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भारतीय मनीषा में असली समृद्धि के मायने को आधुनिक युग में एक बार फिर मुहर लगी है।
भारतीय मनीषा में असली समृद्धि के मायने को आधुनिक युग में एक बार फिर मुहर लगी है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में प्रकृति को ही सबसे बड़ी पूंजी माना गया है, लेकिन उपभोक्तावाद की दुनिया ने इस सिद्धांत को तज दिया। तज क्या दिया, एक तरीके से बिसार दिया। हम आभासी समृद्धि के पीछे दौड़ने लगे और वास्तविक समृद्धि को उजाड़ते गए। आज जब देश की शीर्ष न्यायिक संस्था ने विशेषज्ञों की समिति के निष्कर्ष के आधार पर यह तय कर दिया कि एक वयस्क पेड़ हर साल करीब 75 हजार रुपये की कीमत का लाभ पहुंचाता है तो पता नहीं अपने किए पर उन लोगों को अफसोस हो रहा होगा कि नहीं, जिन्होंने जंगलों को उजाड़ आभासी विकास का रास्ता अपनाया है।
बात बहुत सीधी थी, लेकिन सबके समझ में नहीं आई। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने आचार, विचार और व्यवहार से हमको सिखाया, समझाया। लेकिन भौतिकता के फेर में हम 'न माया मिली न राम' के शिकार हो गए। ऋषियों-मुनियों के आश्रम तो अब दुर्लभ हो गए हैं, लेकिन अगर आप उनके चित्र देखें तो हरियाली और पेड़-पौधों से आच्छादित होते थे। ये उनके दैनिक जीवन से जुड़ी हर जरूरत की पूर्ति करते थे। यही उनकी पूंजी होती थी। इस मान्यता को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्थापित किया है।
दरअसल पिछले साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई। यह याचिका बंगाल सरकार के उस कदम के खिलाफ थी जिसमें 500 करोड़ रुपये की लागत से पांच रेलवे ओवरब्रिज बनाने के नाम पर 356 पेड़ों की बलि तय हो चुकी थी। शीर्ष अदालत ने इन पेड़ों की कीमत तय करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की। समिति ने बताया कि एक पेड़ हर साल 74,500 रुपये का लाभ पहुंचाता है। पेड़ों द्वारा वायुमंडल में अवमुक्त की जा रही ऑक्सीजन की कीमत 45 हजार रुपये है।
अब आप कल्पना कीजिए कि असली धनवान कौन है। जंगलों को सहेजने-संवारने वाले हमारे आदिवासियों से धनी कौन है आज। भारी-भरकम बैलेंस शीट वाले देश के उद्योगपतियों के खाते में जमा धन से कितने ऐसे पेड़ खरीदे जा सकते हैं। सरकार का संबंधित मंत्रलय पेड़ों की कीमत का आकलन नेट प्रजेंट वैल्यू के आधार पर करता है जो बहुत ही संकीर्ण है। इस गणना के अनुसार एक हेक्टेयर या 2.4 एकड़ क्षेत्र में खड़े पेड़ों की कीमत का आकलन बहुत घने जंगलों के लिए अधिकतम 56 लाख रुपये और खुले जंगल (विरल पेड़) के लिए इतने क्षेत्र में मौजूद पेड़ों की कीमत 27 लाख रुपये आंकी जाती है। कोई भी यह सहज आकलन कर सकता है कि एक घने जंगल के 2.4 एकड़ में कितने पेड़ हो सकते हैं और यदि एक पेड़ की सालाना लागत करीब 75 हजार रुपये हो तो उस क्षेत्र के कुल पेड़ों की उनके पूरे आयुकाल की लागत क्या होगी?
कोई भी सरकारी परियोजना ऐसी नहीं है जिसके सिरे चढ़ने में प्रकृति का विनाश नहीं होता हो। पेड़ों का काटा जाना तय होता है। कई मामलों में तो पूरी परियोजना की लागत पेड़ों की इस नई कीमत से बहुत कम हो जाएगी। एक जमाना था जब दुनिया का हर भूभाग वनों से आच्छादित था। बढ़ती जनसंख्या और उसकी बढ़ती जरूरत के चलते हरियाली के रकबे का अनुपात कम होता गया। यह प्रवृत्ति दुनिया के लगभग सभी देशों में दिखी। भारत जैसे प्रकृति प्रेमी देश में भी जरूरत प्रेम पर हावी रही। हमने ठाना कि देश के भूभाग का एक तिहाई रकबा जंगल से आच्छादित करके रहेंगे, लेकिन आज भी हम इसे हासिल नहीं कर सके हैं।
वर्ष 2019 की स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल भौगोलिक रकबे में जंगल का रकबा 21.67 फीसद है। यदि इसमें पेड़ों को भी शामिल कर लिया जाए तो कुल रकबा 24.67 फीसद हो जाता है। देश की बड़ी आबादी की जरूरतों के पूरा करने के लिए विकास अपरिहार्य है, लेकिन यह पर्यावरण के विनाश की कीमत पर स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। संतुलन जरूरी है। विकल्प भी मौजूद हैं, लेकिन आसान रास्ते हमें ज्यादा रास आते हैं। हम सड़कों की जगह समुद्री और रेल मार्गो को विकसित करने पर ज्यादा जोर दे सकते हैं। परियोजनाओं की राह में आ रहे वृक्षों को स्थानांतरित किया जा सकता है। इस काम में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर पेड़ काटना अपरिहार्य हो जाए तो ज्यादा संख्या में नए पेड़ लगाकर उनकी भरपाई की जा सकती है। भरपाई के क्रम में पौधरोपण तो होता है, पर वे पेड़ नहीं बन पाते हैं।
और अंत में अगर आप भी लखपति, करोड़पति बनना चाहते हैं तो पेड़ लगाना शुरू कीजिए। और अगर पेड़ लगा चुके हैं तो सुप्रीम कोर्ट की गठित समिति के तय फामरूले से उनकी कीमत की गणना करके खुश रहिए कि आप कितने अमीर हैं। चाहे-अनचाहे रूप में आप मानवता की कितनी बड़ी मदद कर रहे हैं। हर साल बड़ी कीमत की शुद्ध ऑक्सीजन वायुमंडल में भेज रहे हैं। वातावरण में मौजूद नुकसानदायक कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े खतरे ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ आप प्रभावी लड़ाई लड़ रहे हैं। यह खुशी सच्ची होगी। यही असली पूंजी है।
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