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![बंगाल में भाजपा के लिए सही सबक: भाजपा बंगाल जैसे राज्य में उदार हिंदुत्व के जरिये ही पैठ बना सकती है बंगाल में भाजपा के लिए सही सबक: भाजपा बंगाल जैसे राज्य में उदार हिंदुत्व के जरिये ही पैठ बना सकती है](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/05/10/1049660-v.webp)
एनके सिंह: पश्चिम बंगाल की हार के बाद भाजपा को यह समझना होगा कि मजबूत सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय पहचान रखने वाले समाजों में धार्मिक प्रतिबद्धता का स्वरूप बदलता जाता है। लिहाजा जय श्रीराम का जो चुनावी घोष उत्तर भारत के राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में असर रखता है, वह बंगाल और केरल, तमिलनाडु सहित कई राज्यों में प्रभावी नहीं। बंगाल जनादेश के विश्लेषण से स्पष्ट दिखेगा कि ऐसे राज्यों में राजनीतिक पैठ तब तक नहीं होगी, जब तक सामाजिक स्तर पर पार्टी उस समाज में दूध-पानी की तरह नहीं मिलेगी। बंगाल में तोलाबाजी (तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं की उगाही) एक हकीकत और भोगा हुआ यथार्थ है, लेकिन उससे भी एंटी-इनकंबेंसी नहीं पैदा हुई, क्योंकि तृणमूल से आयातित नेताओं को चुनाव में सिरमौर बनाने से बड़ी और स्पष्ट विचारधारा वाली पार्टी के प्रति जनता की विश्वसनीयता घटी। समाज से घुलने-मिलने का काम प्रारंभिक दौर में भाजपा के बूते का नहीं। यह केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही कर सकता है। बंगाली मानुष के दुख-सुख में शामिल होना, सेवा कार्य करना, अलग-अलग सामाजिक पहचान वाले समूहों के लिए प्रकल्प बनाकर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं धार्मिक जीवन में पैठ बनाने के लिए वर्षों तक काम करना होता है। यह काम मोदी और शाह के एक दिन में कई रैलियों से नहीं होगा। यह काम स्थानीय कार्यकर्ताओं को ठुकरा कर आयातित लोगों को टिकट देने से भी नहीं होगा। इसके उलट असम एक उदाहरण है, जहां संघ के दो दशक से ज्यादा के सेवा-कार्यों का प्रतिफल था भाजपा का सत्ता में आना।