सम्पादकीय

श्रद्धांजलि: इस कायनात से कभी गुम नहीं होगा लता मंगेशकर का स्वर...

Rani Sahu
6 Feb 2022 9:18 AM GMT
श्रद्धांजलि: इस कायनात से कभी गुम नहीं होगा लता मंगेशकर का स्वर...
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जब बात लता मंगेशकर की होती है तो नि:संदेह इंदौर का नाम पहले आता है

संजय पटेल

जब बात लता मंगेशकर की होती है तो नि:संदेह इंदौर का नाम पहले आता है। 28 सितंबर, 1929 को इंदौर के सिख मोहल्ले में लता मंगेशकर का जन्म हुआ था। लता मंगेशकर का इंदौर संबंध आत्मीय रहा, हालांकि कई लोगों को इसमें बहुत सी शंकाएं भी रहीं। लेकिन ये अकाट्य सत्य है जिसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा। लता जी के पूज्य पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर जो कि एक मूविंग थियेटर कंपनी (बलवंत नाट्य मंडली) चलाते थे, उसे लेकर वे पूरे देश में घूमते थे। चूंकि इंदौर मराठी बहुल क्षेत्र था, यहां पर भी उनका काफी आना होता था। ये वक्त था 1929 का, काम के सिलसिले में वे अपनी दूसरी पत्नी यानी लता मंगेशकर की मां के साथ इंदौर आए। श्रीमति मंगेशकर की डिलीवरी उनकी बहन के घर हुई, लता मंगेशकर का जन्म सिख मोहल्ले में हुआ। उनका बाल्यकाल यहीं इंदौर में गुजरा। और फिर वह मुंबई चली गईं।
50 के दशक में लता मंगेशकर दोबारा इंदौर आईं
1950 के दशक के आखिर में लता मंगेशकर का औद्योगिक प्रदर्शिनी के दौरान इंदौर आना हुआ। ये बहुत बड़ी प्रदर्शिनी थी जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आए थे। इस प्रदर्शिनी की टिकट की दर डेढ़ रुपये से 25 रुपये तक रखी गई थी। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की पुण्यतिथि पर लता के भाई ह्दयनाथ मंगेशकर और बहन उषा मंगेशकर ने भी यहां प्रस्तुति दी थी।
इंदौर में हुआ ऐतिहासिक जलसा
1980 का दशक भी लता मंगेशकर के इंदौर कनेक्शन का महत्वपूर्ण वर्ष कहा जाएगा, इंदौर के नेहरू स्टेडियम में लता रजनी का आयोजन किया गया। 80 के दशक में 15000 श्रोताओं का आना एक बड़ी घटना मानी जाती है। तीन दिन लता जी यहां रहीं। बहन मीना मंगेशकर भी उनके साथ आईं थीं। नितिन मुकेश, शैलेन्द्र सिंह भी साथ में गाने आए थे। लता जी के संगीतकार के रूप में आए थे अनिल मोहिले। इस कार्यक्रम का संचालन महाभारत के समय कहे जाने वाले हरीश भिमानी ने किया था। वो इंदौर का ऐतिहासिक जलसा था। कार्यक्रम में उन्होंने कोई भी पारिश्रमिक लेने से मना कर दिया।
इंदौर में हुई प्रदर्शिनी की टिकट
इस कार्यक्रम के होने से तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह से घोषणा की कि कोई बेटी जब अपने घर आती है तो उसे विदाई में कुछ न कुछ दिया जाना चाहिए, इसी समारोह में राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान समारोह की घोषणा हुई, जोकि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला देश का सुगम संगीत का सबसे बड़ा पुरस्कार है। आज इस सम्मान को 28 बरस हो गए हैं। इसमें एक वर्ष संगीतकार और एक वर्ष गायक और गायिका को सम्मानित किया जाता है। पहला पुरस्कार नौशाद साहब को दिया गया था। लता जी के नाम से शुरू हुए इस पुरस्कार का सिलसिला आज भी जारी है।
मेरी जिंदगी का सबसे अनमोल क्षण था वो...: संजय पटेल
लता जी के गीतों पर एक किताब बाबा तेरी सोन चिरैंया लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय से प्रकाशित हुई। इस किताब के कवर को मैंने डिजाइन किया था। जैसे ही ये पुस्तक मुंबई में लता जी के घर प्रभु कुंज में पहुंची वे इसके कवर को देखती रहीं। उस किताब के डिजाइन में फर वाली टोपी पहने दीनानाथ मंगेशकर यानी उनके पिता की तस्वीर थी। किताब के कवर को देखकर उनका पहला सवाल था- इसे किसने बनाया है? कई दिनों बाद मुझे मुंबई से फोन आया कि लता जी आपसे बात करना चाहती हैं... उन्होंने कहा- मैं लता बोल रही हूं। मेरे लिए वो इस सृष्टि का सबसे अनमोल क्षण था। तकरीबन 6 मिनट उन्होंने मुझसे बात की और पूछा कि ये विचार आपके दिमाग में कैसे आया? इसमें बाबा का चित्र लगाने की प्रेरणा आपको कैसे मिली? ये सवाल मुझे मौन कर गया। उन्होंने इसे अनमोल बताया। किसी कलाकार के लिए इससे बड़ी बात नहीं हो सकती।
इंदौर से रहा आत्मीय रिश्ता
80 के दशक से पहले लता जी का इंदौर से आत्मीय रिश्ता रहा। जैसे कोई अपने वतन को कभी नहीं भूलता उसी तरह लता जी के लिए कोल्हापुर, सांगली और इंदौर रहा। इंदौर बहुत आती रहीं...इंदौर उनका अपना वतन था। वहां की रातें कैसी होती हैं, क्या वहां का सर्राफा अभी भी वैसा ही है? इन सभी बातों को जानने में उनकी दिलचस्पी जिंदगी भर रही... उन्हें इंदौर के सराफा की खाऊ गली हमेशा याद रही। यहां के गुलाब जाबुन, रबड़ी और दही बडे़ उन्हें बेहद पसंद थे। इंदौर के लोगों से मिलकर वे अक्सर पूछती थीं- क्या सराफा अभी भी वैसा ही है।
बेसुरी हो गई दुनिया...
मुझे लगता है आजादी के बाद आज वो दिन आया है जब भारत भूमि थोड़ी बेसुरी सुनाई दे रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक सुर कहीं खो गया है। सा रे ग म प ध नी सा सात सुर होते हैं, आठवां सुर अगर कोई था तो वो लता मंगेशकर थीं। वो सुर आज विलुप्त हो गया है। ये सुनिश्चित है कि ये दुनिया बदलेगी, जमाना चलता रहेगा। प्रगति होती रहेगी..विकास होता रहेगा लेकिन मेरा मानना है कि एक समय चक्र ऐसा होता है जिसके बाद प्रलय आता है और सृष्टि समाप्त हो जाती है। प्रलय के बाद भी अगर कोई चीज बची रहेगी तो वो होगा लता का स्वर...जो कभी इस कायनात से गुम नहीं होगा।
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