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सच और झूठ का खेल बड़ा निराला है. क्या हम में से किसी ने कभी इस बात पर चिंतन किया है कि
सच और झूठ का खेल बड़ा निराला है. क्या हम में से किसी ने कभी इस बात पर चिंतन किया है कि मनुष्य झूठ क्यों बोलता है और सच बोलने से इतना घबराता-कतराता क्यों हैं? झूठ एक ऐसा आवरण है, जिसे ओढ़े रखने में बड़ी समस्या है, पर जब वह हमारा संस्कार बन जाता है, तब वह बहुत आकर्षक लगने लगता है. आकर्षक इसलिए, क्योंकि झूठ बोलनेवाला व्यक्ति अपनी बातों को दूसरों के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करता है, मानो वह सच ही बोल रहा है. किंतु ऐसा करने में वह भूल जाता है कि आखिरकार वह स्वयं तथा दूसरों को धोखा ही दे रहा है.
झूठ बोलनेवाला व्यक्ति जिंदगीभर झूठी व मनगढ़ंत बातों को मनवाने के लिए अनेक प्रकार के जतन करता है. परिणामस्वरूप, उसकी बहुमूल्य ऊर्जा एवं शक्ति नष्ट होती रहती है. अपने गुणों व शक्तियों को श्रेष्ठ कार्यो में लगाने की बजाय ऐसे व्यक्ति झूठी बातें करने और उसे फैलाने में अपना समय बर्बाद करते रहते हैं. झूठ आज हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है. हम झूठ बोलने के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि इसके बगैर हमें चैन ही नहीं मिलता है. इसी कारण अमेरिकी निबंधकार इमर्सन को कहना पड़ा की 'नि:संदेह सच बहुत सुंदर है, लेकिन झूठ के साथ भी कुछ ऐसा ही है.'
व्यवहार स्वभाव संबंधी वैज्ञानिकों के अनुसार, झूठ हमारे अचेतन में प्रवेश कर गया है और इसीलिए हम अनजाने में भी झूठ बोलते चले जाते हैं. जब हम नया झूठ बोलने की योजना बनाते हैं, केवल तब ही हमें अहसास होता है कि हम पिछली बार की तरह फिर से झूठ बोलने जा रहे हैं. अन्यथा, हम प्रतिदिन न जाने कितने झूठ बोलते रहते हैं और हमें उसका जरा सा भी अहसास नहीं होता है. पर प्रश्न उठता है कि आखिर झूठ बोलना इतना जरूरी क्यों हैं?
क्या उसके बिना हमारा जीवन निर्वाह संभव नहीं हो पायेगा? हमारे भीतर छुपे लालच, भय, अस्वीकृति जैसे अवगुण ही हमें झूठ बोलने के लिए प्रेरित करते हैं. अतः हमें विद्वानों द्वारा दी गयी शिक्षा का अनुसरण करते हुए अपने भीतर छुपी सत्य की शक्ति को जाग्रत करके असत्य का पूर्ण नाश करना चाहिए. - ब्रह्माकुमार निकुंज जी
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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