सम्पादकीय

चिंता का सबब बना अंतरिक्ष में फैला कचरा

Rani Sahu
10 April 2022 2:57 PM GMT
चिंता का सबब बना अंतरिक्ष में फैला कचरा
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इस माह के आरंभ में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में आसमान से आग के गोले गिरते दिखाई दिए थे

प्रदीप।

इस माह के आरंभ में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में आसमान से आग के गोले गिरते दिखाई दिए थे। कई जगह पर प्रत्यक्ष रूप से इन्हें धरती पर गिरते हुए भी देखा गया। इस तरह की आसमानी घटनाओं के संदर्भ में विज्ञानियों का कहना है कि यह अंतरिक्ष का कचरा या मलबा हो सकता है। अगर यह मलबा ज्यादा बड़े आकार का होता और किसी आवासीय क्षेत्र में गिरता तो यह जानमाल को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता था।

दरअसल अंतरिक्ष में एकत्रित हो रहा कचरे का ढेर भविष्य में धरती पर रह रहे लोगों के साथ-साथ यहां सक्रिय तमाम उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष स्टेशनों के लिए भी बेहद घातक साबित हो सकता है। इतना ही नहीं, इससे हमारी संचार व्यवस्था के भी प्रभावित होने की आशंका पैदा हो सकती है। ऐसे में जिस तरह से आज आधुनिक तकनीक आधारित तमाम गैजेट्स हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं, उससे अलग तरह के नुकसान की आशंका भी हो सकती है।
यदि हम अंतरिक्ष में मौजूद तमाम मानव जनित पदार्थों की बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक छोटे-बड़े मिलाकर लगभग 17 करोड़ पुराने राकेट और बेकार हो चुके उपग्रहों के टुकड़े आठ किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। आपस में टक्कर होने से ये और भी टुकड़ों में बंट रहे हैं जिससे इनकी संख्या में दिनों-दिन बढ़ोतरी ही हो रहा है।
ब्रिटिश खगोल विज्ञानी रिचर्ड क्राउटडर के अनुसार इस संबंध में सबसे बड़ी समस्या यह है कि पृथ्वी से 22,300 मील यानी लगभग 36 हजार किलोमीटर ऊपर की भू-स्थैतिक कक्षा में अंतरिक्षीय कचरे के जमघट और आपसी टक्कर के परिणामस्वरूप दुनिया की संचार व्यवस्था भी चौपट हो सकती है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंतरिक्ष में आठ किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चक्कर काट रहे सिक्के के आकार के किसी पदार्थ से किसी दूसरे सिक्के के आकार वाले पदार्थ की टकराहट होती है तो उससे वैसा ही प्रभाव होगा जैसा धरती पर लगभग सौ किलोमीटर की रफ्तार से चल रही दो बसों की टक्कर से होता है। अंतरिक्ष में तैरते कचरे से टकराने पर अंतरिक्ष यान और एक्टिव सैटेलाइट्स नष्ट हो सकते हैं। इसके साथ ही, धरती पर इंटरनेट, जीपीएस, टेलीविजन प्रसारण जैसी अनेक आवश्यक सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं।
अंतरिक्ष में मानवीय दखल का इतिहास कोई बहुत पुराना नहीं है। महज छह दशक पहले ही पहली बार इंसान ने अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम किया है। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 1957 में तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गए पहले मानव निर्मित सेटेलाइट स्पूतनिक-1 के बाद से हजारों राकेट, सेटेलाइट, स्पेस प्रोब और टेलीस्कोप अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। लिहाजा समय के साथ अंतरिक्ष में कचरा बढऩे की रफ्तार भी बढ़ती गई। यह कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसे पृथ्वी के कई पहाड़ों पर अत्यधिक पर्वतारोहण की वजह से तरह-तरह के कूड़े-करकट के अंबार लगे हैं, उसी तरह से अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में कबाड़ की एक चादर फैल गई है। एक अनुमान के अनुसार पिछले 25 वर्षों में अंतरिक्ष में कचरे की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है।
मानव जाति के लिए खतरनाक : अंतरिक्ष का कचरा मानव जाति और इस पृथ्वी के समस्त जीव जगत के लिए घातक है। अगर ये अनियंत्रित लाखों डिग्री सेल्सियस ताप पर दहकते टुकड़े घनी बस्तियों पर गिरते हैं तो जानमाल दोनों की बड़ी हानि हो सकती है। वर्ष 2001 में कोलंबिया स्पेस शटल की दुर्घटना में भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत सात अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की जान चली गई थी। इस दुर्घटना के अलग-अलग कारण बताएं जाते हैं, लेकिन कुछ रिपोर्टों में यह आशंका जताई गई थी कि अंतरिक्ष में भटकते एक टुकड़े से टकराने की वजह से यह भीषण त्रासदी हुई थी।
जिस तरह से सभी देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को अंजाम दे रहे हैं, उस तरह तो अंतरिक्ष में भीड़ और भी बढ़ेगी और यह भी स्पष्ट है कि इससे दुर्घटनाओं की आशंकाएं भी बढ़ेंगी। तो फिर इस समस्या का समाधान क्या है, इसके जवाब में विज्ञानी कहते हैं कि अंतरिक्ष से कचरे को एकत्रित करके वापस धरती पर लाना ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है यानी अंतरिक्ष में भी धरती की ही तरह स्वच्छता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। परंतु यह काम इतना आसान भी नहीं है। ऐसे में सभी देश यदि चाहें तो कम से कम इतना तो अवश्य किया जा सकता है कि जो भी देश अंतरिक्ष में अपनी ओर से कचरा पैदा कर रहा है यानी किसी कचरे के पैदा होने में जिस देश का योगदान है, वह उसे वापस लाने का खर्च वहन करे। इससे भी अंतरिक्ष में पैदा होने वाले कचरे पर लगाम लगाई जा सकती है।


Rani Sahu

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