सम्पादकीय

चंदे में पारदर्शिता

Triveni
17 Oct 2020 1:40 AM GMT
चंदे में पारदर्शिता
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राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे के संबंध में आने वाली कोई भी सूचना न केवल सुखद, बल्कि स्वागतयोग्य भी है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे के संबंध में आने वाली कोई भी सूचना न केवल सुखद, बल्कि स्वागतयोग्य भी है। राजनीति में कहां से पैसा आ रहा है, इसकी पूरी सूचना देश के नागरिकों को होनी ही चाहिए। असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट न सिर्फ यह बताती है कि किसने सबसे ज्यादा कॉरपोरेट चंदा दिया, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि किसे सबसे ज्यादा चंदा मिला। आज केंद्रीय सत्ता में बैठी भाजपा को सर्वाधिक चंदा मिला है, तो आश्चर्य की बात नहीं। कॉरपोरेट की दुनिया में सत्तारूढ़ या सशक्त समूहों के साथ खड़ा होना कौन नहीं चाहता? पांच राष्ट्रीय दलों में भाजपा को सबसे अधिक 1,573 कॉरपोरेट या व्यापारिक दानदाताओं (20 हजार रुपये से अधिक) से 698 करोड़ रुपये मिले हैं। दूसरे नंबर पर स्वाभाविक ही कांग्रेस पार्टी है, जिसे 122.5 करोड़ रुपये चंदे में मिले हैं। बीजेपी को वित्त वर्ष 2018-19 में कुल 742.15 करोड़ रुपये का दान मिला है, जिसमें लगभग 698 करोड़ रुपये कॉरपोरेट की तरफ से आए हैं। भाजपा के दान में कॉरपोरेट की हिस्सेदारी जहां 90 फीसदी से ज्यादा है, तो वहीं कांग्रेस के दान में 80 प्रतिशत से ज्यादा।

यह भी गौर करने की बात है कि टाटा समूह का 'प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट' देश में राजनीतिक चंदा देने के मामले में सबसे आगे है। उन तमाम कंपनियों का पता देश के लोगों को होना ही चाहिए, जो राजनीतिक दलों को चंदा दे रही हैं। इसमें कोई बुराई नहीं। राजनीतिक दलों को चंदे या सरकारी मदद की जरूरत पड़ती ही है। चूंकि हमारे देश में सरकारी मदद का प्रावधान नहीं है, इसलिए राजनीति चंदा आधारित है। पहले चंदे के बारे में बहुत साफ जानकारी नहीं हुआ करती थी, लेकिन अब कुछ संस्थाएं चुनावी चंदे या धन पर नजर रखती हैं। जनता को समय-समय पर यह पता लगते रहना चाहिए कि राजनीति में दान की क्या वस्तु-स्थिति है। एक समय था, जब राजनीतिक पार्टियों को भी सूचना के अधिकार के दायरे में लाया जा रहा था, यदि वैसा हो पाता, तो भारतीय लोकतंत्र की चमक और ज्यादा होती। लेकिन अभी जो भी व्यवस्था है, उसमें 20,000 रुपये से ज्यादा के चंदे का हिसाब ही सामने आ पाता है, उससे कम के चंदे के बारे में पता लगाना टेढ़ी खीर है। राजनीति में आने वाले एक-एक पैसे का हिसाब सार्वजनिक होना चाहिए, लेकिन राजनीतिक दलों को इसके लिए तैयार करने में अभी काफी वक्त लगेगा। अभी स्थिति यह है कि बड़ी कंपनियां सीधे अपने नाम से चंदा देना पसंद नहीं करतीं। एक अलग कंपनी, संस्था या ट्रस्ट बनाकर दान देने की परंपरा अलग ही आशंका की ओर इशारा करती है। कभी वह दिन आएगा, जब बड़ी कंपनियां और अमीर लोग सीधे अपने नाम से चंदा देंगे और लोगों को दानदाताओं को पहचानने में परेशानी नहीं होगी।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2012-13 से 2018-19 के बीच छह वर्षों में भाजपा को कुल 2,319 करोड़ रुपये, कांग्रेस पार्टी को 376.02 करोड़ और एनसीपी को 69.81 करोड़, तृणमूल कांग्रेस को 45.02 करोड़ रुपये मिले हैं। एडीआर के माध्यम से सामने आए ये आंकड़े भारतीय राजनीति की अधूरी छवि ही दर्शा रहे हैं। जब गठबंधनों का दौर है, तब केवल चार-पांच दल ही क्यों, देश के सभी सक्रिय दलों का हिसाब-किताब जनता के सामने आना चाहिए।

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