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स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर नहीं रहीं
स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर नहीं रहीं. कहते हैं शरीर मरता है, लेकिन आत्मा अमर है. लता मंगेशकर के मामले में कहा जा सकता है उनकी आत्मा तो अमर रहेगी ही उनकी आवाज भी अजर-अमर रहने वाली है. पिछले अनेक वर्षों से अनवरत चल रहा लता की आवाज का जादू आने वाले हजारों हजार साल तक फिज़ाओं में इसी तरह गूंजता रहेगा. वो अपनी जादुई और दिलकश आवाज में हमें बताती रहेंगी 'रहें न रहें हम महका करेंगे, बनके कली, बन के सबा, बागे वफा में'.
लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय गायिका हैं, उन्हें नाइटेंगल ऑफ़ बॉलीवुड के नाम से भी पुकारा जाता है. अपने छ: दशक के लंबे कार्यकाल में पार्श्वगायन के क्षेत्र में बॉलीवुड पर उन्होंने एकक्षत्र राज किया है. लंबे समय तक उनकी सत्ता को कोई महिला गायिका चुनौती नहीं दे सकी थी. लता की दिलकश आवाज का जादू भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में छाया हुआ है. उन्होंने 30 भारतीय भाषाओं में फिल्मी और गैर फिल्मी गीत गाए. हिंदी के अलावा उन्होंने बंगाली, मराठी, पंजाबी, गुजराती, तमिल और मलयालम भाषाओं में भी गीत गाए हैं.
92 साला लता मंगेशकर एक ऐसी हस्ती हैं, जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा पढ़ा जाता रहा है. सो उनके बारे में कुछ ऐसी बातें ही करेंगे जो कम सुनी गई हैं.
ये तो हम सभी जानते हैं कि उनका जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में 28 सितम्बर 1929 को हुआ था. लेकिन ये कम लोग जानते हैं कि जन्म के समय उनका नाम हेमा था. उनके पिता पं. दीनानाथ मंगेशकर क्लासिकल सिंगर के अलावा थिएटर आर्टिस्ट भी थे, उनके एक नाटक में एक किरदार का नाम लतिका था. इस नाम से दीनानाथ जी को बहुत लगाव था, सो उन्होंने अपनी बड़ी बेटी हेमा का नाम बदलकर लता रख दिया. बता दें कि उनका जन्म इंदौर में जरूर हुआ, लेकिन उनकी पूरी परवरिश महाराष्ट्र में हुई. 1945 में वे मुंबई शिफ्ट हुईं. यहां उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान से क्लासिकल गायन की विधिवत तालीम हासिल की. वैसे बचपन में उन्होंने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा भी ली थी.
लताजी ने हजारों हजार गाने गाए हैं, लेकिन उनका गाया हुआ पहला गाना कभी रिलीज़ नहीं हो पाया. सदाशिव नेवरेकर ने मराठी फिल्म किती हसल (कितना हंसोगे) के लिए इस गाने को 1942 में कंपोज़ किया था. उनका पहला रिलीज़ गीत 'नैथली चैत्राची नवलाई' है, जो उन्होंने मराठी फिल्म 'पाहिली मंगलागौर' के लिए गाया था.
ये किस्सा बहुत मशहूर है कि 1963 में लता मंगेशकर ने जब 'ए मेरे वतन के लोगों' गीत गाया तो श्रोताओं में मौजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखों से आंसू निकल पड़े थे.
लता जब महज तेरह साल की थीं तब उनके पिता का देहांत हो गया था. परिवार की बड़ी बच्ची लता के जिम्मे पूरे परिवार की जिम्मेदारियां आ गई थीं. उनके परिवार में मां, भाई हृदयनाथ, बहनें उषा, मीना ओर आशा शामिल थीं. अपने भाई बहनों को पढ़ाने के लिए लता ने स्कूल की पढ़ाई नहीं की और उनके लिए ही उन्होंने शादी न करने का फैसला भी किया. घर चलाने के लिए उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय भी किया. उनको पहला ब्रेक भी गाने के लिए नहीं, बल्कि फिल्म में अभिनय के लिए ही मिला था. उन्होंने दस फिल्मों में काम किया, जिनमें 'पहिली मंगलागौर', 'बड़ी मां' और 'जीवन यात्रा' उल्लेखनीय हैं.
