सम्पादकीय

त्रिपुरा हिंसा : बांग्लादेश को चीन-पाक धुरी से जोड़ने की साजिश

Gulabi
13 Nov 2021 11:45 AM GMT
त्रिपुरा हिंसा : बांग्लादेश को चीन-पाक धुरी से जोड़ने की साजिश
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त्रिपुरा हिंसा

पिछले दिनों त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा और उसमें त्रिपुरा हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के राजनीतिक-कूटनीतिक निहितार्थ को सही ढंग से समझने के लिए हमें बांग्लादेश चलना पड़ेगा। 13 अक्तूबर को बांग्लादेश के कुमिल्ला शहर की एक बस्ती में दुर्गा पूजन समारोह चल रहा था। अचानक एक फोटो वायरल होता है, जिसमें हनुमान की मूर्ति के पैरों पर कुरान शरीफ को रखा दिखाया गया था। इसके बाद बांग्लादेश की आपातकालीन सेवा के नंबर 999 पर इसकी खबर दी जाती है। फिर पूर्व नियोजित तरीके से हिंदुओं के घरों पर हमले किए जाने लगे। हिंदुओं को बचाने में पुलिस फायरिंग में छह दंगाई मारे गए।


बांग्लादेशी प्रेस के अनुसार, दुर्गा पूजा पंडाल तक कलाम पाक को इकबाल हुसैन ले गया और उसी ने बेहुरमती का अपराध किया। इकराम हुसैन ने 999 को सूचित किया। फयाज अहमद ने उसे फेसबुक पर डाला। इन तीनों का संबंध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जमात-ए-इस्लामी या अन्य कट्टरपंथी संगठनों से है। भारत की मित्र, अवामी लीग की नेता, प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने फौरी प्रतिक्रिया में प्रशासन को सख्त कार्रवाई का आदेश देते हुए जनता से सोशल मीडिया पर यकीन न करने की अपील की।

बांग्लादेश विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि पचास साल पहले कुछ घरेलू ताकतों ने देश की आजादी का विरोध किया था। हिंसा, नफरत और कट्टरपन फैलाने में यही ताकतें लगी हुई हैं। हिंसा के कुछ दिन बाद कोलकाता आए बांग्लादेश के सूचना और प्रसारण मंत्री हसन महमूद ने कहा,'हमारा यकीन है कि न तो कोई हिंदू और न मुसलमान पूजा पंडाल में कलाम पाक को रखेगा। और न मस्जिद में गीता को रखा जाएगा। देश में अराजकता और अस्थिरता फैलाने की कट्टरपंथियों की यह चाल थी।

वर्ष 1971 में पाकिस्तान के नजदीकी लोगों ने आजादी की लड़ाई का विरोध किया था; उनकी संतानें आज भी यहीं हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), जमात और इसी तरह के संगठन फिरकापरस्ती पर पनपते हैं।' उन्होंने यह भी बताया कि बांग्लादेश में हिंदुओं के ध्वस्त किए गए घरों और मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। बीएनपी और जमात ने रिकॉर्ड की खातिर यह सफाई तो दी कि हिंदू विरोधी हिंसा में उनका हाथ नहीं है, पर हिंसात्मक घटनाओं की निंदा नहीं की।

बांग्लादेश सरकार ने जिन ताकतों का जिक्र किया, उनके इतिहास को याद रखना जरूरी है। 25 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली आबादी के निर्विवाद नेता, शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने स्वतंत्र बांग्लादेश की घोषणा की थी। उसी रात पाकिस्तानी सेना के नेतृत्व में जमात और अल बद्र नामक कट्टरपंथी संगठन ने पूरे देश में हिंदुओं, लीग के कार्यकर्ताओं और प्रोफेसर मोनी सिंह के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों का कत्लेआम शुरू कर दिया था।

बांग्लादेश की आजादी के बाद शेख मुजीब स्वातंत्र्य संघर्ष के विरोधियों पर मुकदमा चलाने के पक्षधर थे। अवामी लीग का नेतृत्व जनता की इच्छा के अनुरूप करीब छह लाख बिहारी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना चाहता था, क्योंकि वे खुद अपने को पाकिस्तान का पांचवां दस्ता साबित कर चुके थे। अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान के वफादार कानून के फंदे से बच गए। यही लोग अब और ताकतवर होकर 1971 की हार का बदला लेना चाहते हैं।

स्वाभाविक रूप से भारत इन ताकतों पर अवामी लीग की विजय चाहेगा। लेकिन त्रिपुरा की घटनाएं शेख हसीना और भारत को नुकसान पहुंचाएंगी। त्रिपुरा के एडवोकेट जनरल सिद्धार्थ शंकर डे ने कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया, 'बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में हुई तोड़फोड़ के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्तूबर को रैली निकाली थी, इसमें दोनों समुदायों के बीच 'कुछ झड़पें' हुई थीं। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए। तीन दुकानों को जलाने, तीन घरों और एक मस्जिद को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगा।

विहिप ने अपनी शिकायत में रैली पर हमले का आरोप लगाया।' जांच के लिए पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के वकीलों पर यूएपीए लगाए जाने और उसके बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वक्तव्य ने विवाद को बढ़ा दिया है। राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए। दक्षिण एशिया का मौजूदा परिदृश्य भारत के प्रतिकूल है। पाकिस्तान की राजनीति पर फौज का शिकंजा इस कदर कस चुका है कि प्रधानमंत्री इमरान खान अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर अपनी पसंद के जनरल को आईएसआई का प्रमुख भी नहीं बनवा सके।

फौज अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत की खास तरफदार और मददगार है। सभी तालिबानी भारत के विरोधी नहीं हैं, लेकिन उनका एक बड़ा वर्ग फिलहाल भारत के अनुकूल नहीं हो सकता। बांग्लादेश सेना के एक वर्ग की सहानुभूति हमेशा कट्टरपंथियों के साथ रही है। बांग्लादेश में जब कभी सैनिक तानाशाही या बीएनपी-जमात की सरकार होती है, वहां के हिंदुओं और भारत के लिए नई-नई समस्याएं पैदा होती हैं। बांग्लादेश पूर्वोत्तर के हथियारबंद बागियों का पनाहघर बन जाता है।

भारत को तोड़ने में लगे अनेक विद्रोही संगठनों के नेताओं की चीन यात्राएं और उन्हें चीनी हथियारों की आपूर्ति सर्वविदित है। वर्ष 1971 में बांग्लादेश में पाकिस्तान के युद्ध अपराधों में मददगार बने चीन का बांग्लादेश में प्रभाव बढ़ चुका है। बांग्लादेशी सेना को ज्यादातर हथियार चीन से मिलते हैं। यह चीन और अवामी लीग विरोधी ताकतों के असर का ही नतीजा है कि शेख हसीना भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए गलियारे की सुविधा देने की हिम्मत अभी तक नहीं जुटा सकी हैं।

भारत के अनुकूल यह है कि वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ खड़ा अमेरिका आज भारत का सामरिक भागीदार है। अमेरिका सिर्फ अपने हित में चीन को खुला खेल खेलने की छूट नहीं देने वाला। बांग्लादेश में भारत विरोधी मोर्चे को शिकस्त देना नामुमकिन नहीं है। शेख हसीना की भारत से यह अपील दूरगामी महत्व की है, 'भारत को हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां ऐसा कुछ न हो, जिससे बांग्लादेश पर असर पड़े और हिंदू समुदाय को आघात पहुंचे।'
अमर उजाला
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