सम्पादकीय

अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा स्विफ्ट व्यवस्था से रूस के बैंकों को बाहर करने से वैश्विक स्तर पर लेनदेन हो रहा प्रभावित

Gulabi Jagat
26 March 2022 5:17 PM GMT
अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा स्विफ्ट व्यवस्था से रूस के बैंकों को बाहर करने से वैश्विक स्तर पर लेनदेन हो रहा प्रभावित
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिनों कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भरता ही सबसे उपयुक्त रणनीति है
डा. अश्विनी महाजन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिनों कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भरता ही सबसे उपयुक्त रणनीति है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि यह युद्ध इसी प्रकार से चला और यूक्रेन के मित्र देश जैसे अमेरिका और यूरोपीय देश इसमें कूदे तो यह तीसरे विश्व युद्ध की ओर जा सकता है। इसके अलावा भारत और शेष दुनिया में कुछ अन्य प्रकार की चिंताएं भी व्याप्त हैं। इन्हीं के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता की रणनीति का आह्वान किया है।
गौरतलब है कि रूस दुनिया के कच्चे तेल उत्पादकों में तीसरे स्थान पर है। अमेरिका और उसके अन्य मित्र देशों द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों के चलते कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो रही है। इस कारण दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। अभी तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव चल रहा है, लेकिन इस बीच रूस ने भारत को बाजार से 25 प्रतिशत कम कीमत पर तेल की आपूर्ति का प्रस्ताव दिया है। भारत ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार किया है। कुछ मात्रा में रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल आयात होने भी लगा है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है। हालांकि अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में सख्त रूप अपनाया हुआ है, लेकिन उसने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने से उसके प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं होगा। इसके बावजूद हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत द्वारा सस्ते कच्चे तेल के आयात में कोई बाधा न आए, ताकि देश को महंगाई से बचाया जा सके।
बाधित भुगतान : दुनिया के देशों के बीच लेनदेन के लिए इस्तेमाल होने वाली स्विफ्ट (सोसायटी फार वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंसियल टेलीकम्युनिकेशंस) व्यवस्था से अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस के बैंकों को ब्लाक कर दिया है। इस समस्या का समाधान खोजते हुए भारत और रूस ने फैसला किया है कि रूस के साथ अब व्यापार रुपये और रूबल में होगा। यानी भारत न केवल 25 प्रतिशत सस्ता कच्चा तेल खरीदेगा, बल्कि उसका भुगतान भी रुपये में किया जाएगा। हालांकि चीन की भुगतान प्रणाली-क्रास बार्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (सीआइपीएस) के माध्यम से भी यह भुगतान संभव है, फिर भी भारत और रूस ने रुपये-रूबल में भुगतान करने का निर्णय किया है।
भारत के बैंक सीआइपीएस में पंजीकरण करके रूस के साथ व्यापार कर सकते हैं, लेकिन चूंकि सीआइपीएस युआन को करेंसी के नाते उपयोग करता है, लिहाजा भारत के लिए अच्छा यह होगा कि वह अपनी एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली तैयार करे, जो भारतीय रुपये पर आधारित हो। इसमें एक विकल्प यह है कि भारत अपनी यूपीआइ प्रणाली को रूस की मीर प्रणाली से संबद्ध करे, ताकि सभी भुगतान आसानी से किए जा सकें। दूसरा विकल्प यह है कि केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी के माध्यम से भुगतान हो। इसके लिए रूस के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक के पास अपना खाता खोल सकते हैं। जहां रूसी बैंक भारतीय रुपये में अपना जमा रख सकते हैं। चूंकि भारत और रूस के व्यापार में भारत को व्यापार घाटा है, इसलिए रूस के पास भारतीय रुपये का जमा बढ़ जाएगा। ऐसे में रूस अन्य देशों से आयात के लिए रुपये में भुगतान कर सकता है, जो रुपये में भुगतान स्वीकार करते हैं।
