्रवाई को जायज नहीं ठहराया जा सकता। संसद सत्र के दौरान विपक्षी सदस्यों का हंगामा करना, नारे लगाना या वेल में जाना कोई नई बात नहीं है। बेशक इस वजह से कई बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है, लेकिन किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे विपक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार माना जाता है। विपक्ष किसी मुद्दे पर सदन की कार्यवाही रोककर या संसद में कामकाज ठप करके भी राजनीतिक संदेश देता है। सत्ता पक्ष जरूर कोशिश करता है कि ऐसी नौबत न आए और संसद का कामकाज सुचारू रूप से चले। यह उसका दायित्व भी है। लेकिन इसके लिए वह विपक्षी दलों और प्रमुख नेताओं से बातचीत कर उनके साथ तालमेल बनाने और उन्हें विश्वास में लेने का तरीका अपनाता है।

यह समझना जरूरी है कि संसद के दोनों सदनों में क्लासरूम जैसे अनुशासन की न तो जरूरत होती है और न उसकी अपेक्षा की जा सकती है। हर सांसद अपने क्षेत्र की जनता की आवाज होता है। वह उनकी सोच और उनके हितों की नुमाइंदगी कर रहा होता है। इसी तरह विपक्ष का अपना दायित्व होता है जो सरकार की इच्छा और उसकी तय की हुई शर्तों के अनुरूप चलने से पूरा नहीं होता। भले सत्ता पक्ष के पास संख्या बल हो, विपक्ष की आवाज को संरक्षित करने की जिम्मेदारी उसकी भी होती है। इस जिम्मेदारी को नजरअंदाज करना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। चिंता की बात है कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में यह प्रवृत्ति कमजोर पड़ने के बजाय मजबूत हो रही है। पिछले सत्र में विपक्ष के 12 सदस्य निलंबित किए गए थे। इस बार राज्यसभा के 19 सदस्य एक साथ निलंबित कर दिए गए, जो अब तक का रेकॉर्ड है। समझना होगा कि ऐसे कदमों से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चला आ रहा तनाव कम नहीं होता, बल्कि बढ़ जाता है। इससे सदन के भीतर कामकाज के लायक माहौल बनाना और मुश्किल हो जाता है। दोनों पक्षों के जिम्मेदार सदस्यों को अपनी तरफ से तत्काल पहल करके समझौते की कोई राह निकालने की कोशिश करनी चाहिए।


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