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
मास्टर मित्रसेन का जन्म 29 दिसंबर 1895 को कांगड़ा जिला (तत्कालीन पंजाब के राज्य का भाग) के मुख्यालय धर्मशाला स्थित तोतारानी धारा खोला नामक स्थान में हुआ। मित्रसेन के पिता का नाम मनबीर सेन थापा था। सन् 1905 के कांगड़ा जिला हिमाचल प्रदेश में भारी भूकंप के कारण धर्मशाला स्थित बहुत सारे घर-मकान तबाह हो गए, जान-माल की काफी क्षति हुई। मास्टर मित्रसेन का परिवार भी इससे अछूता न रहा। मित्रसेन में बाल्यकाल से ही भगवान शंकर में आस्था थी। संभवतः पवित्र देवभूमि से माता-पिता की धार्मिक, आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी प्रवत्ति के कारण मास्टर मित्रसेन थापा ने देश को हिंदी, उर्दू, फारसी, नेपाली भाषा, साहित्य, संगीत एवं कला के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया। सर्वविदित है कि भारत के राष्ट्रीय गान की धुन 'जन गण मन' के निर्माता आजाद हिंद फौज के कैप्टन राम सिंह ठाकुर उन्हीं के शिष्य व प्रेरणास्रोत थे। पिता से देवनागरी वर्णमाला का ज्ञान एवं भानु भक्त रामायण के श्लोकांे की स्वर की शिक्षा प्राप्त हुई। मास्टर मित्रसेन थापा धर्मशाला के किसी भी स्थान पर भजन-कीर्तन, कथा-पुराण, रामलीला इत्यादि कार्यक्रम होने पर मित्रसेन उसे सुनने देखने को हमेशा उत्सुक रहते थे। मास्टर मित्रसेन ने ब्रिटिश सेना में केवल आठ वर्ष सेवा दी। प्रथम विश्व युद्ध में मित्रसेन को मध्य यूरोप (फ्रांस) विदेश भ्रमण की जानकारी उनके निबंधों एवं उनकी डायरी से मिलती है। युद्ध में भीषण रक्तपात एवं कारुणिक दृश्यों से मित्रसेन का मन विचलित हो उठा और सन् 1920 में मित्रसेन ने सैनिक जीवन का त्याग कर दिया। उर्दू आदि नाटकों का धर्मशाला, पालमपुर, कांगड़ा, शाहपुर, कोटला, नूरपुर, पठानकोट, बटाला आदि स्थानों में सफल मंचन किया व ख्याति प्राप्त की। उनकी नाटक रचनाआंे में हिंदी, उर्दू भाषा मंे विल्बामंगल, दर्दे ज़िगर, नूर की पुतली, मशर की हूर, बादशाह टावर आदि शामिल थे। मित्रसेन की कला की प्रतिभा एवं ख्याति से प्रभावित होकर सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा लाहौर ने उन्हें धर्म उपदेशक के रूप में कार्य करने का अनुरोध किया। मास्टर मित्रसेन पंजाब में आर्य समाज से भी संबंद्ध रहे व प्रतिनिधि के रूप में हिंदू समाज के लिए कार्य किया। मित्रसेन ने 1928 से 1931 तक सनातन धर्म का प्रचार किया। मित्र डायरी से ज्ञात होता है कि उन्होंने 1938 के प्रारंभ में देहरादून के नेहरू ग्राम का भ्रमण कर तीन महीने के प्रवास में विभिन्न नाटक व भजन कीर्तन का आयोजन किया।
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