टूटा भरोसा: विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक दूसरे देशों में अपनी विदेशी मुद्रा रखते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिका के केंद्रीय बैंक (फेडरल रिजर्व) में अपनी विदेशी मुद्रा रखी है। अन्य देशों ने भी डालर के भंडार फेडरल रिजर्व में रखे हैं, जिसमें रूस भी शामिल है। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस के बैंकों को स्विμट व्यवस्था से दूर करने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार पर अब रूस की पहुंच समाप्त हो गई है। ऐसे में रूस का तो अमेरिका के केंद्रीय बैंक पर से भरोसा उठा ही है, दुनिया के दूसरे मुल्क भी अब यह सोचने लगे हैं कि उनकी दूसरे केंद्रीय बैंकों में जमा राशि सुरक्षित नहीं है।
हाल में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि सभी देशों को अब अपने विदेशी मुद्रा भंडार के बारे में विचार जरूर करना चाहिए। भारत ने पहले ही अपने विदेशी मुद्रा भंडार को विस्तारित करना प्रारंभ कर दिया है। आज हम अपने भंडार को स्वर्ण, डालर, यूरो समेत कई अन्य करेंसियों में रख रहे हैं। चूंकि दुनिया के व्यापार में डालर का प्रभुत्व है और अमेरिकी बैंकों में ही डालर रखे जाते हैं, क्योंकि किसी भी देश की संप्रभु करेंसी उसी देश के बैंकों में रखी जा सकती है। जैसे यूरो यूरोपीय बैंकों में, डालर अमेरिकी बैंकों में, युआन चीनी बैंकों में और भारतीय रुपया भारतीय बैंकों में ही रखे जा सकते हैं। ऐसे में भारत के लिए यही उपयोगी होगा कि भारत की अपनी एक भुगतान प्रणाली हो, जो रुपये पर आधारित हो।
आत्मनिर्भर भुगतान प्रणाली : ऐसे देश जिन पर अमेरिका, यूरोपीय देशों और उनके सहयोगियों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, उनको अपने सामान को किसी न किसी प्रकार से बेचना जरूरी है। इसलिए वे भारत को बाजार से सस्ता सामान बेचने के लिए तैयार हैं। युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें काफी बढ़ गई हैं, लेकिन रूस ही नहीं, बल्कि ईरान भी तेल को सस्ते दामों में और हमारी शर्तों (रुपये में भुगतान के बदले) पर बेचने के लिए तैयार है। ऐसे देशों से तो हम वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत अपनी-अपनी करेंसियों में भुगतान कर सकते हैं, लेकिन कई देशों के साथ हमारा व्यापार घाटा रहता है, इसलिए वस्तु विनिमय हमेशा व्यावहारिक नहीं है। ऐसे में हम अपनी भुगतान प्रणाली को विभिन्न देशों की भुगतान प्रणाली से जोड़ कर अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के प्रभुत्व वाली स्विफ्ट प्रणाली से मुक्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत रूस और चीन समेत अन्य देशों की भुगतान प्रणाली से जुड़ अंतरराष्ट्रीय भुगतान में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है। यही नहीं आजकल डिजिटल करेंसी का चलन बढ़ गया है।
भारत ने हाल में अपने केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से एक डिजिटल करेंसी जारी करने का निर्णय लिया है। जानकारों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इस डिजिटल करेंसी के माध्यम से भी अंतरराष्ट्रीय भुगतान संभव हो सकता है। आज भारत रक्षा के साजोसामान, इलेक्ट्रानिक्स, टेलीकाम, रसायन, उपभोक्ता वस्तुएं आदि सभी में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में विश्व स्तर पर लेनदेन के लिए हम अमेरिका और यूरोपीय देशों की मनमर्जी के अधीन न रहें, इसके लिए जरूरी है कि येन-केन- प्रकारेण अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली में भी आत्मनिर्भरता प्राप्त करें। चाहे वस्तु विनिमय किया जाए या विभिन्न भुगतान प्रणालियों को आपस में जोड़ा जाए अथवा डिजिटल करेंसी को आपनाया जाए, सभी के पीछे आत्मनिर्भरता का भाव है।
आज भारत रक्षा साजोसामान, इलेक्ट्रानिक्स, टेलीकाम, रसायन, उपभोक्ता वस्तुएं आदि सभी में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में विश्व स्तर पर लेनदेन के लिए हम अमेरिका और यूरोप की मनमर्जी के अधीन न रहें। इसके लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली में भी आत्मनिर्भरता प्राप्त करें। वस्तु विनिमय कर या विभिन्न भुगतान प्रणालियों को आपस में जोड़कर अथवा डिजिटल करेंसी को अपनाकर ऐसा किया जा सकता है।
[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]
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