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महामारी के इस दौर में दुनिया के तमाम देश अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं। भारत में विकास दर के नकारात्मक रहने को लेकर खासी चिंता जताई जा रही है।
महामारी के इस दौर में दुनिया के तमाम देश अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं। भारत में विकास दर के नकारात्मक रहने को लेकर खासी चिंता जताई जा रही है। मगर इन विषम स्थितियों में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर यह है कि अलग-अलग स्तरों पर विदेशी निवेश तेजी से बढ़ा है। पिछले सप्ताहांत रिजर्व बैंक की समीक्षा में विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार छह सौ अरब डॉलर को पार कर गया।
इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में भारत दुनिया का पाचवां समृद्ध देश बन गया है। रूस इस मामले में भारत से थोड़ा ही आगे है। फिर जिस तरह विदेशी निवेशकों का रुख भारत की ओर बना हुआ है, उससे यह कयास अनायास नहीं कहा जा सकता कि भारत रूस को भी पीछे छोड़ देगा। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआइ ने केवल जून में अब तक करीब साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपए शुद्ध रूप से भारतीय बाजार में डाले हैं। कोरोना संक्रमण की दर में कमी आने और धीरे-धीरे बाजार खुलने की वजह से निवेशकों में उत्साह देखा जा रहा है। इस तरह जल्दी ही अर्थव्यवस्था के सकारात्मक दिशा में बढ़ने की उम्मीद बलवती हुई है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का छह सौ अरब डॉलर से ऊपर पहुंच जाना बड़ी उपलब्धि है। अनेक ऐसे अनुभव हैं, जब वैश्विक मंदी आई तो वही देश लड़खड़ाने से बचे रह सके, जिनका विदेशी मुद्रा भंडार अधिक था। दुनिया की दो बड़ी मंदियों को भारत इसीलिए झेल गया कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त था। यहां तक कि 2008 की मंदी के समय जब अमेरिका जैसे विकसित देशों पर भारी मार पड़ी थी, तब भी भारत उसे झेल गया था। इसलिए कि अंतरराष्ट्रीय लेन-देन डॉलर में होता है और जिन देशों के पास इसकी कमी होती है, उन्हें अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। चाहे वह कच्चे तेल की खरीद हो या फिर अंतरराष्ट्रीय देनदारियां, हर स्तर पर कठिनाई पेश आती है।
इसलिए भारत इस मामले में खुद को ताकतवर महसूस कर सकता है। पर कुछ लोगों के मन में यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐसे समय में जब कारोबार और बाजार बुरी तरह मंदी की मार झेल रहे हैं, महंगाई पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ है, निर्यात के मोर्चे पर अपेक्षित कामयाबी दर्ज नहीं हो पा रही, तब भी विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी कैसे हो रही है। एक आशंका परोक्ष विदेशी निवेश को लेकर जताई जा रही है, जो एक तरह की आवारा पूंजी होती है और वह विभिन्न देशों में बाजार का रुख देख कर निवेश करती और वहां के शेयर बाजारों में खेल किया करती है। अगर उसकी वजह से कोष में बढ़ोतरी हो रही है, तो इसे लेकर बहुत उत्साहित होने की जरूरत नहीं।
मगर विदेशी मुद्रा कोष में बढ़ोतरी का एक संकेत यह भी होता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों का हमारी अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ रहा है। वे निवेश के लिए आगे आ रहे हैं। फिर यह भी कि कोरोना संकट के समय बेशक बाजार बंद रहे हों, पर आॅनलाइन बाजार बहुत तेजी से बढ़ा है। इस क्षेत्र को लेकर विदेशी निवेशक उत्साहित हैं। उधर चीन जैसे देशों में निवेश को लेकर भी कई निवेशकों का मोहभंग देखा गया है और उन्हें भारत में निवेश ज्यादा सुरक्षित जान पड़ने लगा है। इस तरह उन्होंने इधर का रुख किया है। इससे यह तो संकेत मिलता ही है कि जैसे ही स्थितियां कुछ सुधरेंगी, भारतीय अर्थव्यवस्था में गति लौटनी शुरू कर देगी।
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