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13 अप्रैल 1919, बैसाखी के दिन लगभग 4:00 बजे जनरल डायर लगभग डेढ़ सौ के सिपाहियों को लेकर जलियांवाला बाग में पहुंचा
Vijay Shankar Singh
13 अप्रैल 1919, बैसाखी के दिन लगभग 4:00 बजे जनरल डायर लगभग डेढ़ सौ के सिपाहियों को लेकर जलियांवाला बाग में पहुंचा. वहां रौलेट एक्ट के खिलाफ एक जनसभा हो रही थी. बैसाखी पर दूर-दूर से आये लोग, दरबार साहिब में मत्था टेक कर वहां एकत्र थे. दरबार साहिब बगल में ही है. पंजाब की स्थिति पहले से ही उद्वेलित थी. कमान, जनरल डायर के हाथ में थी. उसे यह पता चल गया था कि यह सभा रौलेट एक्ट के विरोध में हो रही है. रौलेट एक्ट के विरोध में सैफ़ुद्दीन किचलू और सतपाल जैसे पंजाब के बड़े नेताओं को पंजाब सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था. सभा शांतिपूर्ण थी. डायर ने आव देखा ना ताव बिना किसी चेतावनी के, जलियांवाला बाग में उपस्थित सभी लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग का आदेश दे दिया. जिसके चलते बच्चे, महिलाओं और पुरुषों समेत सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए. लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसती रहीं. अंधाधुंध बरसती गोलियों से बचने के लिए लोग बदहवास होकर, इधर-उधर भागने लगे किंतु, बाग के, ऊंची चहारदीवारी से घिरे होने के कारण, लोग 10 फीट ऊंची दीवार फांद न सके. कुछ दीवार पर लटक गए तो कुछ गोलियां लगने से नीचे गिर गए. उसी परिसर में एक कुंआ था. जान बचाने के लिये लोग उसमे भी कूदे और जान तो न बच सकी, लोग उसी में गिर कर मर गए. देखते ही देखते जलियांवाला बाग की जमीन रक्त से लाल हो गयी.
इस घटना पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई. पंजाब में जबरदस्त उत्तेजना फैल गयी थी. गांधी जी, पंजाब जाना चाहते थे, उन्हें दिल्ली स्टेशन पर ही रोक दिया गया. उन्होंने, ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त कैसर ए हिन्द सम्मान वापस कर दिया. रबिन्द्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड सम्मान लौटा दिया. इसके साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सर शंकरन नायर ने वायसराय की कार्यकारिणी परिषद की अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. रविंद्र नाथ टैगोर ने सर की उपाधि लौटाते हुए कहा था कि,
"समय आ गया है, जब सम्मान के तमगे अपमान के बेतुके संदर्भ में, हमारे कलंक को सुस्पष्ट कर देते हैं. जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं सभी विशेष उपाधियों से रहित होकर अपने देशवासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूं."
इस कांड के बारे में इतिहासकार, थॉमसन और गैरेट ने लिखा है कि,
"अमृतसर दुर्घटना भारत ब्रिटेन संबंध में युगांतरकारी घटना थी जैसा कि 1857 का विद्रोह था. गोलीबारी में हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था और 3000 लोग घायल हो गए थे."
वैसे सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 379 व्यक्ति मारे गए और 1200 लोग घायल हुए थे.
इस नरसंहार ने, ब्रिटिश सरकार के पक्ष में खड़े कांग्रेस के एक समूह के मन में भी ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति रही सही सदाशयता को भी खत्म कर दिया. यह स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का एक टर्निंग प्वाइंट था. इसके बाद असहयोग आंदोलन की रूपरेखा बनती है और स्वाधीनता संग्राम एक नए और अलग तरह के स्वरूप में आगे बढ़ता है. आज उसी जलियांवाला बाग नरसंहार के शहीदों को याद करने का दिन है. बाग आज भी है. दीवारें, जिनपर गोलियों के निशान हैं, आज भी साम्राज्यवादी बर्बरता की याद दिलाती हैं. वह कुआ, जिनमे न जाने कितने कूदे थे, आज भी है.
जलियांवाला बाग नरसंहार पर जांच के लिये, साल 1919 में सरकार ने एक कमेटी का गठन किया, जिसका अध्यक्ष विलियम हंटर को बनाया गया. हंटर कमेटी को, जलियांवाला बाग सहित अन्य घटनाओं की जांच के लिए कहा गया था. विलियम हंटर के अलावा इस कमेटी में अन्य सात लोग और भी थे, जिनमें से कुछ भारतीय भी थे.
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Rani Sahu
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