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कोरोना महामारी के कारण, बीते दो सालों से नहीं हो पाया था
दिव्याहिमाचल। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का सिर्फ छह घंटों के लिए भारत आना, आपसी रक्षा सहयोग का 10 और सालों के लिए विस्तार, भारत को महाशक्ति और वक़्त की कसौटी पर खरा उतरा मित्र करार देना ही भारत-रूस दोस्ती की गहराई और अंतरंगता की व्याख्या करता है। यह दोस्ती करीब 74 साल पुरानी है, जबकि रणनीतिक साझेदारी को भी 20 साल हो चुके हैं। वक़्त बदला है, भू-राजनीति और कूटनीति में नए समीकरण उभरे हैं, भारत अमरीका का भी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, रूस और चीन की दोस्ती भी मजबूत है, लेकिन भारत-रूस की दोस्ती बेमिसाल है। दोनों देशों के बीच सालाना शिखर सम्मेलन, कोरोना महामारी के कारण, बीते दो सालों से नहीं हो पाया था।
पहली बार 2 जमा 2 स्तर पर रक्षा और विदेश मंत्रियों की बैठकें भी हुई हैं। मंत्रालयों के बीच ही समझौते और एमओयू लागू किए जाते हैं, लेकिन भारत-रूस आपसी दोस्ती की गरिमा और अहमियत को समझते हैं, लिहाजा राष्ट्रपति पुतिन अल्पकाल के लिए भी नई दिल्ली आए। यदि भारत-अमरीका रणनीतिक साझेदार देश हैं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और क्वाड में सहयोगी सदस्य हैं, रूस इन सैन्य समीकरणों का विरोधी रहा है, लेकिन वह भारत का भरोसेमंद दोस्त रहा है। रूस ने भारत की सैन्य-शक्ति और समृद्धि को कई गुना विस्तार दिया है। हम आज भी 80 फीसदी रक्षा उपकरण और अस्त्र-मिसाइल, टैंक, हथियार, लड़ाकू विमान और अत्याधुनिक असॉल्ट राइफल्स आदि-रूस से ही खरीदते हैं। रूस ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का वायदा भी किया है। एके-47 का आधुनिकतम संस्करण एके-203 असॉल्ट राइफल्स (6 लाख से अधिक) उप्र के अमेठी में ही निर्मित की जाएंगी। यह 5100 करोड़ रुपए से ज्यादा का सौदा है। इसके अलावा, अमरीका के विरोध और आर्थिक पाबंदी की धमकी के बावजूद भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का सौदा किया है। इस अत्याधुनिक सिस्टम की आपूर्ति भी शुरू होने वाली है। भारत एस-500 डिफेंस सिस्टम के सौदे पर भी रूस से बातचीत कर रहा है, लेकिन हमारा आग्रह है कि यह प्रणाली चीन को न दी जाए। चीन की आक्रामकता का दबाव और तनाव भारत पहले से ही झेल रहा है।
रक्षा मंत्रियों के संवाद में हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख सीमा पर चीनी सेना की तैनाती का मुद्दा भी साझा किया है। रूस भारत के पक्ष में चीन को भी समझाता रहा है, लेकिन बेकार के दख़ल को वह पसंद नहीं करता। रूस भारत-चीन को द्विपक्षीय मामलों के संदर्भ में सक्षम और समझदार मानता है। बहरहाल अपने क्षेत्र में भारत एक ऐसी ताकत है, जिसकी रणनीतिक साझेदारी की दरकार रूस और अमरीका सरीखी महाशक्तियों को है। चीन भी भारत को चुनौती मानता रहा है। यही महत्त्वपूर्ण कारण रहा होगा कि एस-400 डिफेंस सिस्टम की खरीद के बावजूद अमरीका भारत के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठा सका। भारत-रूस के बीच 28 करार किए गए हैं। रक्षा के अलावा तकनीक, ऊर्जा, व्यापार, निवेश, बौद्धिक संपदा, संस्कृति, तकनीकी अनुसंधान, इलेक्ट्रोनिक्स, विश्वविद्यालय स्तरीय आदि के क्षेत्रों में भी सहयोग के समझौते किए गए हैं। 2025 तक व्यापार को 30 अरब डॉलर और निवेश को 50 अरब डॉलर तक करने का संकल्प लिया गया है। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की पैरोकारी करता रहा है। इस बार भी उसने समर्थन दोहराया है। गौरतलब यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने अफगानिस्तान के साथ-साथ आतंकवाद, नशीले पदार्थ और संगठित अपराध पर साझा सरोकार जताया है। यह दोस्ती आम आदमी की मानसिकता से जुड़ी है, लिहाजा शाश्वत है।
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