सम्पादकीय

TRAI और प्रसारक का विवाद: क्या TV चैनलों का भविष्य खतरे में है?

Gulabi
5 Nov 2021 5:16 PM GMT
TRAI और प्रसारक का विवाद: क्या TV चैनलों का भविष्य खतरे में है?
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TRAI और प्रसारक का विवाद

संयम श्रीवास्तव।

दुनिया के दूसरे सबसे बड़े टेलीविजन बाजार और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई (TRAI) के बीच बीते 5 वर्षों से विवाद चल रहा है. ट्राई जहां टेलीविजन कंपनियों को चेतावनी दे रहा है कि वह उपभोक्ताओं से अधिक कीमत न वसूलें. वहीं इसके बावजूद भी कंपनियां अपने चैनलों की कीमतें बढ़ा रही हैं. इन सबके बीच अब सवाल उठने लगा है कि क्या भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री का भविष्य खतरे में है. दरअसल यह विवाद फिर से इसलिए उठा क्योंकि स्टार, सोनी, जी जैसे टेलीविजन प्रसारकों ने हाल ही में अपने चैनलों के शुल्क में 20 रुपए या उससे ज्यादा की बढ़ोतरी की है. लेकिन जानने वाली बात यह है कि इन चैनलों ने बढ़ोतरी करने से पहले खुद को ट्राई के बुके सिस्टम से खुद को बाहर निकाल दिया था. यानि जब यह चैनल ट्राई के बुके सिस्टम में थे तब इन पर ट्राई के नियम लागू होते थे और तब यह बिना ट्राई के समर्थन के अपने चैनलों का शुल्क नहीं बढ़ा सकते थे.


ट्राई एक तरफ जहां चाहता है कि उपभोक्ताओं को कम से कम कीमत में सभी चैनल देखने को मिलें. वहीं टेलीविजन चैनलों के ऊपर कारोबारी दबाव है. जिसकी वजह से वह अपने शुल्क में बढ़ोतरी कर रहे हैं. दरअसल चैनलों के शुल्क में पिछली वृद्धि 2019 में हुई थी. इसके बाद महामारी आई और ओटीटी प्लेटफॉर्म ने इस दौरान इतना जोर पकड़ा की टेलीविजन इंडस्ट्री के करीब दो करोड़ ग्राहक कम हो गए. ऐसे में टीवी चैनलों के बड़े शुल्क का भार भारत के 21 करोड़ घरों में लगे टीवी कनेक्शनों के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करेगा. जानकारों का अनुमान है कि इससे केबल एवं डीटीएच ऑपरेटरों, प्रसारकों और वितरकों के 68,500 करोड़ रुपए के कारोबार में बड़ी गिरावट आ सकती है.
टेलीविजन कंपनियों ने खुद को बुके सिस्टम से बाहर क्यों निकाला
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई ने कुछ साल पहले एक बुके सिस्टम बनाया था. जिसके तहत ट्राई यह तय कर सके कि उपभोक्ता कम कीमत में अधिक से अधिक चैनल देख सकें. लेकिन इस सिस्टम की वजह से टेलीविजन कंपनियां अपने व्यापारिक घाटे और मुनाफे के अनुरूप अपने शुल्क में बढ़ोतरी नहीं कर सकती थीं. लिहाजा स्टार, सोनी और जी जैसे बड़े टेलीविजन प्रसारकों ने अपने आप को ट्राई के इस बुके सिस्टम से बाहर निकाल लिया और उसके बाद अपने शुल्क में 20 रुपए की या उससे ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी. अब ट्राई कह रहा है कि वह इसकी जांच करेगा और देखेगा कि क्या यह टेलीविजन कंपनियां उपभोक्ताओं से तय कीमत से ज्यादा तो नहीं वसूल रही हैं और ऐसा अगर पाया जाता है तो इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी.

क्या टेलिविजन इंडस्ट्री का भविष्य खतरे में है?
भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी टेलिविजन इंडस्ट्री है. लेकिन आज जिस तरह से भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) और टेलिविजन इंडस्ट्री के बीच जंग छिड़ी है ऐसा लगता है कि यह तभी खत्म होगी जब या तो टेलीविजन कारोबार पूरी तरह से खत्म हो जाएगा या फिर ट्राई को यह समझ आ जाए कि कंपटीशन के बाजार में टीवी चैनलों की कीमतें उसे तय करने का कोई औचित्य नहीं है. जाहिर सी बात है प्रसारकों को अपनी मर्जी से शुल्क तय करने का पूरा अधिकार है. ट्राई को यह समझना होगा कि मनोरंजन, खेल, फिल्म एवं संगीत चैनलों की कीमतें किसी फोन कॉल या डेटा की तरह मैनेज नहीं की जा सकतीं.

