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हिमाचल की दृश्यावलियों को मानवीय गतिविधियों से सामना महंगा पड़ रहा है
सोर्स- divyahimachal
हिमाचल की दृश्यावलियों को मानवीय गतिविधियों से सामना महंगा पड़ रहा है। अभी हाल ही की तस्वीरें बता रही हैं कि अटल टनल की ओर उमड़ा टूरिज्म अपनी सारी उमंगों को कचरे में डाल कर लौट रहा है। यह रोमांच के छिलके हैं जो सारे पर्यावरण को अपनी गंदगी से भर रहे हैं। पूरी कुल्लू घाटी में पर्यटक सीजन ने इस बार बहुत कुछ दिया, लेकिन लौटते हुए गंदगी के खंजर नसीब हो गए। यही हाल कमोबेश हर पर्यटक स्थल और पर्यटक स्थलों के आसपास के सारे प्राकृतिक नजारों का है। आश्चर्य तो यह कि पराशर, शिकारी देवी, बिजली महादेव और तमाम ट्रैकिंग मार्गों पर बढ़ती चहलकदमी ने कचरे के ढेर खड़े कर दिए हैं। पर्यटन के साथ जुड़ी गतिविधियों के अलावा बढ़ते शहरीकरण के अंदाज ने भी कचरा फैलाना शुरू कर दिया है। खास तौर पर खाने-पीने के नए आउटलेट्स के माध्यम से परोसे जा रहे खाद्य उत्पाद, अपने पैकिंग मैटीरियल की वजह से गंदगी का आलम बढ़ा देते हैं। ऐसे में हाईवे टूरिज्म को एक स्वच्छता अभियान से जोड़ने की जरूरत है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यटन की वजह से कहीं यह राज्य कूड़े के दलदल में न फंस जाए। ट्रक टूरिज्म और लंगर पर्यटन भी गंदगी का बोरिया-बिस्तर साथ-साथ ही ढोते हैं। यहां हर डेस्टिनेशन के स्थानीय निकाय को पर्यटन से जोड़ते हुए सबसे अहम दायित्व यह होगा कि पूरे परिवेश को इस लायक बना रहने दें कि भीड़ बनते सैलानी किसी भी सूरत में सीजन को चांदनी चौक न बना सकें।
पर्यटकों के लिए हाईवे सुविधाओं में इजाफा करते हुए सक्रिय डस्टबिन चाहिए। सारी सड़कों पर कब्जा जमा रहे फास्ट फूड रेहडि़यों को एक नीति के तहत स्थायी ढांचा उपलब्ध करवाकर दैनिक कूड़े के प्रसार पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसी तर्ज पर वन विभाग को भी कुछ अनिवार्य दखल देते हुए पर्यावरणीय आंचल में घुसती गंदगी पर चौकसी बरतनी होगी। आश्चर्य यह कि स्वच्छता अभियान का सारा जोश एक पर्यटक सीजन की आबरू में लुट जाता है। यह सीधा सा अध्ययन है कि प्रदेश के उपभोक्ताओं की मांग पर जितना कचरा पैदा होता है, उसी हिसाब से उसे ठिकाने लगाने का इंतजाम करना होगा। इसी के अनुरूप प्रदेश भर में डंपिंग साइट्स तथा कचरा प्रबंधन के इंतजाम करने होंगे। इसके लिए शहरी विकास, पर्यटन, ग्रामीण विकास, पीडब्ल्यूडी तथा तमाम स्थानीय निकायों के साथ मिलकर प्रशासन को ऐसी व्यवस्था की रूपरेखा बनानी होगी, जो हर जिला की मानवीय गतिविधियों, बाजार, निर्माण तथा पर्यटन के कुप्रभाव से पूरे परिवेश को बचाए।
इसी तरह टीसीपी कानून को सशक्त करते हुए इसकी भविष्यगामी भूमिका को रेखांकित करना होगा। करीब तीन दशक पूरे कर चुके ग्राम एवं नगर योजना कानून से जो अपेक्षा थी, उसके विपरीत इसे खारिज करते निर्माण ने हिमाचल को ही कुरूपता ओढ़ा दी। किसी शहर का जिक्र कर लें, मंदिर नगरियों को देख लें या सड़कों के किनारे लुप्त होती दृश्यावलियों का हवाला लें, नवनिर्माण की परिभाषा में हिमाचल पूरी तरह गंदा, अविकसित और अगंभीर दिखाई देता है। पर्यटन के लिहाज से जो नजारे बचने चाहिए थे, उन्हें रौंदने की मुहिम में किन्नौर की सांगला घाटी तक को भी कंक्रीट का मकबरा बना दिया गया है। स्वच्छता के लिए हर कानून में स्वच्छता चाहिए और इस हिसाब से टीसीपी कानून, पर्यटन विकास योजनाओं और पर्यटन इकाइयों के पंजीकरण संबंधी कानूनी प्रक्रिया को पोंछा लगाने की जरूरत है। हिमाचल को अगर अपनी प्रगति के आईने में निहारना है या पर्यटक आगमन की खुशियां बटोरनी हैं, तो हर साल की स्वच्छता योजना के तहत अलग-अलग कार्यक्रम चलाने होंगे, अन्यथा अटल टनल के आसपास ही गंदगी के टीले बढ़ते जाएंगे। स्वच्छता की दृष्टि से व्यापार मंडलों, सामाजिक संगठनों, स्कूल-कालेजों और समाज के हर वर्ग की भूमिका अभिलषित है।

Rani Sahu
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