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- चांद की ओर सफर
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By: divyahimachal
‘चंद्रयान-3’ पृथ्वी की पहली कक्षा पार कर चुका है। अभी वह पृथ्वी के ही चक्कर काटेगा और वहीं से चांद तक का सफर तय करेगा। जिस दिन ‘चंद्रयान-3’ का सफल प्रक्षेपण किया गया था, तब करोड़ों भारतीयों ने तालियां बजाई थीं। ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ सरीखे उद्घोष गूंज उठे थे। भारत के लिए चंद्रयान, गगनयान आदि मिशन ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि सामान्य उपग्रह भी अर्थपूर्ण हैं। अंतरिक्ष में भारत और इसरो का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। अब अमरीका का नासा भी इसरो के साथ साझा मिशन का आगाज करेगा, यह दोनों देशों के बीच समझौता हो चुका है। ‘चंद्रयान-3’ भारत और विश्व के अंतरिक्ष-इतिहास का एक मील पत्थर साबित हो सकता है। चीन जैसे दुश्मन देश के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ तक ने भारत और इसरो को बधाई दी है, बेशक वहां की सत्ता के भीतरी भाव भय और जलन के होंगे! बहरहाल अब आगामी 23 अगस्त तक समूचे भारत और विश्व की निगाहें और शुभकामनाएं ‘चंद्रयान-3’ पर स्थित होंगी कि वह चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कैसे करता है। ‘चंद्रयान-1’ ने जो डाटा उपलब्ध कराया था, उससे चंद्रमा पर जल के साक्ष्य मिले थे।
‘चंद्रयान-3’ का सफर उससे बहुत आगे का है। यदि लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ अपने मिशन में सफल रहे, तो ‘चंद्रयान-3’ चांद की समूची सतह, पानी के व्यापक कणों, चांद की मिट्टी और रासायनिक तत्त्वों, रोशनी और रेडिएशन आदि का सम्यक अध्ययन कर सकेगा। उससे संभव होगा कि चांद पर इनसानी जिंदगी बसाई जा सकती है अथवा नहीं। भारत को पहले तो गैर-मानव मिशन को सफल साबित करना है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो भारत प्रथम देश होगा, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नियंत्रित लैंडिंग कर सकेगा। यह क्षेत्र बिल्कुल काला, अंधकारमय है। सूरज की किरणें भी यहां तक नहीं पहुंच पाती हैं, लिहाजा तापमान भी -235 डिग्री सेल्सियस होता है। ‘चंद्रयान-3’ में ऐसे खास बंदोबस्त किए गए हैं, ताकि मिशन को सौर ऊर्जा मिलती रहे और उसका भंडारण भी किया जा सके। सब कुछ का अध्ययन करने के बाद हमारे इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने ‘चंद्रयान-3’ को मूर्त रूप दिया है।
मिशन का मकसद ‘रोवर’ को चांद की सतह पर चलते दिखाना भी है। अंतरिक्ष अभियानों और उपग्रहों ने भारत के लिए कई परिवर्तनकारी प्रगतियां हासिल की हैं। संचार, रक्षा, कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, मौसम-जलवायु परिवर्तन आदि क्षेत्रों में हमें बहुत सहायता मिल रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि यह मिशन पूरी तरह कामयाब रहा, तो भारत चांद पर अपने सफर का अगला कदम बढ़ाएगा। चांद पर रोवर को उतार कर उसे पृथ्वी पर वापस लाने का प्रयास किया जाएगा। दरअसल अभी यह मिशन एकतरफा है। यह चांद तक पहुंचने का मिशन है। वापसी संभव नहीं है। चांद पर पहुंच कर पृथ्वी पर लौटना इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वैसे ‘चंद्रयान-3’ के सफल प्रक्षेपण के साथ ही इसरो ने एक और इतिहास रच दिया है। मिशन को भारत के शक्तिशाली रॉकेट एलवीएम-3 से लॉन्च किया गया है। इसकी पेलोड क्षमता 4000 किलोग्राम तक है। भारत का पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान-एसएलवी 3-मात्र 40 किलोग्राम पेलोड ही पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जाने में सक्षम था। गौरतलब यह है कि अंतरिक्ष में ‘गगनयान’ के जरिए इनसानों को भेजने और चांद पर अगला मिशन भेजने का रास्ता साफ होगा। ‘गगनयान’ में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजना प्रस्तावित है। कितनी सफलता मिलती है, यह अभी भविष्य के गर्भ में है। अभी तक चांद पर सबसे अधिक मिशन अमरीका और रूस ने भेजे हैं। अमरीका ने छह बार इनसान को चांद पर भेजा और वे सकुशल धरती पर लौट भी आए, लेकिन रूस ने अभी तक इनसान को चांद पर नहीं भेजा है। अलबत्ता उसने कई बार चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग जरूर की है। चीन ने भी 2013 में ‘चेंग-3’ के जरिए चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी। इस तरह ‘चंद्रयान-3’ मिशन सफल रहा, तो इस दिशा में भारत विश्व का चौथा देश होगा।
Rani Sahu
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