ट्राई अगर इसी तरह से अपने नियमों में लगातार बदलाव करता रहा तो इससे टेलीविजन उद्योग की वृद्धि, नौकरियों और उपभोक्ताओं के पसंद भी प्रभावित होंगे. कोरोना महामारी के बाद भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स तेजी से उभर रहे हैं और इस वजह से टेलीविजन प्रसारकों के ग्राहक तेजी से कम हो रहे हैं. 2019 के बाद अब तक लगभग दो करोड़ ग्राहक कम हो चुके हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. ऐसे में अगर टेलीविजन प्रसारक अपने व्यापारिक सुविधानुसार शुल्क नहीं बढ़ाते हैं तो उनका इस कंपटीशन भरे मार्केट में टिके रहना नामुमकिन हो जाएगा.
विवाद की जड़ को समझिए
यह पूरी गड़बड़ी साल 2004 में डिजिटलीकरण की अनिवार्यता से पैदा हुई. इसके बाद ट्राई को प्रसारण बाजार का नियामक बनाया गया. शुरुआत में ट्राई ने कुछ बेहतर काम भी किया. इसने केबल कारोबार में व्याप्त अव्यवस्थाओं को दूर किया, यही वजह रही कि 2019 में देश के 21 करोड़ टीवी कनेक्शनों में से करीब 10 करोड़ केबल ऑपरेटर और तकरीबन चार करोड़ डीडी फ्री डिश से जुड़े. जबकि लगभग 6.7 करोड़ कनेक्शन डीटीएच सेवा से जुड़े हुए थे. हालांकि बाद में ट्राई के शुल्क नियमों ने भारतीय टेलिविजन कारोबार को पूरी तरह से विज्ञापनों पर आश्रित कर दिया. जिसकी वजह से टेलीविजन इंडस्ट्री में अच्छे शो बनने भी धीरे-धीरे बंद होने लगे.

समय आया साल 2019 का जब ट्राई ने नया शुल्क आदेश लागू किया. इस दौरान ट्राई ने देश के बड़े प्रसारकों को एक साथ लाने के लिए एक बुके सिस्टम की शुरुआत की और चैनलों के लिए अधिकतम 19 रुपए का मूल्य तय किया. ट्राई के ऐसा करने के पीछे की वजह थी कि प्रसारक अपने चैनलों को अलग-अलग बेचने के लिए मजबूर हो जाएं. हालांकि इस नियम से कुछ सुधार भी हुआ. कीमतें जरूर बढ़ीं, लेकिन प्रसारकों को मिलने वाले ग्राहकी राजस्व में भी सुधार हुआ. लेकिन इस नए नियम ने एएक्सएन और नेटजिओ जैसे कई बड़े चैनलों को खत्म भी कर दिया.

इन सबके बाद विवाद की मुख्य वजह बना ट्राई का एक पत्र, जिसमें बंडलिंग के खिलाफ जोर देते हुए एक चैनल का अधिकतम शुल्क 12 रुपए तय करने का जिक्र था. प्रसारक ट्राई के इस आदेश को मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी. जिसके बाद बंबई हाईकोर्ट ने 2021 की शुरुआत में इस केस पर फैसला सुनाते हुए ट्राई के आदेश को सही ठहराया. हालांकि प्रसारकों ने इसके बावजूद भी इस नियम का विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा, जो अभी तक विचाराधीन है. लेकिन जब तक कोई अंतरिम राहत नहीं आती तब तक ट्राई ने प्रसारकों को वह आदेश लागू करने को कहा है. विवाद यहीं से बढ़ता है. क्योंकि ट्राई के दबाव के कारण तमाम प्रमुख चैनलों ने अपने आप को ट्राई के बुके सिस्टम से बाहर निकाल लिया है और अपना शुल्क मुद्रास्फिति के अनुरूप तय कर ट्राई को यह बताने की कोशिश की है कि हम अपने कंटेंट के दम पर अपना राजस्व अपने हिसाब से जुटा लेंगे.

क्या है न्यू टैरिफ ऑर्डर और ब्रॉडकास्ट रेगुलेशन 2.0 का विवाद
इन विवादों के बीच हाल ही में ट्राई ने दावा किया कि कई ब्रॉडकास्टर अपने लोकप्रिय चैनलों के देखने की दरों में बढ़ोतरी करने वाले हैं. और यह चैनल उपभोक्ताओं मैं यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि न्यू टैरिफ ऑर्डर ब्रॉडकास्ट रेगुलेशन 2.0 की वजह से उन्हें अपने लोकप्रिय चैनलों की दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है. ट्राई ने साफ किया कि ब्रॉडकास्टर पूरी तरह से झूठ फैला रहे हैं कि जिन उपभोक्ताओं ने अधिक देखे जाने वाले एंटरटेनमेंट या फिर स्पोर्ट्स चैनल लिया है उन्हें अलग से 100 रुपए देने पड़ेंगे. ट्राई का कहना है कि न्यू टैरिफ ऑर्डर और ब्रॉडकास्ट रेगुलेशन 2.0 में ऐसा कुछ भी नहीं है. बल्कि इस नए नियम के तहत उपभोक्ताओं को फायदा दिया गया है. ट्राई का कहना है कि एनटीओ 2.0 में उपभोक्ता और ब्रॉडकास्टर कंपनियां दोनों का पूरी तरह से ख्याल रखा गया है.
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