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- लिज पर भरोसा: कांटों...

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तमाम विवादों से घिरे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के इस्तीफे के दो माह बाद आखिरकार ब्रिटेन को नये प्रधानमंत्री के रूप में लिज ट्रस मिल गई हैं। इसके बावजूद भारतवंशी ऋषि सुनक ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। तमाम भारतीय उम्मीद लगा रहे थे कि जिस ब्रिटेन ने सैकड़ों साल भारत पर राज किया, वहां की बागडोर अब एक भारतवंशी संभालेगा। सुनक मजबूती से चुनाव लड़े भी, नई पीढ़ी के सांसद उनके समर्थन में थे,लेकिन पार्टी के अनुदारवादी सदस्यों ने उन्हें नकार दिया। कह सकते हैं कि ब्रिटिश समाज खासकर टोरी पार्टी फिलहाल अभी किसी अश्वेत को अपने प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं है। नहीं भूलना चाहिए कि बोरिस जॉनसन सरकार के दौरान एक वित्तमंत्री के रूप में ऋषि सुनक की पारी दमदार रही जो ब्रिटेन में उनकी व्यापक लोकप्रियता का सबब बनी। लेकिन पार्टी नेता के चुनाव के दौरान लिज ट्रस ने भी जनता को राहत की रेवड़ियां देने का वायदा किया, जो आर्थिक संकट से गुजर रहे ब्रिटेन को शायद की रास आये। लिज के लिये एक बड़ा सबक यह होगा कि उनके चुनाव अभियान व प्रधानमंत्री बनने के बीच ब्रिटेन का उपनिवेश रहा भारत उसे पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। बहरहाल, आज यह एक हकीकत है कि सांसदों के वोट हासिल करके भी प्रधानमंत्री की दौड़ में दमदार प्रत्याशी सुनक अनुदारवादी पार्टी प्रतिनिधियों की नापसंदगी से पीछे रह गये। ऋषि सुनक ऐसे नेता हैं जो कोरोना काल के संकट, ब्रेग्जिट के बाद उत्पन्न हालात तथा रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे ऊर्जा संकट से ब्रिटेन को सुरक्षित निकालने का दमखम रखते थे। लेकिन इसके बावजूद मुकाबले में अंतिम समय तक बने रहना एक भारतवंशी के लिये गर्व की बात है। अभी उनकी उम्र मात्र 42 साल है और उनके लिये राजनीति के तमाम अवसर प्रतीक्षा कर रहे हैं। बहरहाल, इस चुनौतीपूर्ण समय में ब्रिटेन को एक ईमानदार व मजबूत नेतृत्व की सख्त जरूरत है। शायद लिज इस कसौटी पर खरी उतर पायें।
बहरहाल,अब भारी बहुमत से सत्ता में आये बोरिस जॉनसन के विवादित कार्यकाल का पटाक्षेप हो गया है। लेकिन लिज के लिये यह वक्त जश्न के बजाय टेंशन का साबित हो सकता है। कभी दुनिया का सिरमौर रहा ब्रिटेन फिलहाल जीवन-यापन के संकट से गुजर रहा है। मंदी के दौर से गुजरते ब्रिटेन में जुलाई में मुद्रा स्फीति दस फीसदी से अधिक रही। बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है। लिज को जहां ऊर्जा बिलों से निपटना है, वहीं भविष्य की ईंधन आपूर्ति सुरक्षित करनी है। उन्होंने चुनाव अभियान में एक सप्ताह में योजना को मूर्त रूप देने की बात कही थी। उन्होंने लोगों को सीधा लाभ देने व करों में कटौती की बात कही थी। लेकिन यदि लिज ऐसा करती हैं तो अर्थशास्त्री मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका जता रहे हैं। ऐसे में लिज के सामने न केवल मौजूदा स्थितियों से देश को उबारने की जरूरत है बल्कि पार्टी द्वारा आम चुनाव के दौरान किये गये वायदों को भी पूरा करना है। उनके पास समय बहुत कम है क्योंकि वर्ष 2024 में फिर अनुदारवादियों को जनता की अदालत में जाना है। ऐसे में देखना होगा कि लिज किस हद तक ब्रिटेन को स्थिर, ईमानदार व मजबूत नेतृत्व दे पाती हैं। उन पर दबाव होगा कि उनकी सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध में सीधी भागीदारी के बजाय घरेलू समस्याओं के समाधान को प्राथमिकता दे। बहरहाल, इसके बावजूद भारत को ब्रिटेन से बेहतर रिश्तों की उम्मीद है। बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा के दौरान मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में जो बात बढ़ी थी, उसे शीघ्र क्रियान्वित करने की जरूरत होगी। कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य के रूप में मार्गरेट थैचर व थेरेसा मे के बाद तीसरी महिला प्रधानमंत्री लिज ट्रस से ब्रिटिश जनमानस को बड़ी उम्मीदें हैं। देश को मौजूदा संकट से उबारने के साथ ही उन पर अगले चुनाव में पार्टी को जितवाने का दायित्व भी होगा। तभी वे आत्मविश्वास के साथ अगले पूरे कार्यकाल के लिये वोट मांग सकेंगी। फिलहाल उन्हें आंतरिक व विदेशी मोर्चे पर भी जूझना होगा।
दैनिक ट्रिब्यून के सौजन्य से सम्पादकीय

Gulabi Jagat
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