- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- राजद्रोह और
आदित्य चौपड़ा। सर्वोच्च न्यायालय ने आज वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि मतभेद या मत भिन्नता किसी कीमत पर राजद्रोह की धाराओं के अन्तर्गत नहीं आते हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत की न्यायमूर्ति यू.यू. ललित के नेतृत्व में गठित दो सदस्यीय पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि 1962 के केदारनाथ सिंह मामले के फैसले की रोशनी में प्रत्येक जायज पत्रकार सुरक्षित है और अपने विचारों की विविधता प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र है बशर्ते वह इस फैसले में दिये गये निर्देशों पर खरा उतरता हो। इस फैसले में कहा गया था कि मतभिन्नता या विचारों का विरोधी होना किसी भी रूप में राजद्रोह के दायरे में नहीं आता है। इस फैसले मंे यह भी कहा गया था कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता (फ्री स्पीच) व सरकार की आलोचना और स्वतन्त्र प्रेस किसी भी लोकप्रिय सरकार के कायदे व ढंग से काम करने के लिए जरूरी होते हैं जिनमें उसकी कार्यप्रणाली की आलोचना भी शामिल होती है। इससे तीन दिन पूर्व ही सर्वोच्च न्यायालय ने आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा दो स्थानीय टीवी चैनलों के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमों के तहत राज्य पुलिस को सम्बन्धित टीवी पत्रकारों के खिलाफ कोई भी सख्त कार्रवाई करने से रोकते हुए कहा था कि अब समय आ गया है कि न्यायालय का राजद्रोह के बारे में खास कर पत्रकारों के सम्बन्ध में पूरा खुलासा करते हुए कानूनी स्थिति साफ करनी चाहिए और धुंधलका छांटना चाहिए।