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तालिबानी सरकार में छंटे हुए, खूंखार और इनामी आतंकी, कैसे करे दुनिया भरोसा
तिलकराज | तालिबान की अंतरिम सरकार का जैसा रूप-स्वरूप सामने आया उससे आशंकाएं इसलिए और बढ़ गई हैं क्योंकि उस पर पाकिस्तान की स्पष्ट छाप दिख रही है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं कि यह सरकार पाकिस्तान के हिसाब से चलेगी और उस पर चीन का भी प्रभाव दिखेगा।
आखिरकार तालिबान ने अपनी अंतरिम सरकार बना ली, लेकिन यह जिस रूप में सामने आई, उससे दुनिया को उस पर भरोसा होना संभव नहीं। यह सरकार न तो समावेशी है और न ही ऐसी कि खुद अफगान लोग उससे भले की उम्मीद कर सकें। इस सरकार में न तो अल्पसंख्यक हैं और न ही महिलाएं। इसमें तालिबान के विभिन्न गुटों का वर्चस्व है और वह भी खासतौर पर पश्तूनों का। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि इसमें तमाम नेता ऐसे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अमेरिका की ओर से घोषित आतंकी हैं।
साफ है कि तालिबान ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस के जरिये दुनिया को भरोसा दिलाने की जो कोशिश की थी, वह महज एक छलावा साबित हुई। तालिबान प्रवक्ता ने जो कुछ इस प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, उसका कहीं कोई लिहाज नहीं रखा गया। तालिबान ने जिस तरह छंटे हुए, खूंखार और इनामी आतंकियों को अपनी अंतरिम सरकार में शामिल किया, उससे दुनिया का आशंकित होना स्वाभाविक है। तालिबान नेताओं ने घोषणा की है कि उनकी सरकार शरिया के हिसाब से चलेगी। इसका मतलब है कि 21वीं सदी में अफगानिस्तान को मध्ययुगीन तौर-तरीकों से चलाया जाएगा, जिनमें महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं होगा। शरिया वाले शासन में अल्पसंख्यक भी अपने लिए बेहतर भविष्य नहीं देख सकते।
तालिबान की अंतरिम सरकार का जैसा रूप-स्वरूप सामने आया, उससे आशंकाएं इसलिए और बढ़ गई हैं, क्योंकि उस पर पाकिस्तान की स्पष्ट छाप दिख रही है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं कि यह सरकार पाकिस्तान के हिसाब से चलेगी और उस पर चीन का भी प्रभाव दिखेगा। ये वे देश हैं, जो भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने का कुचक्र रच सकते हैं। स्पष्ट है कि तालिबान के ऐसे दावों के बाद भी भारत को सतर्क रहना होगा कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि ऐसा होगा।
अंदेशा इस बात का भी है कि तालिबान की मदद से अफगानिस्तान में अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन फले-फूलेंगे। ऐसा होने का मतलब है सारी दुनिया के लिए खतरा बढ़ना। विश्व समुदाय को इस खतरे के प्रति न केवल सचेत रहना होगा, बल्कि उस पर लगाम लगाने के लिए सक्रिय भी होना होगा। यह भी एक चिंता की बात है कि जब तालिबान में सुधार और बदलाव की कहीं कोई उम्मीद नहीं दिख रही है, तब भारत में कुछ लोग उससे न केवल उम्मीदें लगाए हुए हैं, बल्कि उसकी तरफदारी भी कर रहे हैं। ऐसा तब किया जा रहा है, जब तालिबान अपनी अमानवीय हरकतों से खुद को बेनकाब कर रहा है।