सम्पादकीय

तहखाने में खजाना

Subhi
19 Jun 2021 3:14 AM GMT
तहखाने में खजाना
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कुछ देशों ने अपने यहां दुनिया भर के भ्रष्टाचारियों और करचोरों के लिए वैध तहखाने बना रखे हैं।

कुछ देशों ने अपने यहां दुनिया भर के भ्रष्टाचारियों और करचोरों के लिए वैध तहखाने बना रखे हैं। स्विट्जरलैंड उनमें एक है। वहां के बैंकों में दुनिया का कोई भी आदमी अपना खाता खुलवा और उसमें चाहे जितने पैसे जमा करा सकता है। वहां का कोई भी बैंक अपने ग्राहक से न तो यह पूछता है कि उसने जो पैसे जमा किए हैं, वे कहां से आए। अगर कोई उन ग्राहकों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहे, तो वे वह भी उपलब्ध नहीं कराते। बस वहां का केंद्रीय बैंक हर साल यह ब्योरा जरूर उपलब्ध कराता है कि किस देश से कितनी रकम वहां के बैंकों में जमा कराई गई।

इस साल के उसके आंकड़ों से पता चला है कि पिछले एक साल में, जब कोरोना महामारी के दौरान देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा था, तब भारतीय कंपनियों और नागरिकों ने स्विट्जरलैंड के बैंकों में सबसे अधिक धन जमा कराए। इस तरह पिछले एक साल में स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीय कंपनियों और नागरिकों की कुल जमा रकम 2.55 स्विस फ्रैंक यानी बीस हजार सात सौ करोड़ रुपए हो गई है। यह आंकड़ा पिछले तेरह सालों में सबसे ज्यादा है। इसमें चार हजार करोड़ रुपए सीधे ग्राहकों द्वारा जमा कराए गए, इकतीस सौ करोड़ रुपए से अधिक दूसरे बैंकों के जरिए स्थांतरित किए गए, साढ़े सोलह करोड़ रुपए ट्रस्टों के जरिए और तेरह हजार पांच सौ करोड़ रुपए बॉण्ड और सिक्योरिटी जैसे विभिन्न विकल्पों के जरिए जमा कराए गए।

विचित्र है कि एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक स्थिति में पहुंच गई है और इसे पटरी पर लाने के लिए सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं और दूसरी तरफ करचोरी या भ्रष्टाचार के जरिए जुटाई हुई इतनी बड़ी रकम स्विट्जरलैंड के बैंकों के काले तहखानों में जमा करा दी गई। यह तो एक देश का खुलासा है, ऐसे तहखाने कई देशों के बैंकों ने बना रखे हैं। कहां कितनी रकम भेजी गई, उन सबका आंकड़ा इकट्ठा किया जाए, तो तथ्य और हैरान करने वाले हो सकते हैं।

छिपी बात नहीं है कि ऐसे विदेशी बैंकों में चोरी-छिपे जमा कराया जाने वाला धन किस तरह जुटाया और कमाया जाता है। इनमें से ज्यादातर पैसा भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और बड़ी कंपनियों के होते हैं, जो घूस के माध्यम से या फिर करों की चोरी करके जुटाया गया होता है। उसे काला धन कहा जाता है।

काले धन पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार ने खूब बढ़-चढ़ कर दावे किए थे। पहली बार सत्ता में आने से पहले के चुनावी घोषणापत्र में तो उसने विदेशी बैंकों से सारा काला धन वापस लाने का भी भरोसा दिलाया था। मगर यह काम इतना आसान नहीं है। स्विट्जरलैंड या फिर दूसरे देशों के बैंकों में जहां काला धन छिपाया जाता है, उन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त है और वे अपने ग्राहकों के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध न कराने को स्वतंत्र हैं। उन पर दबाव नहीं डाला जा सकता। इसलिए भारत सरकार इस मामले में कामयाब नहीं हो पाई। मगर भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के दावों और करचोरी पर सख्त नजर रखने के तमाम प्रयासों के बावजूद आश्चर्य है कि वह भ्रष्टाचारियों पर नकेल नहीं कस पाई है।

विदेशी बैंकों में भेजी गई रकम इस बात की गवाही है कि देश में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ। इस खुलासे से सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। पहले ही देश के बैंकों की भारी रकम लेकर विदेश भाग जाने वाले कारोबारियों और बट्टेखाते को लेकर अंगुलियां उठती रही हैं।


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