बात 1945 की है. उस्ताद गुलाम हैदर, जिन्हें गायिका नूरजहां की खोज का श्रेय दिया जाता है, ने कोशिश की कि लता उनकी फिल्म के लिए पार्श्वगायन करें. लेकिन, निर्माता ने मना कर दिया. बताते चलें कि जब लता ने पार्श्वगायिकी के क्षेत्र में कदम रखा तब नूरजहां, अमीर बाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी की तूती बोलती थी. यह जानना भी दिलचस्प है कि प्रोड्यूसर सशधर मुखर्जी ने उन्हें अपनी फिल्म 'शहीद' में यह कहकर गवाने से मना कर दिया था कि उनकी आवाज पतली है. गुलाम हैदर ने उन्हें 'मजबूर' फिल्म के लिए दो गाने गवाए – 'अंग्रेजी छोरा चला गया' और 'दिल मेरा तोड़ा' गवाया.
बाद में 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फिल्म 'सेवा में' उनसे गवाया. लेकिन बात बन नहीं रही थी. बात बनी 'महल' में गीत गाकर. अशोक कुमार और मधुबाला की इस फिल्म ने लता के लिए सफलता के दरवाजे खोल दिए और उनका गाया गीत 'आएगा आने वाला' ने लोकप्रियता के चरम को छुआ. इसके बाद लता को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. बाद में यह सिलसिला लंबे समय तक चला आगे की कहानी तो हम सभी जानते हैं.
बताते चलें लता जी ने पांच मराठी फिल्मों के गाने भी कंपोज किए हैं. लता आनंद अघन के नाम से बंगाली गाने भी कंपोज करती थीं. बंगाली भाषा में उनके कंपोज गाने 'तारेआमी चोखने देखिनी' और 'आमी नी' आदि थे. उनके बंगाली में कंपोज किए गानों को किशोर ने अपनी आवाज दी है. उन्होंने 'वडाल', 'झांझर' 'कंचन' और 'लेकिन' शीर्षक वाली मराठी फिल्में प्रोड्यूस भी की हैं.
एक दर्दनाक हादसा भी लता के साथ हो चुका है. हम इसकी पुष्टि तो नहीं कर रहे लेकिन सुना गया है कि 33 साल की उम्र में लता मंगेशकर को एक बार जहर देकर मारने की कोशिश भी की गई थी. किस्सा इस तरह बयान किया जाता है कि एक सुबह जब लताजी सोकर उठीं तो उनके पेट में जोरों का दर्द हो रहा था, उन्हें हुई उल्टियों में हरे रंग का पदार्थ देखा गया. उनके शरीर में बहुत तेज दर्द था और हिलना-डुलना भी संभव नहीं हो पा रहा था. डाक्टर ने जांच की और बताया कि लता जी को जहर दिया गया था. कहा तो यह भी जाता है कि जिस दिन यह हादसा हुआ उनका खानसामा उसी दिन नौकरी छोड़ गया. इसके बाद उनकी छोटी बहन ने रसोई को संभालने का जिम्मा लिया.
लता मंगेशकर ने 1942 से गाना शुरू कर सात दशकों तक देश और दुनिया के श्रोताओं के दिलों पर राज किया है. उनकी प्रतिभा का लोहा मानते हुए उन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कारों से लगातार नवाजा जाता रहा है. 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया. इसके अलावा 1969 में पद्मभूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड और 1999 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें विभिन्न वर्षों में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले.
लता जी के जाने से पूरा देश शोकाकुल है. कहते हैं किसी के जाने से कुछ रूकता नहीं है. समय बड़े से बड़े घाव भर देता है, सच है लेकिन कुछ कमियां ऐसी होती हैं जो कोई पूरा नहीं कर सकता. ये जरूर है कि बॉलीवुड को पार्श्वगायन करने वाली गायिकाएं मिल जाएंगीं, मिल ही गई हैं. लेकिन लता नहीं मिलेगी. लता जैसी गायिका न तो दूसरी हुई है और न कभी होगी. उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित. दुनिया को अलविदा कहने के साथ ही वे आवाज की दुनिया को भी छोड़कर चली गई हैं. लता जी लगभग सभी प्रोग्राम्स में एक गाना जरूर गाती थीं जो उन्हें बहुत पसंद था 'कुछ दिल ने कहा, कुछ भी नहीं.. कुछ दिल ने सुना, कुछ भी नहीं… ऐसी भी बातें होती हैं.' लेकिन आज हवाओं में उनका एक दूसरा ही गीत गूंज रहा है ' नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे.'
शकील खान
Rani Sahu
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