सम्पादकीय

मंदा पड़ा टीआरपी का धंधा, टीआरपी के बिना चैनल वाले हो जाएंगे दिशाहीन

Gulabi
18 Oct 2020 4:19 AM GMT
मंदा पड़ा टीआरपी का धंधा, टीआरपी के बिना चैनल वाले हो जाएंगे दिशाहीन
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एक मित्र है। घनिष्ठ है, क्योंकि सेटिंग वाला है। सेटिंग वाले है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एक मित्र है। घनिष्ठ है, क्योंकि सेटिंग वाला है। सेटिंग वाले है, क्योंकि न्यूजचैनलीय व्यक्ति हैं। दोस्त वही, जो सेटिंग वाला हो। इधर का उधर करना जिसके बाएं हाथ का खेल हो। तीन-पांच करके, जो नौ दो ग्यारह होना जानता हो। जन के प्रतिनिधियों और बाजार की तरह जनता को बरगलाना जानता हो। तो ऐसे मित्र प्राप्ति का सौभाग्य मुझे मिला है। गाहे-बगाहे इस सौभाग्य को जांचने हेतु मित्र की भी जांच-परख कर लेता हूं। इसी सिलसिले में मैं उससे मिलने गया।

भाव नहीं तो टीआरपी नहीं

मैं घर पहुंचा तो उसकी ऐंकरमयी मुस्कान नदारद थी। पूरे घर का माहौल चुनाव में हारी हुई पार्टी के कार्यालय जैसा लुटा-पिटा दिख रहा था। मैंने बिना किसी लाग-लपेट के सीधे सवाल दाग दिया कि क्या हुआ? कोरोना तो नहीं हो गया? उसे कुछ सूझा नहीं। जब मैंने चिल्लाकर पूछा कि द नेशन वांट्स टू नो, तब जाकर उसमें कुछ हरकत हुई। बोला, भाई! अपनी औकात मे रहो। हमारी कॉपी करने की कोशिश कतई न करो। बिना कैमरा और माइक के ऐसे हमलावर नहीं होते। कोई भाव नहीं देता। भाव नहीं तो टीआरपी नहीं...खैर। बेहद उदास हूं यार।'

तुमने न्यूज तो सुनी ही होगी'

मैं किसी हारी हुई पार्टी के प्रवक्ता की तरह 'डाउन टू अर्थ' होकर बोला, 'मैं तो बस जानना चाह रहा था कि आखिर जिस शख्स के चेहरे से हमेशा आग बरसती हो, टीवी पर जिसकी आवाज सुखोई का एहसास कराती हो, जिसकी डिबेट का वॉल्यूम बढ़ाने पर घर की दीवारें तक हिलने लगें, वह सरकारी चैनल की तरह शांत बैठा है। ऐसा क्या हुआ? इस पर वह किसी पीड़ित के माफिक फफक पड़ा और बोला, 'तुमने न्यूज तो सुनी ही होगी।'

टीआरपी और एमआरपी के बिना कुछ नहीं चल सकता

मैंने कहा कि अरे जिसका तुम जैसा यार हो तो उसे न्यूज देखने की आदत कहां से रह जाएगी। वह तिलमिलाकर बोला कि बकवास मत करो, मैं टीआरपी स्थगित होने से उदास है। मैंने दिलासा देते हुए कहा, 'उसमें कौन सी बड़ी बात है। कुछ दिन की ही तो बात है। फिर शुरू हो जाएगी। वैसे भी टीआरपी और एमआरपी के बिना कुछ नहीं चल सकता।' वह गुर्राते हुए बोला, 'तुम्हे क्या पता कि टीआरपी क्या होती है हमारे लिए? ऑक्सीजन से कम नहीं होती। आज लग रहा है कि जैसे सांसें ही साथ छोड़ रही हैं। ये सारी शानोशौकत भी भगवान की नहीं, टीआरपी की ही देन है।'

जनता ब्रेकिंग न्यूज की दीवानी, हम टीआरपी के दीवाने

भड़ास निकलने से मित्र थोड़ा शांत हुआ तो मैंने तुरंत अगला सवाल दाग दिया। आखिर इस टीआरपी में ऐसा क्या है जो इस पर इतना बवाल? बस उसने सवाल को लपक लिया और बोला, 'जैसे जनता ब्रेकिंग न्यूज की दीवानी है तो वैसे ही हम टीआरपी के दीवाने हैं। जनता ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर कुछ भी देखकर बहल जाती है और हमारी टीआरपी बढ़ाती है। पता है इसके लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं हमें। समझ लो कि नेता को तो पांच साल में एक बार जनता के सामने दंडवत होना पड़ता है और हमें चौबीसों घंटे।' सहानुभूति न होते हुए भी मैंने जताने का प्रयास करते हुए कहा, 'ओह, यह बात है, लेकिन चिंता मत करो। कुछ वक्त बात तुम्हारी टीआरपी का धंधा फिर गुलजार होगा।' इस पर वह तुनक गया और बोला, 'अमा यार लेखक हो, फिर भी अनपढ़ों जैसी बात क्यों करते हो? असर क्यों नहीं पड़ेगा। अब समझो कि हम लक्ष्यविहीन मिसाइल जैसे हो गए हैं।

लक्ष्य नहीं होगा, तो चैनल वाले दिशाहीन हो जाएंगे

लक्ष्य नहीं होगा, तो हम चैनल वाले दिशाहीन हो जाएंगे। वही घिसी-पिटी खबरें चलानी पड़ेंगी। हमारे लिए टीआरपी-पकड़ू न्यूज तो यह है कि कोई सेलिब्रिटी नेता-अभिनेता कब और कहां से निकल रहा है। असल मसलों से क्या फर्क पड़ता है? ये रोज की किच-किच दिखाकर हम भोले-भाले लोगों को बोर तो नहीं करना चाहते थे। लेकिन अब हमें मजबूरन अपराध, दुराचार और भ्रष्टाचार जैसी फालतू न्यूज चलानी होंगी।'

मित्र की दुर्दशा मुझसे देखी नहीं जा रही थी

मित्र की दुर्दशा मुझसे देखी नहीं जा रही थी। मैंने उसे तुरंत कहा, भाई जल्द तुम्हारा टीआरपी लेवल दुरुस्त हो...यही कामना है...'यह कहकर मैं लुढ़कती हुई टीआरपीपी की तरह वहां से खिसक लिया।'

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